हम बड़ी श्रद्धा भक्ति से पास्का का त्योहार मना रहे हैं। यह खीस्तीय धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है। यह सबसे बड़ा त्योहार क्यों माना जाता है? इस विषय में संत पौलुस 1 कुरिन्थियों 15:14-19 में कहते हैं, ‘‘यदि मसीह नहीं जी उठे, तो हमारा धर्मप्रचार व्यर्थ है और आप लोगों का विश्वास भी व्यर्थ है‘‘। यदि मसीह पर हमारा भरोसा इस जीवन तक ही सीमित है, तो हमारी दशा सबसे अधिक दयनीय है। हम मसीह के जीवन पर नज़र डालकर देखें। येसु अपने को मसीह के रूप में प्रकट करते हैं, चमत्कार दिखाते हैं, लोगों को चंगा करते हैं और अचंभे के अद्भुत कार्य करते हैं। उनकी बातें सुनने के लिए भीड़ लग जाती है। लोग उनके कपड़े छूकर भी संतृप्त हो जाते हैं। लोग उनको इस दुनिया का राजा बनाना चाहते हैं, लेकिन वे उनके बीच में से चुपके से निकल जाते हैं। यहूदियों के नेता उन्हें पकड़वाते हैं, कोड़े लगवाते हैं और उनके कंधों पर क्रूस लाद देते हैं। वे उनके सिर पर काँटों का मुकुट रखते हैं और उनको दो डाकुओं के बीच में क्रूस पर चढ़ाकर मार डालते हैं। लोगों को ऐसा लगता है कि अच्छा आदमी था, बहुत बुरा हुआ! वे आगे कुछ सोच नहीं पाते हैं। कई सवाल भी उठते हैं जैसे- अगर वे शक्तिशाली हैं तो उन्होंने शत्रुओं के फंदों को क्यों नहीं ठुकराया? चमत्कार करके उनको पराजित क्यों नहीं किया? उनके शिष्य भी हताश हो जाते हैं। उनकी यह हताशा हम एम्माउस जाने वाले शिष्यों के शब्दों में पाते हैं (देखिये लूकस 24:19-21); ‘‘बात ईसा नाज़री की है। वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे। हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदण्ड दिलाया और क्रूस पर चढ़वाया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करने वाले थे। यह आज से तीन दिन पहले की बात है।’’ शिष्य निराश होकर अपने-अपने कामों पर लौट गये। अगर ईसा मसीह की जीवनी का अंत इस प्रकार होता, तो आज ईसाई धर्म नहीं रहता। ‘‘यदि मसीह पर हमारा भरोसा इस जीवन तक ही सीमित है तो हम सब मनुष्यों में सब से अधिक दयनीय हैं‘‘(1 कुरि. 15:19)। लेकिन संत पौलुस आगे कहते हैं, ’’किन्तु मसीह सचमुच मृतकों में से जी उठे। जो लोग मृत्यु में सो गये हैं, उनमें वह सबसे पहले जी उठे। चूँकि मृत्यु मनुष्य द्वारा आयी थी, इसलिये मनुष्य द्वारा ही मृतकों का पुनरुत्थान हुआ है। जिस तरह सब मनुष्य आदम से संबंध के कारण मरते हैं, उसी तरह सब मसीह से संबंध के कारण पुनर्जीवित किये जायेंगे।’’ (1 कुरि.15:20-22)
आप और मैं इस दुनिया को हिलाने वाली, सभी लोगों को आष्चर्यचकित करने वाली एक महान घटना के प्रमाण के रूप में यहाँ उपस्थित हैं। इस सत्य को हम पास्का रहस्य कहते हैं। यह कैसा रहस्य है? यह ईश्वर के आत्मत्याग और आत्म-बलिदान का रहस्य है।
एक डाकू के बारे में ‘वालजीन‘ नामक एक फ्राँसीसी उपन्यास में लिखा गया है। एक दिन उसकी गिरफ्तारी का वारण्ट निकलता है। वह भागते-भागते एक धर्माध्यक्ष के निवास स्थान पर पहुँचता है। वहाँ पर बिशप स्वामी उसको अपने साथ भोजन करने के लिये बुलाते हैं। वह बिशप स्वामी के साथ ही बैठकर भोजन कर रहा था। चारों तरफ दृष्टि दौड़ाना चोर की आदत ही है। उसने देखा कि टेबिल पर छुरी-काँटे रखे थे जो चाँदी के थे। खाने के बाद उसे सोने के लिये एक अच्छा कमरा दिया गया। अपनी जिन्दगी में वह कभी इतने अच्छे कमरे में नहीं सोया था। लेकिन उसे नींद नहीं आयी। टेबिल पर उसने जो चाँदी के छुरी-काँटे देखे थे उसी की याद उसे परेशान कर रही थी। आधी रात को उठकर उसने चाँदी के छुरी-काँटों को चुरा लिया और वहाँ से भाग गया। लेकिन वह पुलिस से बच नहीं पाया और बाद में पकड़ लिया गया। जब यह पता चली कि उसने बिशप स्वामी के निवास स्थान में चोरी की थी तो पुलिस उसे बिशप स्वामी के सामने ले आई। जब पुलिस ने यह बताया कि इस डाकू के पास से बिशप स्वामी के घर के छुरी-काँटे बरामद किये गये हैं जिन्हें यह चुराकर भाग रहा था तो बिशप स्वामी ने पुलिस से कहा, ‘‘यह आदमी तो कल मेरा मेहमान था और इसको मैंने इन छुरी-काँटों के अलावा चाँदी का एक मोमबत्तीदान भी उपहारस्वरूप दिया था, लेकिन यह केवल छुरी-काँटें ही ले गया और मोमबत्तीदान को छोड़ गया।‘‘ फिर बिशप स्वामी ने अपने भवन में जाकर चाँदी का एक मोमबत्तीदान लेकर उसे दे दिया। पुलिस को लगा कि उनसे गलती हुई और वे माफी माँगकर वहाँ से चले गये। इसके उपरांत बिशप स्वामी ने उस डाकू से कहा, ‘‘मैने तुम्हें एक मित्र का दर्जा प्रदान किया है, अब से डाकू नहीं बनना।‘‘ वह उस डाकू के जीवन में मन-परिवर्तन का दिन था। कई सालों बाद जब वह डाकू अपनी मृत्युशय्या पर था तो उसने अपनी बेटी को बुलाकर उसे वही मोमबत्तीदान दिया और कहा, ‘‘इसे संभालकर रखो। इसी ने मुझे डाकू से दोस्त बनाया था। तुम्हें भी इससे प्रेरणा मिलेगी।‘‘
पास्का के अवसर पर प्रभु हमें याद दिलाते हैं कि प्रभु ने अपने लहू से हमें पवित्र किया है। हमें अपनी पवित्रता बनाये रखना है। हम डाकू थे, प्रभु ने हमें दोस्त बनाया है। संत पौलुस रोमियों को लिखते हुए कहते हैं, ‘‘हम पापी ही थे जब मसीह हमारे लिये मर गये थे। इससे ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया (रोमियों 5:8)।‘‘ हमारे बीच में आज एक मोमबत्ती जल रही है जो प्रभु येसु का प्रतीक है। उस बड़ी मोमबत्ती से हमने भी अपनी-अपनी छोटी-छोटी मोमबत्तियाँ जलाई है। जिस प्रकार बिशप स्वामी उस डाकू वालजीन को पाप के अंधकार से अनन्तजीवन के प्रकाश में ले गये, उसी प्रकार प्रभु येसु खीस्त सारी मानवजाति को पाप से मुक्त करके अनंतजीवन की ज्योति में लाये हैं। आइए हम दृढ़संकल्प लें कि हम कभी भी पुनः उस अंधेरे में नहीं लौटेंगे।
हम लोगों ने विभिन्न प्रकार के प्रायष्चित के कार्यों को सम्पन्न करके आज के इस त्योहार के लिए अपने आप को तैयार किया है। आज खीस्त से प्राप्त इस ज्योति को कभी भी बुझने न दें। पास्का मोमबत्ती हमें आत्मत्याग की शिक्षा देती है। जिस प्रकार यह मरते-मरते दूसरों को जीवन की ज्योति प्रदान करती है, वैसे ही हम भी आत्मत्याग और आत्म बलिदान की भावनाओं को अपनाकर खीस्तीय संदेश को फैलाते जायें। इसी कृपा के लिये हम पुनर्जीवित प्रभु से विनती करें।