जब गिबओन में प्रभु रात को राजा सुलेमान को स्वप्न में दिखाई दिये और उन्होंने कहा, ‘‘बताओ, मैं तुम्हें क्या दे दूँ?’’ तब सुलेमान ने प्रभु से प्रभु की चुनी हुयी प्रजा पर न्यायपूर्वक शासन करने तथा भला तथा बुरा पहचान सकने के लिए विवेक माँगा। प्रभु इस बात पर बहुत प्रसन्न हुए कि सुलेमान ने अपने लिए न तो लम्बी आयु माँगी, न धन-सम्पत्ति और न अपने शत्रुओं का विनाश बल्कि न्याय करने का विवेक माँगा। इसलिए प्रभु ने सुलेमान को अतुलनीय बुद्धि और विवेक प्रदान किया। उसके साथ-साथ प्रभु ने उन्हें अतुलनीय धन-सम्पत्ति तथा ऐश्वर्य भी प्रदान किया, जिससे कोई भी राजा उनकी बराबरी नहीं कर पाये।
इब्राहीम ने ईश्वर से सोदम और गोमोरा के लोगों को बचाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की (दे. उत्पत्ति 18)। निर्गमन ग्रन्थ में हम यह पाते हैं कि मूसा बार-बार इस्राएलियों को विभिन्न संकटों से बचाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। यूदीत और एस्तेर ने ईश्वर की प्रजा की सुरक्षा के लिए प्रभु से प्रार्थना की थी। दानिएल ने ईश्वर से ईश्वर के रहस्यों को जानने की कृपा माँगी। टोबीत, सारा और सुसन्ना ने अपने जीवन की निराशामय परिस्थिति में ईश्वर से राहत के लिए प्रार्थना की।
1 समुएल 1:1-17 में हम देखते हैं कि एल्काना नामक सूफ़वंशी मनुष्य की पत्नी अन्ना शिलो जाकर मन्दिर में दुःखी हो कर प्रभु से प्रार्थना करती है कि प्रभु उसे एक पुत्र प्रदान करे। वह प्रभु से वादा करती है कि अगर उसे एक पुत्र प्राप्त होगा तो वह उसे जीवन भर के लिए प्रभु को अर्पित करेगी।
सुसमाचार में हम देखते हैं कि कई लोग प्रभु येसु के पास आकर चंगाई के लिए या अपदूतों से छुटकारा पाने के लिए या किसी मृतक को जिलाने के लिए प्रार्थना करते हैं। मारकुस 10:37 में ज़बेदी के पुत्र याकूब और योहन प्रभु येसु से अपने राज्य की महिमा में उन दोनों को अपने साथ - एक को अपने दायें और एक को अपने बायें - बैठने देने की कृपा माँगते हैं’’।
अब हम ये प्रश्न उठा सकते हैं कि हम ईश्वर से क्या-क्या माँगते हैं। हममें से ज़्यादात्तर लोग अपने दैनिक जीवन की छोटी-मोटी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए ही ईश्वर से वरदान माँगते हैं। कभी हम आर्थिक संकट से बचने के लिए कृपा माँगते हैं तो कभी नौकरी मिलने के लिए। कभी हम चंगाई की माँग करते हैं तो कभी हम बच्चों की अच्छी पढ़ाई के लिए मदद माँगते हैं।
ईश्वर सुलेमान की माँग पर प्रसन्न हुये। अब हम इस पर मनन चिंतन करें कि ईश्वर क्या चाहते हैं कि हम माँगे।
मत्ती 6:6-13 में प्रभु हमें समझाते हैं कि हमें लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ कर अपनी माँगों को ईश्वर के समक्ष रखने की कोई ज़रूरत नहीं हैं क्योंकि हमारे माँगने पहले स्वर्गिक पिता जानते हैं कि हमें किन-किन चीज़ों की ज़रूतत हैं। तत्पश्चात प्रभु शिष्यों से ईश्वर का नाम पवित्र माना जाने, ईश्वर का राज्य आने, ईश्वर की इच्छा इस पृथ्वी पर पूरी होने, प्रतिदिन का भोजन मिलने तथा बुराई से बचने के लिए प्रार्थना करना सिखाया।
मत्ती 9:37 में प्रभु येसु फ़सल के स्वामी से अपनी फ़सल काटने हेतु मज़दूरों को भेजने के लिए विनती करने को कहते हैं। लूकस 11:13 में प्रभु हमें अपने स्वर्गिक पिता से पवित्र आत्मा माँगने का आह्वान करते हैं। योहन 4:10 में प्रभु येसु समारी स्त्री को संजीवन जल के लिए प्रार्थना करने की सलाह देते हैं। प्रेरित-चरित 1 में हम अटारी में माता मरियम और येसु के प्रेरितों के साथ पवित्र आत्मा के आगमन के लिए प्राथना करने वाले करीब 120 लोगों के समुदाय को पाते हैं। प्रेरित-चरित 4:29-30 में हम देखते हैं विश्वासियों का समुदाय ईश्वर से निर्भीकता से वचन सुनाने तथा ईसा के नाम पर स्वास्थ्यलाभ, चिन्ह तथा चमत्कार प्रकट होने के लिए प्रार्थना करते हैं।
शोकगीत 2:18-21 में सारे हृदय से प्रभु, सियोन के रक्षक से आँसू दिन-रात नदी की तरह बहाते हुए हृदय की गहराई से अपने बच्चों के प्राण बचाने के लिए प्रभु के सामने हाथ उठा कर प्रार्थना करने का आह्वन है।
इस प्रकार यह साफ है, प्रभु की इच्छा यह है कि हम निस्वार्थ भाव से आध्यात्मिक वरदानों के लिए प्रार्थना करें। सबसे बडी प्रार्थना ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करने की हिम्मत पाने की पार्थना है। इसी प्रकार की प्रार्थना प्रभु येसु ने गेदसेमनी में की थी। हम विनती करें कि ईश्वर की कृपा से हम भी अपने दैनिक जीवन में ईश्वर की इच्छा सहर्ष स्वीकार कर पायें।