ईश्वर एक है, उनमें तीन जन हैं – पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा। ईश्वर में तीन जन होते हुए भी उनमें एक स्वाभाव है, वे एक हैं। इसी कारण हम ईश्वर को पवित्र त्रित्व कहते हैं। ये तीनों शाश्वत हैं तथा अंनत काल से विद्यमान हैं। इनमें एक आगे एवं दूसरा पीछे; एक कम या दूसरा ज्यादा आदि जैसी कोई भी मानवीय सोच नहीं है। अंतर केवल इनका मानवीय इतिहास में प्रकट होने के तरीके, घटनाओं एवं कालखण्ड में है।
पिता और आत्मा को कभी किसी ने नहीं देखा। लोगों ने केवल ईश्वर की वाणी को ही सुना तथा उनके पवित्र आत्मा का अनुभव किया था। ईश्वर का दर्शन भी प्रतीकात्मक ही था। स्वर्गदूत के रूप में (उत्पत्ति 32:29), झाडी में जलती हुयी आग (निर्गमन 3:2), अग्नि (निर्गमन 19:17), बादलों में (निर्गमन 34:5), मंद समीर की सरसराहट में (1राजाओं 19:12) आदि। इसी प्रकार पवित्र आत्मा के प्रकटीकरण का उल्लेख भी अनेक अवसरों पर मिलता है। यूसुफ (उत्पत्ति 41:38) बिलआम (गणना 24:2) ओतनीएल (न्यायकर्ताओं 3:2) समसोन (न्यायकर्ताओं 15:14), साऊल (1 समूएल 10:6 एवं 11:6), दाऊद (1समूएल 16:13) योब (योब 33:4), नबी एलियाह (1राजाओं 18:12), नबी एजे़किएल (एजे़किएल 37:14 एवं 39:29) आदि में।
मूसा लोगों को संबोधित करते हुए कहते हैं, ’’जिस समय प्रभु ने होरेब पर्वत पर अग्नि के भीतर से तुम्हारे साथ बात की, तुमने कोई आकृति नहीं देखी। इसलिए सावधान रहो। अपने लिए किसी प्रकार की मूर्ति नहीं बनाओ...’’( विधि-विवरण 4:15-18) मूसा ने ऐसा इसलिए कहा कि सचमुच में उन्होंने ईश्वर को नहीं देखा था इसलिए उस अदृश्य ईश्वर की आकृति बनाना न सिर्फ गलत होता बल्कि घोर पाप भी। किन्तु येसु के आगमन से मनुष्य ने ईश्वर को देखा भी है।
नये विधान में येसु के आगमन से ईश्वर ने मानव के रूप में अपना रूप भी प्रकट किया। इस प्रकार पवित्र त्रित्व के मानव इतिहास में प्रकटीकरण की प्रक्रिया पूरी हुयी। येसु ईश्वर के पुत्र थे तथा इस बात का साक्ष्य स्वयं धर्मग्रंथ देता है। ’’वे महान होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे।...वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।’’ (लूकस 1:32,35) ’’निश्चय ही, यह ईश्वर का पुत्र था।’’ (मत्ती27:54) ’’यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।’’ (मारकुस 9:7) ’’ईश्वर के पुत्र! हम से आप को क्या?’’(मत्ती8:29) ’’आप मसीह हैं, आप जीवंत ईश्वर के पुत्र है’’।(मत्ती16:16) ’’वह वास्तव में ईश्वर थे...ईसा मसीह प्रभु हैं।’’ (फिलिप्पियों 2:6,11) ’’...हमने उसे सुना है। हमने उसे अपनी आंखों से देखा है। हमने उसका अवलोकन किया और अपने हाथों से उसका स्पर्श किया है। ....यह शाश्वत जीवन, जो पिता के यहाँ था और हम पर प्रकट किया गया हैं।’’(1 योहन 1:1-2) येसु अपने प्रवचनों में पिता और पवित्र आत्मा के बारे में स्पष्ट शिक्षा देते हैं। उसके साथ-साथ, वे अपने आप को पुत्र के रूप में परिचय कराते हैं तथा पिता और पवित्र आत्मा के बराबर बताते हैं।
जिस प्रकार इन्द्रधनुष के रंगों को हम अलग नहीं कर सकते हैं, उसी प्रकार पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा का एक ही अस्तित्व है। जहाँ पिता है, वहाँ पुत्र और पवित्र आत्मा भी हैं। येसु के बपतिस्मा के समय उनके बारे में बादल में से पिता की वाणी, पवित्र आत्मा का कपोत के रूप में उन पर उतरना, पवित्र त्रित्व की उपस्थिति को दर्शाती है। ’’बपतिस्मा के बाद ईसा तुरन्त जल से बाहर निकले। उसी समय स्वर्ग खुल गया और उन्होंने ईश्वर के आत्मा को कपोत के रूप में उतरते और अपने ऊपर ठहरते देखा। और स्वर्ग से यह वाणी सुनाई दी, ’’यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।’’ (मत्ती3:16-17) जब येसु कहते हैं, कि मैं पवित्र आत्मा को भेजूँगा तो इसका यह मतलब नहीं है कि पवित्र आत्मा येसु के साथ नहीं है। जब सूरज चमकता है तो चाँद और तारे दिखाई नहीं देते है। किन्तु वे उसी प्रकार बने रहते हैं। प्रभु येसु कहते हैं, “मैं अकेला नहीं हूँ, क्योंकि पिता मेरे साथ है” (योहन 16:32)। योहन 17:21 में प्रभु येसु प्रार्थना करते हैं, “ पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें”। इसी प्रकार येसु के दुनिया में रहते समय पवित्र आत्मा का अनुभव मानव नहीं कर पाता था। येसु की प्रतिज्ञा पवित्र आत्मा के अनुभव प्रदान करने की थी।
पवित्र त्रित्व को मानवीय बुद्धि से समझना अत्यंत कठिन है। यह ऐसा गूढ़ रहस्य है जिसे हम विश्वास तथा प्रार्थना के द्वारा, आत्मा की प्रेरणा से दिल की गहराईयों में अनुभव कर सकते हैं। जब जब हम क्रूस का चिन्ह बनाते हैं तब हम पवित्र त्रित्व पर अपना विश्वास प्रकट करते हैं।