पेंतेकोस्त का अर्थ है, ’’पचासवाँ’’। पास्का त्योहार के बाद 49 दिवस बीत चुके हैं। यहूदी लोग 7 को पूर्ण अंक याने पूर्णता का प्रतीक मानते थे। एक हफ्ते में 7 दिन होते हैं। पास्का त्योहार के बाद इस प्रकार के सात हफ्ते बीत चुके हैं। सात गुणा सात बार- उनचास। आज पचासवाँ दिन है। यह सचमुच पूर्णता का दिन है क्योंकि प्रभु येसु का मुक्तिकार्य आज उसकी चरमसीमा तक पहुँचता है।
प्रभु येसु ने अपनी मृत्यु के पहले येरुसालेम शहर में ’’ऊपर सजाये हुए’’ (लूकस 22:12) कमरे (upper room) में प्रेरितों के साथ अंतिम भोजन किया। उस भोजन के दौरान प्रभु येसु ने अपने मुक्तिकार्य क्रूस पर पूरिपूर्णता तक पहुँचाने की सांस्कारिक अभिव्यक्ति के रूप में यूखारिस्तीय संस्कार की स्थापना की। प्रेरित-चरित 1:13 में यह कहा गया है कि प्रभु के स्वर्गारोहण के बाद वे पुनः उसी अटारी में ठहरे हुए थे क्योंकि येसु ने उन्हें आदेश दिया था कि वे येरुसालेम न छोड़े, बल्कि पिता ने जो प्रतिज्ञा की है, उसकी प्रतीक्षा करते रहें। प्रभु के आदेश के अनुसार ग्यारह प्रेरित एक हृदय होकर नारियों, माता मरियम तथा अनेक भाईयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे। प्रेरित-चरित अध्याय एक में हम यह भी पढ़ते हैं कि प्रेरितों ने यूदस की जगह पर मथियस को चुना जो योहन के बपतिस्मा से लेकर प्रभु के स्वर्गारोहण तक उनके साथ थे। ये सब पेंतेकोस्त के दिन अटारी में एकत्रित थे, जब पवित्र आत्मा अग्नि के जीभों के रूप में हर एक के ऊपर उतरते हैं। वे सब के सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये तथा उनके जीवन पूरी तरह बदल गये।
अब पवित्र आत्मा के आगमन से प्रेरितों के जीवन में जो परिवर्तन हुआ था उस पर थोड़ा मनन्-चिंतन करना उचित होगा। प्रेरितों के आगमन तक प्रेरित डरे सहमें थे। वे द्वार बंद किये बैठे थे। पवित्र आत्मा के आगमन से उनका भय दूर हो जाता है। वे निडर होकर प्रभु येसु की मृत्यु तथा पुनरुत्थान का सुसमाचार लोगों को सुनाते हैं। हम भी विभिन्न प्रकार के डर के शिकार हैं। कोई मृत्यु से डरता है, तो कोई जीवन से; कोई पिता से डरता है, तो कोई पति से; कोई टीचर से डरता है, तो कोई अपरिचित से; कोई दोस्त से डरता है, तो कोई दुष्मन से; कोई बीते हुए कल से डरता है, तो कोई आनेवाले कल से; कोई अंधेरे से डरता है, तो कोई प्रकाश से; कोई परीक्षा से डरता है, तो कोई इन्टरव्यू से। इस प्रकार हमारे भय की सूची का कोई अंत नहीं है। अगर हम पवित्र आत्मा को ग्रहण करेंगे तो सभी प्रकार का भय दूर हो जायेगा। पवित्र आत्मा हमारी अस्तव्यवस्ता और सभ्रान्ति को दूर करेंगे।
पवित्र आत्मा का दूसरा वरदान है सहभागिता। वे हमारे बीच में से मनमुटाव, कलह, विसंगति तथा मतभेद दूर करते हैं तथा सामंजस्य एवं मैत्री लाते हैं। जब पवित्र आत्मा का आगमन हुआ तब येरुसालेम में पारथी, मेदी और एलामीती; मेसोपोतामिया, यहूदिया, और कप्पादुकिया, पोंतुस और एशिया, फ्रगिया और पप्फ़ुलिया, मिस्र और कुरेने के निकटवर्ती लिबिया के निवासी, रोम के यहूदी तथा दीक्षार्थी प्रवासी, क्रेत और अरब के निवासी उपस्थित थे। वे अपनी-अपनी भाषा बोलते और समझते थे। उनके बीच में कुछ घनिष्ठता नहीं थी। परन्तु जब पवित्र आत्मा से प्रेरित प्रभु के शिष्य उनसे बातें करते हैं तो वे सब के सब अपनी-अपनी भाषा में उन बातों को सुनते और समझते हैं।
पवित्र आत्मा हर प्रकार का भेदभाव दूर करते हैं। हम भी भेदभाव करते हैं- भाषा के नाम पर, जाति के आधार पर, धर्म के नाम पर, संस्कृति के नाम पर, पैसों के आधार पर आदि। अगर हम पवित्र आत्मा को हमारे हृदय में प्रवेश करने देते हैं, तो ये सब भेदभाव मिट जायेंगे। हम एकता, भाईचारा तथा सहभागिता महसूस करेंगे।
इसके अलावा, पवित्र आत्मा हमारे कमज़ोर विश्वास को पक्का बनाते हैं। जब पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर शिष्यों ने सुसमाचार की घोषणा की, तो हज़ारों लोगों ने प्रभु में विश्वास किया। जब हम पवित्र आत्मा को ग्रहण करते हैं तो हमारा विश्वास भी सुदृढ़ बनेगा।
हम सबों ने बपतिस्मा तथा दृढ़ीकरण संस्कारों में पवित्र आत्मा को ग्रहण किया है। शायद उस पवित्र आत्मा की शक्ति को हम पहचान नहीं पा रहे हैं। तो आइए हम प्रभु से निवेदन करें कि वे हमें पवित्र आत्मा के वरदानों तथा फलों से भर दें।