आज का सुसमाचार ईश्वरीय राज्य के विवाह भोज में भाग लेने के लिये हम लोगों को निमंत्रण देता है। हमें इसपर विचार करना चाहिये कि यहाँ पर विवाह भोज से क्या तात्पर्य है। विवाह भोज प्रभु के संरक्षण, सुरक्षा तथा मुक्ति विधान का प्रतीक है। ईश्वर हमें अपने मुक्ति-विधान के सहभागी तथा साझेदार बनाते हैं। इसका मतलब यह है कि जब ईश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं की पूर्ति करते हैं तब हमसे कुछ अपेक्षाएं की जाती है। ईश्वर के राज्य के विवाह भोज में भाग लेने के लिये बड़ी तैयारी की ज़रूरत है, हमें ईश्वरीय राज्य के मूल्यों को अपनाना होगा। प्रभु येसु आज के दृष्टांत में एक विवाह भोज की बात करते हैं। राजा ने विवाह भोज की तैयारी करने के बाद उसमें भाग लेने के लिये आमंत्रित लोगों को बुलाने हेतु अपने सेवकों को भेजा। लेकिन आमंत्रित लोग आना नहीं चाहते थे। राजा ने दुबारा दूसरे सेवकों को यह कहते हुए भेजा कि भोज की पूरी तैयारी हो चुकी है और इसलिये वे सब भोज में पधारे। इस पर कुछ आमंत्रित लोग खेत में चले गये और कुछ लोग अपना व्यापार देखने। दूसरे अतिथियों ने राजा के सेवकों को पकड़कर उनका अपमान किया और उन्हें मार डाला। इस दृष्टान्त में अतिथियों का विभिन्न प्रकार के बहाने बनाना तो हम समझ सकते हैं। लेकिन अतिथि अगर निंमत्रण देने वाले सेवकों को पकड़कर उनका अपमान करते हैं और उन्हें मार डालते हैं तो इसे सामान्य व्यवहार की तरह समझना कठिन है।
ईश्वर ने इस्राएली जनता के साथ अपना विधान स्थापित करना चाहा। उन्होंने इस्राएलियों को अपनी प्रजा के रूप में स्वीकार करना चाहा। लेकिन इसके साथ-साथ उनकी यहूदी जनता से कुछ अपेक्षाएं भी थी। इन अपेक्षाओं को प्रकट करते हुए अपनी सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करने का समाचार देने के लिये ईश्वर ने इस्राएलियों के बीच अपने सेवक नबियों को भेजा। जब नबियों ने ईश्वरीय इच्छा को प्रकट की तो इस्राएलियों की विभिन्न प्रतिक्रियाएं थी। कई लोगों ने ईश्वर की इच्छा को ठुकराया, किसी ने नबियों की अवहेलना की और किसी-किसी ने तो नबी को मार भी डाला। इस प्रकार ईश्वर की चुनी हुई प्रजा होने के बावजूद भी इस्राएलियों ने ईश्वर के निमंत्रण को ठुकरा दिया। इसमें ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि ईश्वर इस्राएलियों के इंकार पर भी उनको तुरन्त न छोड़कर बार-बार उनके पास नबियों को भेजते रहते हैं।
सुसमाचार में हम पाते हैं कि राजा लोगों को कुछ पाने के लिये निमंत्रण नहीं देते परन्तु उनके लिये खाना परोसने के लिये। फिर भी जो भोज में आयेंगे उन्हें विवाहोत्सव के वस्त्र पहनना ज़रूरी है। ईश्वर अपना दान खुशी से हमें प्रदान करते हैं। लेकिन हमारा कुछ व्यवहार ऐसा है जो प्रभु की अपेक्षाओं के विरुद्ध हैं। राजा सड़कों पर पाये गए भले-बुरे सभी लोगों को निमंत्रण देते हैं। इसी प्रकार ईश्वर भी हमारी विषेषताओं तथा योग्यताओं के कारण नहीं बल्कि अपने प्यार से प्रेरित होकर हमें अपने राज्य में बुलाते हैं। लेकिन उनके राज्य में प्रवेश करने के लिये हमें अपने पाप के फटे-पुराने और गंदे कपड़ों को उतार फेंकना पड़ेगा तथा स्वर्गराज्य के मूल्यों से सुसज्जित वस्त्र पहनना पड़ेगा।
जो खीस्तीय विश्वासी खीस्तीय-मूल्यों को छोड़कर खीस्तीय जीवन बिताने का ढ़ोंग करता है वह उस अतिथि के सदृष्य है जो विवाहोत्सव के वस्त्र पहने बिना विवाह भोज में प्रवेश करता है।
यूखारिस्तीय समारोह प्रभु का भोज है। इसमें भाग लेने के लिये हमें बड़ी तैयारी की ज़रूरत है। मिस्सा बलिदान की शुरुआत में जिस पापस्वीकार की धर्मविधि में हम भाग लेते हैं वह इस बात को दर्षाती है कि जो इस भोग में भाग लेते हैं उन्हें ईश्वर के राज्य के मूल्यों को अपनाकर अपने आप को तैयार करना चाहिये। इसलिये ही प्रभु कहते, ’’जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँ याद आये कि मेरे भाई को मुझसे कोई शिकायत है तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ और तब आकर अपनी भेंट चढ़ाओं।’’ (मत्ती 5:23-24) इसी सिलसिले में संत पौलुस लिखते हैं, ’’जो अयोग्य रीति से वह रोटी खाता या प्रभु का प्याला पीता है, वह प्रभु के शरीर और रक्त के विरुद्ध अपराध करता है। अपने अंतःकरण की परीक्षा करने के बाद ही मनुष्य वह रोटी खायें और वह प्याला पिये। जो प्रभु का शरीर पहचाने बिना खाता और पीता है, वह अपनी ही दण्डाज्ञा खाता और पीता है’’(1 कुरि. 11:26-29)।
आइए हम इस निमंत्रण को स्वीकार करते हुए ईश्वरीय राज्य के मूल्यों को अपनाने का दृढ़ संकल्प लें और अपने को न केवल इस मिस्सा बलिदान के लिये बल्कि मृत्यु के बाद के अनंत जीवन के लिये भी तैयार करें।