चक्र अ के प्रवचन

पवित्र गुरुवार

पाठ: निर्गमन 12:1-8,11-14; 1 कुरिन्थियों 11:23-26; योहन 13:1-25

प्रवाचक: फादर लियो बाबू


आज की पूजन विधि हमें दो महानतम संस्कारों की ओर खींचती है। वे हैं यूखारिस्त और पुरोहिताई। इन दोनों संस्कारों में एक अटूट सम्बन्ध है। एक बार दो पुरोहित एक साथ मिस्सा चढ़ा रहें थे। एक ने मुख्य याजक के रूप में मिस्सा चढ़ाया तो दूसरे ने सहयाजक के रूप में प्रवचन का कार्य संभाला। सहयाजक पुरोहित थोड़ा बीमार थे और शारीरिक रूप से भी बहुत कमज़ोर थे। ज्यों ही वे प्रवचन देने के लिये आगे बढ़े वे बीमारी एवं कमज़ोरी के कारण धम से नीचे जा गिरे। वे पुनः उठे और बलि वेदी को पकड़कर खड़े होते हुये बोले, ‘‘मैं बलिवेदी को दृढ़ता से पकड़े रहूँगा जिससे मैं दुबारा न गिरूँ।‘‘ उनकी इस बात को सुनकर दूसरे पुरोहित ने कहा, ‘‘आपने अभी जो कहा, वह अपने आप में एक प्रभावशाली प्रवचन है’’। हम में से हरेक व्यक्ति के लिये यह एक सबक है कि अगर हम यूखारिस्त से जुड़े रहेंगे तो हम पाप में नहीं गिरेंगे, हमारे विश्वास को पक्का करने की शक्ति यह संस्कार हमें प्रदान करेगा। इस सत्य को जो समझता है वह रविवारीय मिस्सा बलिदान के अवसर पर अनुपस्थित रहने का कोई बहाना नहीं खोजेगा। 

सन् 1979 में अमरीका के जाने माने धर्माध्यक्ष फुलटन जे. शीन का निधन हुआ था। उनकी मृत्यु के कुछ ही दिन पहले किसी ने उनसे पूछा, ‘‘आप तो बहुत ही अनुभवी व्यक्ति हैं, आपके जीवन ने हज़ारों को प्रभावित किया तथा आप से सैकड़ों लोगों ने प्रेरणा पायी है, हम यह जानना चाहते हैं, क्या आप को किसी से प्रेरणा मिली या आप के जीवन को किसी ने प्रभावित किया?‘‘ इस पर उन्होंने जवाब दिया, ‘‘मैंने सबसे प्रभावशाली प्रेरणा ग्यारह साल की एक चीनी बालिका से प्राप्त की‘‘। इसका विवरण देते हुए वे आगे बताते हैं कि जब साम्यवादियों ने आक्रमण कर चीन पर अपना अधिकार जताया तो सैनिकों ने एक पुरोहित को उन्हीं के निवास स्थान पर नज़रबन्द कर दिया। उन्होंने चर्च में घुसकर, प्रकोश खोल कर उसमें से परमप्रसाद निकालकर ज़मीन पर फेंक दिया। उस समय 11 साल की एक चीनी बालिका चर्च में प्रार्थना कर रही थी। सैनिकों की आवाज़ सुनकर वह एक कोने में छुप गयी। वह छुपे हुये सब कुछ देख रही थी। रात के अंधेरे में वह वापस चर्च आई और लगभग एक घण्टे प्रार्थना करने के पश्चात् उसने झुककर ज़मीन पर पड़े हुये परमप्रसाद की रोटियों में से एक रोटी अपनी जीभ से ग्रहण की। ऐसा वह हर रोज़ करती रही - एक घण्टे की प्रार्थना और फिर झुककर जीभ से परमप्रसाद ग्रहण करना। एक रात को प्रार्थना पूरी कर वह परमप्रसाद ग्रहण करके बाहर निकलने वाली थी कि अंधेरे में गलती से उसका पैर किसी चीज़ से टकरा गया और इस आवाज़ को सुनकर सैनिक जो पहरा दे रहा था जाग गया। उसने तुरन्त लाईट चालू कर दी। ज्यों ही सैनिक ने लड़की को देखा वह भड़क उठा और उसने उस लड़की को गोली मार दी। पुरोहित जो बाजू वाले कमरे में नज़रबंद था भी आवाज़ को सुनकर जाग उठा। पुरोहित के देखते-देखते वह लड़की ज़मीन पर गिरकर मर गई। बाद में पता चला कि जिस दिन लड़की को गोली मारी गयी थी उस दिन उसने बिखेरे गये परमप्रसाद की आखिरी रोटी ग्रहण की थी। 

धर्माध्यक्ष फुल्टन जे. शीन आगे कहते हैं कि जिस दिन उन्होंने इस लड़की और घटना के बारे में सुना इससे वह इतने प्रभावित हो गये कि उसी क्षण से उन्होंने यह दृढ़-संकल्प किया कि वे प्रतिदिन एक घण्टा परमप्रसाद की आराधना में बितायेंगे। जो निणर्य धर्माध्यक्ष ने लिया था उसका पालन उन्होंने अपनी मृत्यु तक किया। उनका यह अनुभव था कि उस एक घण्टे की आराधना से उन्हें जो आंतरिक शक्ति मिलती थी उसी से ही वे दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना कर पाते थे। आज हम परम प्रसाद की स्थापना का पर्व मना रहें हैं। आज हम भी मिस्सा बलिदान के बाद परमप्रसाद में उपस्थित प्रभु की आराधना करेंगे। 

अंतिम भोजन के बाद प्रभु ने अपने शिष्यों को अपने साथ जागते रहने को कहा। इसी प्रकार कलीसिया हम से भी यह आग्रह करती है कि आज मिस्सा बलिदान के बाद हम उनके साथ जागते रहें। प्यार के कई प्रतीक हमें देखने को मिलते हैं। लेकिन प्यार का सबसे महान और प्रतिष्ठित प्रतीक परमप्रसाद ही है। परमप्रसाद की आराधना हमें वह शक्ति प्रदान करती है जो हमें अपने दैनिक जीवन के संकटों से गुज़रने में मदद देती है। 

आज की पूजनविधि में हम उस घटना की भी याद करते हैं जब प्रभु येसु ने अपने शिष्यों के पैर धौये। जब वे पेत्रुस के पास आते हैं तो पेत्रुस उन्हें अपने पैर धोने नहीं देते। प्रभु पेत्रुस को यह सिखाते हैं कि अगर शिष्यों के पैर प्रभु के द्वारा नहीं धोये गये तो उनके लिये शिष्य बना रहना असंभव है। यूखारिस्त में प्रभु हमारे जीवन को धोकर शुद्ध करते हैं ताकि हम अपने सेवा कार्य द्वारा दूसरों को शुद्ध कर सकेंगे। जो ईश्वर द्वारा शुद्ध नहीं किये गये हैं, वे दूसरों की सेवा कैसे कर पायेंगे? 

प्रभु येसु के जीवन काल में लोग ज्यादातर पैदल चलते थे। जब भी कोई व्यक्ति पैदल चलकर घर आता था तो यहूदी घर के सेवक या दास उसके पैरों पर पानी डालकर उसके थके-मांदे एवं गंदे पैरों को आराम एवं स्वच्छता प्रदान करते थे। इसके बाद राहगीर को ज़्यादा थकान महसूस नहीं होती थी। इसी प्रकार यूखारिस्त में प्रभु हमें शुद्ध करते हैं और हमें नई स्फूर्ति प्रदान करते हैं। मरणासन्न रोगियों को जो परमप्रसाद दिया जाता है उसे लातीनी भाषा में ‘वियातिकुम‘ (viaticum) कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘यात्रा के लिये रसद‘। जो विश्वासी अपनी मृत्यु द्वारा स्वर्ग राज्य की ओर यात्रा करते हैं उनके लिये परमप्रसाद एक आध्यात्मिक रसद है। जब पैर धोने के लिये येसु पेत्रुस के पास आते हैं तो पेत्रुस बहुत संकुचित हो जाते हैं और मना करते हैं। प्रभु उनसे कहते हैं, ‘‘यदि मैं तुम्हारे पैर नहीं धोऊँगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई सम्बंध नहीं रह जायेगा‘‘। तब पेत्रुस को ज्ञात होता है कि प्रभु के शिष्य बनने के लिये प्रभु के द्वारा शुद्ध किया जाना आवश्यक है। इसलिये पेत्रुस कहते हैं, ‘‘प्रभु! तो मेरे पैर ही नहीं, मेरे हाथ और सिर भी धोइए‘‘। जब प्रभु हमें धोकर शुद्ध करते हैं तो हम प्रभु के बन जाते हैं। अपने शिष्यों के पैर धोने के बाद प्रभु उनसे कहते हैं, ‘‘यदि मै - तुम्हारे प्रभु और गुरु- ने तुम्हारे पैर धोये हैं, तो तुम्हें भी एक-दूसरे के पैर धोने चाहिए‘‘।

यूखारिस्तीय समारोह में प्रभु हमारे पैर धोते हैं, हमारे विश्वासी जीवन की यात्रा में हमें नवस्फूर्ति प्रदान करते हैं, ताकि हम अपने दैनिक जीवन में एक-दूसरे के पैर धो सकें। सच्ची यूखारिस्तीय भक्ति सच्ची मानव सेवा का रास्ता दिखाती है। तो आइए भक्तिभाव से हम आज की पूजन विधि में प्रभु के समक्ष अपने आप को समर्पित करें ताकि प्रभु हमें शुद्ध करके अपने शिष्य बनायें और जो शक्ति यह संस्कार हमें प्रदान करता है उससे दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने की कोशिश करें।


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Praise the Lord!