चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का छठवाँ इतवार

पाठ: प्रवक्ता 15:15-20; 1 कुरिन्थियों 2:6-10; मत्ती 5:17-37

प्रवाचक: फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


Preetam मनुष्य ईश्वर की सर्वोच्च सृष्टि है। कई दृष्टिकोणों से इंसान को अन्य सारे जीवों से भिन्न बनाया है। कैथोलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा के अनुच्छेद 1730 में हम पढ़ते हैं - ईश्वर ने मनुष्य को एक तर्कसंगत प्राणी बनाया, उसे उसने ऐसी गरिमा प्रदान की, जिसकी बदौलत वह अपने कार्यों को स्वयंआरंभ और नियंत्रित कर सकता है। "ईश्वर ने मनुष्य को अपने लिए निर्णय करने की स्वतंत्रता खुद मनुष्य के हाथ में छोड़ दी, ताकि वह अपने स्वयं के सृष्टिकर्ता की तलाश कर सके और स्वतंत्र रूप ईश्वर में अपनी पूर्णता प्राप्त कर सके।"

आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन हमारे सामने इसी बात को रखता है। वचन कहता है – “उसने अपनी आज्ञायें एवं आदेश प्रकट किये और अपनी इच्छा प्रकट की है। यदि तुम चाहते हो, तो आज्ञाओं का पालन कर सकते हो; ... मनुष्य के सामने जीवन और मृत्यु दानों रखे हुए हैं, जिसे मनुष्य चुनता, वही उसे मिलता है।" प्रारम्भ से ही ईश्वर ने यह व्यवस्था मनुष्य के लिए बनाई और हमारे आदि माता-पिता को जीवन और मृत्यु के बीच चुनने को कहा। उत्पत्ति 2:17 में प्रभु ने मनुष्य से कहा- ‘‘तुम वाटिका के सभी वृक्षों के फल खा सकते हो, किंतु भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाना; क्योंकि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, तुम अवश्य मर जाओगे।” उन्होंने क्या चुना? मृत्यु। ईश्वर ये कभी नहीं चाहता था कि इंसान ईश्वर का सान्निध्य छोडकर अपने हमेशा के विनाश का मार्ग चुनेंगे। विधि-विवरण 30:19 में प्रभु इस बात को स्पष्ट करते हैं – “आज मैं तुम लोगों के सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई दोनों रख रहा हूँ तुम लोग जीवन को चुन लो।” दो विकल्पों में से एक चुनने की आजादी के पीछे ईश्वर की ख़्वाहिश हमेशा यही रहती है कि हम जीवन को चुनें। एज़ेकिएल 18:23 में प्रभु का वचन कहता है - क्या मैं दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न हूँ? क्या मैं यह नहीं चाहता कि वह अपना मार्ग छोड दे और जीवित रहे?” और वचन 31 में प्रभु बहुत ही व्याकुल होकर कहते हैं – “अपने पुराने पापों का भार फेंक दो। एक नया हृदय और एक नया मनोभाव धारण करो। प्रभु ईश्वर यह कहता है - हे इस्राएलियों! तुम क्यों मरना चाहते हो?”

मनुष्य शैतान के झूठे बहकावों में आकर इस सत्य को पहचान नहीं पाता और अपने दैनिक जीवन में ऐसे चुनाव करता है जो कि उसे अनन्त जीवन से दूर करते हैं। संत योहन 10:10 में प्रभु येसु कहते हैं - चोर याने शैतान चुराने मारने और नष्ट करने आता है, परन्तु येसु इसलिए आये कि हम बहुतायत का जीवन पायें। जी हाँ ईश्वर हमें जीवन देना चाहते हैं। परमपिता ईश्वर ने हमें इतना प्यार किया है कि उसने हमारे लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया ताकि उन पर विश्वास करने वाले अनंत जीवन पा सकें।

जी, हाँ प्रिय विश्वासियों , येसु हमें हमेशा का जीवन देने के लिए आये हैं। उन्होंने हमें अपने उपदेशों औरशिक्षाओं के द्वारा, उस अनन्त जीवन को चुनने का रास्ता हमें बताया है, जैसा कि आज के सुसमाचार में हमने उनकी शिक्षाओं को सुना है। उन्होंने पुरानी शिक्षाओं को एक नए नज़रिये से देखना व छोटी से छोटी गलतियों व पापों को गंभीरता से लेने व धार्मिकता के मार्ग पर चलने हमें सिखाया है| क्या हम प्रभु के वचनों को अपने जीवन में सर्वोच्च स्थान देते हैं जैसा कि संत पेत्रुस ने अपने जीवन में येसु के वचनों की महत्ता को समझकर प्रभु येसु से कहा था - प्रभु हम किस के पास जायें, आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का सन्देश है।

तो आईये हम प्रभु के वचनों को सुनें, उन पर चलें और अपने दैनिक जीवन में ईश्वर को चुनें, अनंत जीवन को चुनें, मृत्यु को नहीं। आमेन।


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Praise the Lord!