चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का उन्नीसवाँ इतवार

पाठ: 1 राजाओं 19:9अ,11-13अ; रोमियों 9:1-5; मत्ती 14:22-33

प्रवाचक: फ़ादर विपिन तिग्गा


आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि जब शिष्य समुद्र में नाव से उस पार जा रहे थे, तब अचानक समुद्र में तूफ़ान आ जाता है। शिष्य उन तूफ़ानी लहरों और प्रचण्ड वायु का सामना करते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि किसी तरह उस पार पहुँच सकें लेकिन वे अपने इस प्रयास में असफल रहते हैं क्योंकि वायु प्रतिकूल थी और शिष्य भयभीत थे कि कहीं वह डूब न जाये, उनकी मृत्यु न हो जाये। साथ ही साथ इस विकट परिस्थिति में नाव में येसु उनके साथ उपस्थित नहीं थे। शिष्यों के सामने खतरा मंडराने लगा था, परन्तु प्रभु येसु समुद्र पर चल कर उन्हें बचाने आते हैं और उन्हें इस विपरीत परिस्थिति से बाहर निकालते हैं।

हमारी जिन्दगी भी चारों तरफ़ तूफ़ानों व अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरी हुयी है। हम भी बार-बार इससे बाहर निकलने की कोशिश करते हैं, घंटों इसी बारे में सोचते रहते हैं, चिंता में डूबे रहते तथा कई बार अपनी समस्याओं का हल खोजने के लिए दूसरों के पास जाते हैं, एवं जब समस्या का समाधान नहीं हो पाता, तब हम हमेशा चिंता व तनाव अपने जीवन में महसूस करते हैं कि आगे भविष्य में क्या होगा। हम भी समस्या, संकट आने पर शिष्यों की तरह घबरा जाते हैं।

शिष्यों का अविश्वास पेत्रुस में प्रकट होता है। वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला उठा, ’’प्रभु! मुझे बचाइए’’ (मत्ती 14:30)। प्रभु का सवाल - “अल़्पविश्वासी! तुम्हें संदेह क्यों हुआ?” (मत्ती 14:31)– यह दर्शाता है कि विश्वास और सन्देह एक दूसरे के विपरीत है। जहाँ विश्वास है, वहाँ सन्देह नहीं हो सकता। सन्देह विश्वास की कमी को दर्शाता है। यह ईश्वर पर विश्वास, दूसरों पर विश्वास और आत्मविश्वास के बारे में सच है। जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं वे ईश्वर पर सन्देह नहीं करते हैं; जो दूसरों पर विश्वास करते हैं, वे दूसरों पर शक नहीं करते हैं और जो अपनी क्षमता पर विश्वास करते हैं, वे अपनी क्षमता पर सन्देह नहीं करते हैं। वास्तव दूसरों एवं स्वयं पर विश्वास भी हमारे ईश्वरीय विश्वास पर निर्भर करता है। जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं, वे जानते और मानते हैं कि सब कुछ ईश्वर पर निर्भर है, ईश्वर मेरी भलाई चाहते हैं और ईश्वर की अनुमति के बिना मुझ पर कुछ नहीं बीतेगा।

निर्गमन ग्रन्थ 14:30-31 में हम पढ़ते हैं, “ उस दिन प्रभु ने इस्राएलियों को मिस्रियों के हाथ से छुड़ा दिया। इस्राएलियों ने समुद्र के किनारे पर पड़े हुए मरे मिस्रियों को देखा। इस्राएली मिस्रियों के विरुद्ध किया हुआ प्रभु का यह महान् कार्य देख कर प्रभु से डरने लगे। उन्होंने प्रभु में और उसके सेवक मूसा में विश्वास किया।” इस्राएली लोग ईश्वर पर विश्वास करने के साथ-साथ मूसा पर भी विश्वास करने लगते हैं।

जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं, उनका आत्मविश्वास भी मज़बूत होता है। उन्हें मालूम होता है कि ईश्वर उन्हें प्यार करते हैं और उनकी सहायता करते हैं। रोमियों 8:28 में संत पौलुस कहते हैं, “हम जानते हैं कि जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गये हैं, ईश्वर उनके कल्याण के लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है”।

एक दूसरे पर शक करने के कारण कितने रिश्ते टूटते हैं, कितने परिवारों में अशांति फैल जाती है। स्वयं पर सन्देह करने के कारण कितने लोग परीक्षा में अनुत्तीर्ण होते हैं, इन्टर्व्यू ठीक से नहीं दे पाते हैं, प्रतियोगिताओं में पीछे रह जाते हैं।

ईश्वर का अनुभव हमारे ईश्वर पर, दूसरों पर और स्वयं पर विश्वास को बढ़ाता है। प्रभु ने अपना अनुभव देकर संत थॉमस के विश्वास को बढ़ाया। अकसर हम संत थॉमस को अविश्वासी शिष्य कहते हैं। वास्तव में सभी शिष्य अविश्वासी थे। मारकुस 16:9-13 में हम पढ़ते हैं, “ईसा सप्ताह के प्रथम दिन प्रातः जी उठे। वे पहले मरियम मगदलेना को, जिस से उन्होंने सात अपदूतों को निकाला था, दिखाई दिये। उसने जा कर उनके शोक मनाते और विलाप करते हुए अनुयायियों को यह समाचार सुनाया। किन्तु जब उन्होंने यह सुना कि ईसा जीवित हैं और उसने उन्हें देखा है, तो उन्हें इस पर विश्वास नहीं हुआ। इसके बाद ईसा दूसरे वेश में उन में दो को दिखाई दिये, जो पैदल देहात जा रहे थे। उन्होंने लौट कर शेष शिष्यों को यह समाचार सुनाया, किन्तु शिष्यों को उन दोनों पर भी विश्वास नहीं हुआ।”

प्रभु हमें बताते हैं कि विश्वास में कितनी ताकत है – “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- यदि तुम्हें विश्वास हो और तुम संदेह न करो, तो तुम न केवल वह करोगे, जो मैं अंजीर के पेड़ के साथ कर चुका हूँ, बल्कि यदि तुम इस पहाड़ से यह कहो - ’उठ, समुद्र में गिर जा’, तो वैसा ही हो जायेगा। और जो कुछ तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में माँगोगे, वह तुम्हें मिल जायेगा।’’ (मत्ती 21:21-22)

ईश्वर का अनुभव हमारे विश्वास को बढ़ाता है। हम प्रभु से विनती करें कि वे अपना अनुभव हमें प्रदान कर हमारे विश्वास को बढ़ायें।


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Praise the Lord!