आज प्रभु बोने वाले के दृष्टान्त द्वारा हमें अपनी वाणी सुनने तथा उसके अनुसार जीवन बिताने के लिए निमंत्रण देते हैं। कभी-कभी हमारा हृदय भी एक रास्ते के समान है, न जाने उस में से कितने लोगों की यादें, कितनी योजनाओं की झंझटें और जिम्मेदारियों की चिन्ताएं गुज़रती रहती हैं। शायद हम बहुत-सी बातों में इतने लीन रहते हैं कि किसी भी बात में हमारा दिल ज्यादा समय नही लगता है। किसी-किसी का यह अनुभव होता है कि जब वे प्रार्थना करने बैठते हैं तो कई चिन्ताएं उन्हें सताती रहती हैं या उनके मन कई बातों में भटकते रहते हैं। ऐसे लोग जब किसी प्रभावषाली वक्ता के मुँह से प्रभु के वचन सुनते हैं तो शायद उन्हें एक पल के लिए बहुत अच्छा लगता हैं। पर तुरन्त उनके मन में दूसरी बातें प्रवेश करती हैं और वे ईश्वरीय वचन को सहज ही भूल जाते हैं। भाग-दौड़ की इस दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है। क्या किसी सड़क पर हम किसी पौधे के उगने की उम्मीद कर सकते हैं? नहीं न। उसी प्रकार जो व्यक्ति बहुत सी बातों से चिंतित और व्यस्त रहते हैं, उनके जीवन में ईश्वरीय वचन का उगना और बढ़ना असंभव ही है। बुरी संगती के कारण कितने लोग बिगड़ जाते हैं। बुरे दोस्त आज के सुसमाचार में उल्लेखित ’आकाश के पक्षियों’ के समान हैं। उनकी संगति में हमें आध्यात्मिकता में बढ़ना कितना कठिन साबित होता है! वे हमें अच्छी विचारधाराओं से वंचित कर सकते हैं।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पथरीली ज़मीन के समान हैं। वे वचन को खुशी से ग्रहण करते तो हैं, परन्तु जल्द ही उन्हें यह महसूस होता है कि वचन को सुनने तथा उसके पालन करने में काफी अन्तर है। सुनना तो आसान है, लेकिन उसे अपने जीवन में लागू करना कठिन है। कितनी बार हमने शायद प्रवचन देनेवाले की सराहना की है और उनको शबाशी दी है, परन्तु उसी वचन के अनुसार जीवन बिताने में असमर्थ हुए हैं। इसी प्रकार के हृदयों को प्रभु ’पथरीली’ ज़मीन कहते हैं।
किसी-किसी का यह अनुभव होता है कि वे अच्छे आदर्षों को स्वीकारना चाहते तो हैं परन्तु अपनी बुरी आदतों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते हैं। कुछ बुरी आदतों की जड़ें हमारे हृदयों में बहुत गहरी हैं और वे हमारे जीवन को इतनी प्रभावित करती हैं कि वचन के अनुसार अपने जीवन को बदलने को चाहने पर भी हम अपने को मज़बूर पाते हैं। थोड़ी कुछ कोशिश करने के बाद हम हार मान लेते हैं तथा बुरे रास्ते पर पुनः लौट जाते हैं। हमारी बुरी आदतें काँटों के समान हैं जो वचनरूपी पौधे को बढ़ने नही देती हैं। ऐसे काँटों को प्रभु ही उखाडकर फेंक सकते हैं। क्या हम प्रभु को उन्हें उखाडने देंगे?
आज के पहले पाठ के द्वारा नबी इसायाह हमें समझाते हैं कि प्रभु के वचन में हमारे जीवन को बदल डालने की क्षमता है। शर्त है कि हम उसे हृदय से अपनायें। आज प्रभु येसु अपने सुसमाचार द्वारा वचन सुनने और उनके अनुसार चलने के लिये हमें निमंत्रण दे रहे हैं। ईश्वरीय वचन हमारे जीवन में दुधारी तलवार की तरह कार्य करता है। ईश्वर का वचन हमारे हृदयों को स्पर्ष कर, ईश्वरीय प्रेम से हमारे मनोभावों को बदलकर, हमें पाप के अन्धकार से निकालकर, एक नया प्राणी बना सकता है। इसके लिये हमें पूर्ण रूप से अपने जीवन को प्रभु को समर्पित करना चाहिए।
आज की इस दुनिया में सभी मनुष्य यही चाहते हैं कि उनके जीवन में किसी प्रकार की मुसीबत न आए और यदि अचानक कोई मुसीबत आ भी जाए तो उस से तुरन्त छुटकारा मिले। यदि किसी परिवार में कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो सभी परिवार के लोग चाहते हैं और प्रार्थना भी करते हैं कि वह जल्दी ठीक हो जाये। सभी की यही इच्छा होती है कि अपना सब काम तुरन्त हो जाए। कोई भी प्रतीक्षा या इंतजार नहीं करना चाहता है। आज के दूसरे पाठ में ईश्वरीय वचन, हमें भावी महिमा के बारे में सोचने और मानवपुत्र की प्रतीक्षा करने के लिये आग्रह करता है। हमें हर दिन, हर समय ईश्वर की प्रतीक्षा करना चाहिए, मुक्तिदाता की प्रतीक्षा करना चाहिए। तब हमारे जीवन में प्रभु की महिमा प्रकट होगी। आज के इस समाज में मनुष्य अलग-अलग प्रकार के प्रलोभन या पाप के जाल में फंसे रहते हैं। इस जाल से मुक्ति पाने के लिये हमें विश्वास एवं धैर्य के साथ प्रभु की प्रतीक्षा करना चाहिए।
हमारे दैनिक जीवन में हमारी मदद करने के लिये ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है। लेकिन हम मानव अपने पापों तथा बुरी प्रवणताओं के कारण पवित्र आत्मा की शक्ति या उपस्थिति को अनुभव नहीं कर पाते हैं। लेकिन इन परिस्थितियों में भी प्रभु येसु हमारे साथ रहकर हमें नवचेतना तथा नई स्फूर्ति प्रदान कर सकते हैं। आइए, हम प्रभु के चरणों पर आज यही प्रार्थना करें कि हम सब खीस्तीय भाई-बहन अपने जीवन में, परिवार में, समाज में ईश्वर की वाणी के अनुसार जीवन बिताकर दूसरे भाई-बहनों के लिए अच्छे उदाहरण बनने की कृपा प्राप्त करें।