चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का बारहवाँ इतवार

पाठ: यिरमियाह 20:10-13; रोमियों 5:12-15; मत्ती 10:26-33

प्रवाचक: फ़ादर जॉंनी पुल्लोप्पिल्लिल


आज का पहला पाठ नबी यिरमियाह के ग्रन्थ से लिया गया है। नबी यिरमियाह येरुसालेम के राजकीय घराने से थे। उन्हें भविष्यवाणी की प्रेरणा अल्पायु में ही प्राप्त हो गई थी। उन्होंने लोगों को समझाया कि वे अपने पापों के लिये पश्चात्ताप करें, तभी उनका सुधार होगा। उन्होंने राजा को बाबुल के राजा के विरुद्ध विद्रोह करने से रोका और लोगों को चेतावनी दी कि विद्रोह करने पर नगर तथा मंदिर का विनाश हो जायेगा। इसलिये उन्हें देषद्रोही कह कर बंदीगृह में डाल दिया और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

यिरमियाह के ग्रंथ में उनके जीवन संबंधी प्रचुर उल्लेख मिलते हैं। इन उल्लेखों से पता चलता है कि उनका हृदय अत्यंत कोमल था। ईश्वर द्वारा प्रदत्त संदेश की कठोरता यिरमियाह को अच्छी नहीं लगी, लेकिन फिर भी उन्होंने कर्त्तव्यनिष्ठा की भावना से नबी का कार्य किया। वे कहते हैं- जब मैं बोलता हूँ तो मुझे चिल्लाना, हिंसा तथा विध्वंस की घोशणा करनी पड़ती है। ईश्वर का वचन मेरे लिए निरंतर अपमान तथा उपहास का कारण बन गया है। 

समाज में या राजनीति में जहाँ दो से ज्यादा व्यक्ति होते हैं तो वहाँ गुटबाजी अवष्य होती है। विचारास्पद गुट समाज या किसी भी दल की प्रगति का काम करता है। लेकिन अगर कोई भी गुट दूसरों को नीचा दिखाता या दूसरों की प्रगति के रास्ते में बाधा उत्पन्न करता है तो वह हमेषा दुःखदायी रहता है और समाज को बनाने में नहीं बल्कि बिगाड़ने में लगा रहता है।

ऐसी ही कुछ गुटबाजी के शिकार नबी यिरमियाह होते हैं। नबी यिरमियाह अपने चारों ओर ऐसे लोगों को देखते हैं जो उनके विरुद्ध भुनभुनाते हैं। वे नबी की बुराई चाहते हैं। साधारणतः ऐसे अवसरों पर हम अपने हृदय में बदला लेने की इच्छा को जगाते हैं। लेकिन नबी के विचार कुछ और रहे। उन्होंने प्रभु पर भरोसा रखा और कहा- ‘‘मैं अपने को तुझ पर छोड़ता हूँ क्योंकि तू धर्मी की परीक्षा करता और मन तथा हृदय की थाह लेता है’’। ऐसी ही एक घटना का उदाहरण हम महाभारत में देखते हैं जहाँ कृष्ण पॉडवों और कौरवों को बुलाकर उनसे वर माँगने को कहते हैं- ‘‘तुम्हें मेरी मायावी शक्ति चाहिए या फिर मेरा साथ‘‘? इस पर दुर्योधन ने कहा, ‘‘मायावी शक्ति मिल जाए तो मैं पाँडवों का विनाश कर सकता हूँ‘‘। लेकिन अर्जुन ने कहा, ‘‘आप मेरे सारथी बने’’। सारथी का अर्थ है राह दिखाने वाला। ’’यही मुझे मंजूर है‘‘। इस प्रकार कृष्ण अर्जुन को दिषा निर्देश देते अर्थात राह दिखाते हैं। अंत में विजय सत् की होती है, मायावी शक्ति की नहीं। 

इस संदर्भ में अपनी ही बुलाहट पर विचार करना उचित होगा। हर व्यक्ति की अपनी एक बुलाहट है। परेशानियाँ आना या होना स्वाभाविक है। पर ऐसे क्षणों में प्रभु में भरोसा रखने पर उनकी वाणी अपने पथ को अग्रसर करने में तथा अपने दुश्मनों के फंदे से बचाने में सहायक सिद्ध होती है। कभी-कभी सच बोलने का परिणाम कुछ कठोर हो सकता है क्योंकि कहा जाता है कि सच्ची बातें हमेषा अच्छी नहीं होती और अच्छी बातें हमेषा सच्ची भी नहीं होती। कभी-कभी सच्चाई हमें बंदीगृह में भी बंद कर देती है। इसी तथ्य को हम नबी यिरमियाह के जीवन में देख सकते हैं।

हमारे जीवन में भी हमें कई बार ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। हमारी क्या प्रतिक्रिया होती है? कभी-कभी हमारे सच्चे एवं अथक परिश्रम के बावजूद भी हमें तीखी आलोचना का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी हमारे विरुद्ध षडयंत्र रचनेवाले हमें हर तरफ से घेरते हैं और यह स्वाभाविक ही है कि हम डर जाते हैं। ऐसे में लोग साधारणतः दो प्रकार के रवैये अपनाते हैं। एक प्रतिकार का, दूसरा निराषा का। लेकिन ईश्वर का रास्ता कुछ अलग ही है। आज के सुसमाचार में प्रभु कहते हैं, ‘‘उनसे नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते; बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।‘‘ जिसे हम कीमती समझते हैं उसे हम खोना नहीं चाहते हैं। प्रभु हमें यह समझाना चाहते हैं कि इस दुनिया की जिन्दगी की तुलना में स्वर्गीय जीवन बहुत अधिक मूल्यवान है। इसलिये अगर स्वर्गीय जीवन की प्राप्ति के लिए हमें यह जीवन खोना भी पड़े तो फिर भी हमें चिंता की कोई ज़रूरत नहीं है। इस दुनिया में शैतानिक शक्ति हमारे विरुद्ध कार्य जारी रखती है ताकि हम थक कर अनन्त जीवन की आषा खो दें। इसलिये प्रभु हमें हिम्मत बँधाते हैं कि हम उन शक्तियों पर ईश्वर की कृपा से विजय पा सकेंगे। विश्वासी के जीवन में डर की कोई जगह नहीं। जो ईश्वर पर अपनी आस्था रखता है, उसे किसी भी व्यक्ति या परिस्थिति से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। प्रभु येसु जो अपने परमपिता की इच्छा को पूरा करने के लिये नफ़रत, तिरस्कार, घृणा और हिंसा की हर परिस्थिति से गुज़रते हुए भी निडर होकर आगे बढ़े, ही हमारा नमूना है। आइए हम भी उन्हीं की तरह निडर होकर अपने खीस्तीय जीवन में आगे बढ़ें।


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Praise the Lord!