एक व्यक्ति जो पहले प्रभु येसुको नहीं जानता था, लेकिन आज प्रभु येसुको अपना मुक्तिदाता मानता है और प्रभु के लिए अपना जीवन समर्पित करता है। वह अपना एक अनुभव बताता है जिसके कारण उसने प्रभु को अपना मुक्तिदाता माना। उस व्यक्ति का जन्म एक गैरख्रीस्तीय में हुआ था। परिवार के सभी सदस्य बहुत धार्मिक थे। उस व्यक्ति ने प्रभु येसुका नाम कभी नहीं सुना था, न ही उनके बारे में जानता था।
एक बार वह अपने मित्र से मिलने अस्पताल गया क्योंकि वह बीमार था, उसका मित्र जिस अस्पताल में था वह एक क्रिश्चियन अस्पताल था। अस्पताल में प्रार्थना के लिए चर्च भी बना हुआ था। जब वह अपने बीमार मित्र से मिला तो उसकी हालत देख कर उसे बहुत दुःख हुआ क्योंकि उन दिनों वह स्वयं भी अपने निजी एवं पारिवारिक कारणों से जूझ रहा था। अपने मित्र से मिल कर जब वह बाहर जा रहा था, तब अचानक उसने सोचा क्यों न थोड़ी देर चर्च में बैठ कर प्रार्थना करूँ क्योंकि वह अपने मित्र की बीमारी और स्वयं के संकटों का निवारण चाहता था। इसके पहले वह कभी भी किसी चर्च में नहीं गया था। जीवन में पहली बार अपना मन हल्का करने के लिए उसने चर्च में प्रार्थना करने की सोची।
उसने बताया कि जैसे ही वह चर्च के अंदर गया और सामने क्रूसित प्रभु येसुको देखा, तो वह अपनी हॅसी को रोक नहीं पाया क्योंकि वह अपने दुःख-संकटों को हल्का करने के लिए भगवान से प्रार्थना करने यहाँ आया था, लेकिन अपने जीवन काल में उसने पहली बार एक ऐसे भगवान को देखा जो उसके ही समान दुःख-पीड़ा में था। तब उसने सोचा मैं अपने दुःख-संकटों के लिए कैसे इस भगवान से प्रार्थना करूँ जो स्वयं संकट में है। फिर भी उसने थोड़ी देर वहाँ बैठने का मन बनाया। वह वहाँ बैठ कर क्रूसित प्रभु येसुको देख रहा था। अचानक उसके मनमें एक आवाज़ आई, यह भगवान तुम्हें और तुम्हारे संकटों को अच्छे से समझ सकता है क्योंकि वह स्वयं दुःख-संकटों को सह चुका है, वह जानता है कि तुम्हारा दुःख-दर्द कितना बड़ा है क्योंकि उसने स्वयं तुम्हारे समान व तुमसे ज़्यादा दुखों को सहा है।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने दुख-भोग, मरण एवं पुनरुत्थान की भविष्यवाणी करते हैं, साथ ही वे कहते है कि जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करें और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले। प्रभु येसु ने स्वयं अपना क्रूस उठाया और हम सबों की मुक्ति के लिए उस पर मर गये। क्योंकि उनके जीवन का उद्देश्य भी यही था। प्रभु को क्रूस-मरण से दूर करने के लिए शैतान ने बहुत कोशिशें की थी। चालीस दिन व चालीस रात के प्रार्थना एवं उपवास के बाद प्रभु को क्रूस एवं क्रूस-मरण से दूर ले जाने के लिए शैतान ने उन्हें तीन बार प्रलोभन दिए, लेकिन वह उस में सफल नहीं हो सका। आज के सुसमाचार में हमने सुना शैतान संत पेत्रुस के द्वारा प्रभु को क्रूस एवं क्रूस-मरण छोडने का प्रलोभन देता है। अनेक प्रलोभनों एवं परीक्षाओं के बावजूद प्रभु क्रूस एवं क्रूस मरण को अपनाते हैं और उसके द्वारा हमें मुक्ति प्रदान करते हैं। प्रभु येसु हम से भी यही चाहते हैं कि हम भी प्रलोभनों एवं परीक्षाओं के बावजूद अपना दैनिक क्रूस उठाकर उनके पीछे हो लें। हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि हमारे दैनिक क्रूस का बोझ या हमारे दैनिक दुख-संकटो की तीव्रता को प्रभु भली भांति जानते हैं क्योंकि उन्होंने स्वंय हमारे समान या हमसे ज्यादा हर प्रकार के दुख-संकटों को सहा है।
हम प्रभु से प्रार्थना करें कि वे हमें अपना क्रूस उठा कर उनके पीछे जाने की कृपा व शक्ति प्रदान करें साथ ही हमें इस बात का भी ज्ञान करायें कि प्रभु हमारे दुख-संकटो से परिचित हैं और वे हमारी मदद भी करते हैं।
-फादर वर्गीस पल्लिपरम्पिल