सन् 1995 फरवरी 25 तारीख को फ्रांसिस्कन क्लारिस्ट धर्म समाज की रानी मरिया नामक सिस्टर उदयनगर गाँव से इंदौर की ओर बस में यात्रा कर रही थी। जब बस एक जंगल से गुजर रही थी तो अचानक उनके साथ यात्रा करने वाले कुछ लोगों ने अपनी पूर्व योजना के अनुसार सिस्टर को चाकुओं से क्रूरतापूर्वक गोद डाला। घटनास्थल पर ही सिस्टर की मृत्यु हो गयी। सहयात्री इस क्रूर कृत्य को देखकर भयभीत होकर भाग गये। सिस्टर के शरीर पर 50 से अधिक चाकुओं के धाव थे। समंदर सिंह नामक व्यक्ति इस जघन्य हत्याकांड का मुख्य आरोपी था। सिस्टर रानी मरिया कई सालों से उदयनगर में एक समाज सेविका के रूप कार्यरत थी। उन्होंने गरीबों की सेवा की, दीन-दुखियों की मुसीबतों को दूर करने की हर संभव कोशिश की और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठायी। सिस्टर के सेवा कार्य से गरीबों को काफी राहत मिली। लेकिन उन निराश्रित लोगों के शोषण करने वालों को यह सब अच्छा नहीं लगा। सिस्टर रानी मरिया के सेवा कार्य का यह भी नतीजा निकला कि गरीब लोग अपनी बुरी हालत के लिये इन शोषणकर्ताओं को जिम्मेदार मानने लगे और फलस्वरूप शोषण से अपने को बचाने की कोशिश करने लगे। इसी कारण ये शोषणकर्ता सिस्टर रानी मरिया से नफ़रत करने लगे और उनके कार्यों को बिगाड़ने तथा उनके जीवन को हानि पहुँचाने की ताक में रहने लगे। सिस्टर रानी मरिया की हत्या इन्हीं शोषणकर्ताओं की योजना का परिणाम थी। इस हत्या की पुलिस द्वारा जाँच की गयी और अन्य साथियों के साथ समंदर सिंह भी पकड़ा गया।
जिस ईश्वर ने सिस्टर रानी मरिया को प्रेरणा दी थी उन्होंने सिस्टर की मृत्यु के बाद भी अपने सुसमाचारीय कार्यों को जारी रखा। सन् 2002 में रक्षाबंधन के दिन दिंवगत सिस्टर रानी मरिया की बहन ने जेल जाकर समंदर सिंह से मुलाकात की और उसकी कलाई पर राखी बाँधी। सिस्टर के माता-पिता ने भी जेल में जाकर अपनी ही बेटी के उस हत्यारे से मुलाकात की। इतना ही नहीं धर्मसंघ की सिस्टरगण, सिस्टर के माता-पिता के साथ मिलकर मध्यप्रदेश के राजभवन में जाकर राज्यपाल से समंदर सिंह के क्षमादान के लिये याचना की। इस अवसर पर राज्यपाल भी बहुत प्रभावित हुये और कहने लगे कि आप जैसे खीस्तीय लोग ही महान क्षमा के उदाहरण बन सकते हैं। इन घटनाओं का समंदर सिंह पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और उसका मन-परिवर्तन हो गया। सन् 2006 में जैसे ही समंदर सिंह जेल से बाहर निकला, उसने केरल जाकर सिस्टर के माता-पिता से मुलाकात की और उनसे क्षमा माँगी।
कलीसिया हमें विभिन्न खीस्तीय मूल्यों से अवगत कराती है। इन मूल्यों में क्षमा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। आज के सुसमाचार में संत पेत्रुस प्रभु येसु से प्रष्न करते हैं कि यदि मेरा भाई मेरे विरुद्ध अपराध करता जाये, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ। पेत्रुस अपने को उदार प्रस्तुत करते हुए जोड़ते हैं, ’’सात बार तक?’’ इसपर प्रभु पेत्रुस को चकित करते हुए कहते हैं, ’’मैं तुमसे नहीं कहता- सात बार तक, बल्कि सत्तर गुना सात बार तक’’। इस जवाब से हम से कौन ऐसा है जो चकित नहीं होता। सत्तर बार 7 लिखकर देखिये कि कितना बनता है। प्रभु हम खीस्तीयों से इतनी आशा रखते हैं। प्रभु का यह कहना है कि हमें निंरतर क्षमा करते जाना चाहिये।
हम सब पापी हैं, सैंकड़ो बार पाप करते जाते हैं और ईश्वर से हर बार क्षमा की अपेक्षा रखते हैं। ईश्वर दयालु हैं और हमें हर बार क्षमा प्रदान करना चाहते हैं। लेकिन एक शर्त है। हम जो ईश्वर की क्षमा की आशा रखते हैं दूसरों को क्षमा प्रदान करें, क्षमा करते जाये। आज के सुसमाचार में प्रभु स्पष्ट रूप से कहते हैं, ’’यदि तुम में हरेक अपने भाई को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा तो मेरा स्वर्गिक पिता तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगा।’’ प्रभु हमसे चाहते हैं कि हम में से हरेक व्यक्ति क्षमा करें और यह पूरे हृदय से करें।
आज हमने प्रवक्ता ग्रंथ से यह भी सुना कि अपने पड़ोसी के अपराध क्षमा करने के बाद ही हम ईश्वर से हमारे पापों की क्षमा के लिये निवेदन कर सकते हैं। तभी ईश्वर हमारी प्रार्थना सुनेंगे। जो अपने मन में दूसरों पर क्रोध बनाये रखता है, वह प्रभु से क्षमा की आशा नहीं रख सकता है। प्रभु येसु ’हे पिता हमारे’ प्रार्थना में इस शर्त को पुनः दोहराते हैं। ईशवचन यह भी याद दिलाता है कि विद्धेष और क्रोध पाप के कारण बनते हैं और जो दूसरों को क्षमा प्रदान नहीं करता, वह विद्धेष और क्रोध को अपने हृदय में पालता है और इसके फलस्वरूप वह पाप के बंधन से कभी छुटकारा नहीं पा सकता।
तो आइए हम ईश वचन की इस चुनौती को हृदय से ग्रहण करें और ईश्वर से क्षमा याचना करने से पहले दूसरों को क्षमा प्रदान करें।