यहूदी लोग स्वर्गारोहण से परिचित थे। उत्पत्ति ग्रंथ, अध्याय 5 में आदम से लेकर नूह तक की वंशावली का विवरण दिया गया है। जब हम विभिन्न व्यक्तियों के विषय इस अध्याय में दिये गये विवरण को पढ़ते हैं तो यह देखने को मिलता है कि हरेक के विवरण के अंत में यह लिखा गया है कि वह ’’मरा’’। लेकिन हनोक के बारे में एक अतिरिक्त बात बतायी गयी है कि वह अन्तर्धान हो गया। उनके बारे में धर्मग्रंथ बताता है कि, ’’जब हनोक पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उसे मतूषेलह नामक पुत्र हुआ। हनोक ईश्वर के मार्ग पर चलता था। मतूषेलह के जन्म के बाद वह तीन सौ वर्ष और जीता रहा तथा उसे और पुत्र तथा पुत्रियाँ हुईं। इस प्रकार हनोक कुल मिलाकर तीन सौ पैंसठ वर्ष तक जीवित रहने के बाद मरा। हनोक ईश्वर के मार्ग पर चलता था। वह अन्तर्धान हो गया, क्योंकि ईश्वर उसे उठा ले गया।’’ (उत्पत्ति 5: 21-24)। इसलिये लोगों का यह विश्वास था कि वे स्वर्ग में उठा लिये गये थे। इब्रानियों के नाम पत्र में हम पढ़ते हैं कि विश्वास के कारण मृत्यु का अनुभव किये बिना हनोक आरोहित कर लिये गये (इब्रानियों 11: 5)।
राजाओं के दूसरे ग्रंथ, अध्याय 2 में हम पढ़ते हैं नबी एलियाह उनके उत्तराधिकारी के साथ गिलगाल चले गये, वहाँ से बेतेल, बेतेल से यरीखो चले गये। फिर दोनों यर्दन नदी पार करके आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक अग्निमय अष्वों सहित एक अग्निमय रथ ने आकर दोनों को अलग कर दिया और एलियाह एक बवण्डर द्वारा स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये। यहूदी लोग पुराने विधान के इन दोनों महापुरुषों से परिचित थे।
पुनरुत्थान के प्रभु येसु ने स्त्रियों को दर्षन देकर उन से कहा, ’’डरो नहीं। जाओ और मेरे भाइयों को यह संदेश दो कि वे गलीलिया जायें। वहाँ वे मेरे दर्षन करेंगे।’’ (मत्ती 28: 10) वहाँ गलीलिया की पहाड़ी पर शिष्यों के देखते-देखते प्रभु येसु स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये और एक बादल ने उन्हें शिष्यों की आँखों से ओझल कर दिया।
हनोक और नबी एलियाह के उठा लिये जाने और प्रभु येसु के स्वर्गारोहण में अंतर ज़रूर हैं। पुराने व्यवस्थान के उक्त विवरण स्वर्ग में उद्ग्रहण के संबंध में हैं। माता मरियम के बारे में भी कलीसिया का यह विश्वास है कि वे स्वर्ग में उठा ली गई। उद्ग्रहण इस सच्चाई पर ज़ोर देता है कि वे अपनी शक्ति से स्वर्ग नहीं गये, परन्तु ईश्वर ने उनको स्वर्ग में उठा लिया।
हनोक ईश्वर के मार्ग पर चलता रहा, इसलिये वह स्वर्ग में उठा लिया गया। एलियाह ने, एक महान नबी होने के कारण, ईश्वर की वाणी सुनाई, इसलिये वे स्वर्ग में उठा लिये गये। प्रभु येसु ने न केवल ईश्वर की वाणी सुनाई, बल्कि वे क्रूस मरण तक आज्ञाकारी बन गये।
हनोक और एलियाह जीवित थे जब वे स्वर्ग में उठा लिये गये थे, परन्तु प्रभु येसु मर गये, जी उठे और स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये।
मूसा ने इस्राएलियों को नियम देने के पहले चालीस दिन उपवास किया। नियम के पुनःस्थापन के पहले नबी एलियाह ने भी चालीस दिन तक उपवास किया। पुनरुत्थान के बाद प्रभु येसु ने पुनः अपने शिष्यों को स्वर्गराज्य की शिक्षा में मज़बूत बनाने हेतु 40 दिन इस दुनिया में बिताये और अपनी अनुपस्थिति में सुसमाचारीय कार्य को जारी रखने के लिये शिष्यों को तैयार किया।
एलीशा ने एलियाह की आत्मिक शक्ति का दोहरा भाग माँगा तो एलियाह ने एक शर्त रखी- ’’यदि तुम मुझे उस समय देखोगे, जब मैं आरोहित कर लिया जाता हूँ तो तुम्हारी प्रार्थना पूरी होगी।’’ प्रभु येसु बिना किसी शर्त, शिष्यों को पवित्र आत्मा प्रदान करते हैं। प्रभु कहते हैं, ’’यदि मैं जाऊँगा, तो मैं उसे तुम्हारे पास भेजूँगा। जब वह आयेगा, तो पाप, धार्मिकता और दण्डाज्ञा के विषय में संसार का भ्रम प्रमाणित कर देगा।’’ (योहन 16: 7-8)
प्रभु येसु स्वर्ग चले जाने के पहले यह बताते हैं कि वे हमारे लिये जगह तैयार करने जा रहे हैं। खीस्तीय विश्वासी इसी आशा में इस दुनिया में जीवन बिताते हैं। जीवन के हर पल हमें स्वर्ग की ओर हमारी यात्रा के लिये अपने आप को तैयार करते रहना चाहिये। प्रभु उसे अपने प्यारे ’’पिता का घर’’ कहते हैं। आइए, हम उस के लिए अपने आप को तैयार करना न भूलें।