आजकल हम देखते हैं कि समाज में लोग बहुत ही चिंता और तनाव मेंजीते हैं। हर किसी को किसी-न-किसी बात की चिंता लगी रहती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हमारी चिंता ही हमारी चिता बन जाती है। यह बात आज के समाज की ही नहीं बल्कि हमेशा लोगों की समस्या रही है। यही बात आज के सुसमाचार का मुख्य विचार बिन्दु है। प्रभु येसु स्पष्ट करते हैं कि चिंता वही मनुष्य करता है जो विश्वास में कमज़ोर है, जो हमेशा यही सोचता रहता है कि आने वाले समय में उसके पास खाने, ओढ़ने, पहनने के लिये होगा कि नहीं। ऐसा नहीं है कि वे गरीब एवं निर्धन हो, बल्कि यह उनके अल्पविश्वास का ही परिणाम है कि वे हमेशा जीवन की आवश्यकताओं के बारे में डूबे रहते हैं। इन सभी चिंताओं का मूल धन-दौलत है। यही कारण है कि प्रभु कहते हैं, ‘‘तुम ईश्वर और धन-दोनों की सेवा नहीं कर सकते‘‘। धन एक अच्छा सेवक है लेकिन बुरा स्वामी है। जब धन हमारे जीवन का उद्देश्य बन जाता है तो वह हमारा स्वामी बन जाता है। परिणामस्वरूप ईश्वर, जो हमारे जीवन के रचियता एवं वास्तविक स्वामी हैं, तिरस्कृत हो जाते हैं। यह बात येसु के अनुयायियों में नहीं होनी चाहिये। सांसारिक आवश्यकतायें एवं धन उनके जीवन की प्राथमिकता नहीं बने। इस बात को बताने के लिये येसु कहते हैं कि आकाश के पक्षी और खेत के फूल जो मानव की तरह सक्षम नहीं हैं भी अपना जीवन बडे़ ही तनाव मुक्त होकर जीते हैं। क्योंकि पिता ईश्वर उनकी सभी ज़रूरतों का बंदोबस्त करते हैं। जब पिता इन पक्षियों और फूलों का ध्यान रखते हैं तो वे क्यों उनकी अपनी संतान का ख्याल नहीं करेंगे
एक मछुआरा दोपहर के समय समुद्र तट के किनारे बड़े ही आराम से सो रहा था। यह वह समय था जब अन्य सभी मछुआरे बीच समुद्र में मछली पकड़ रहे थे। इस दौरान एक विदेशी पर्यटक वहाँ से गुजरा और उसने इस मछुआरे को आनन्द की नींद सोते हुए देखा। पर्यटक ने मछुआरे को उठाकर उससे पूछा कि इस समय जब सभी मछुआरे मछलियाँ पकड़ रहे हैं तो वह क्यों नहीं मछली पकड़ रहा? इस पर उस मछुआरे ने उत्तर दिया कि सुबह की पहली खेप में ही उसे इतनी मछलियाँ मिल गयी है जो उसे सारे दिन के काम के दौरान मिला करती थी इसलिये सारा दिन वह विश्राम और आनन्द में बिता रहा है। इस पर पर्यटक ने कहा तब तो तुम्हें और अधिक बार बीच समुद्र में जाकर मछली पकड़ना चाहिये। इस पर मछुआरे ने पूछा, ‘‘इससे क्या होगा?‘‘ तब पर्यटक ने उत्तर दिया, ‘‘इससे तुम और अधिक मछलियाँ पकड़ सकोगे।‘‘ ‘‘इससे मुझे क्या मिलेगा?‘‘ मछुआरे ने पलट कर पूछा। ‘‘तुम इन मछलियों को बेचोगे तो तुम्हें और अधिक धन मिलेगा एवं तुम्हारी आय बढ़ेगी,‘‘ पर्यटक ने उत्तर दिया। इस पर मछुआरे ने फिर पूछा, ‘‘अधिक धन मिलने व आय बढ़ने से क्या होगा?‘‘ पर्यटक ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘अधिक धन होने से तुम और अधिक नावें खरीद सकते हो एवं और अधिक मज़दूरों को लगा सकते हो, इस तरह तुम्हारा व्यवसाय बहुत अधिक फैल जायेगा और तुम एक बड़े धनी सम्पन्न मछुआरे बन जाओगे। अपनी धन समृद्धि से तुम एक आलीशान घर बनाकर अपने परिवार के साथ रह सकते हो।‘‘ इस पर इस मछुआरे ने बड़े ही दार्शनिक अंदाज में पूछा यह सब हो जाने पर मुझे क्या मिलेगा?‘‘ तब पर्यटक ने कहा, ‘‘यह सब होने पर तुम बड़े आनन्द एवं चैन की नींद सो सकते हो।‘‘ तब मछुआरे ने उस पर्यटक से कहा, ‘‘मैं भी तो अभी बडे़ आनन्द और चैन की नींद सो रहा था और यदि अधिक धन कमाकर यही मुझे मिलना है तो वह तो मैं पा चुका हुँ।‘
इस मछुआरे का जीवन के प्रति रूख बहुत ही खीस्तीय था। क्योंकि न तो वह आलसी था और न ही लालची। जो वर्तमान के लिये ज़रूरी था वह उसके पास था और भविष्य ईश्वर के हाथ में सौंप कर चैन की बंसी बजा रहा था। जो सुख उसके पास था वह शायद दुनिया के सबसे समृद्ध व्यक्ति के पास भी न हो।
अगर हम अपने जीवन पर दृष्टि डालें तो पायेंगे कि हमारे जीवन में पैसा कभी भी पूरा नहीं था। हमेशा हमें पैसे की जरूरत लगी रहती है। दस साल पहले हमारी तनख्याह 800 रूपये रही होगी और तब हम शायद सोचते होंगे कि यह काफी नहीं है। आज शायद हमारी तनख्याह 8000 रूपये हो चुकी होगी लेकिन फिर भी आवश्यकतायें ज्यों कि त्यों बनी हुई हैं और यदि हमारी आय 80,000 भी हो जाये तो भी आवश्यतायें बनी रहेंगी। अधिक आय जीवन की शांति और आनन्द की गारण्टी नहीं है। यदि हमें जीवन में सच्ची खुशी एवं शांति चाहिये तो हमें अपना काम पूरी ईमानदारी से करना चाहिये और जो कुछ भी धन हमारे पास है उससे अपनी आज की आवश्यकता पूरी कर, कल को ईश्वर के हाथ में सौंप कर शांति की नींद सोना चाहिये।