फिलिस्तीन का प्रथम खीस्तीय समुदाय यहूदी धर्म से परिवर्तित लोगों का था। यही कारण था कि उन्हें भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। धर्म परिवर्तन करने का खामियाज़ा उन्हें बहुत सारी मुश्किलों का सामना करके चुकाना पड़ा। उनकी समस्या थी कि पुराने विधान में मूसा द्वारा दिये गये नियमों में से ऐसी कौन-कौन सी संहिता का पालन करना और कौन-कौन से नियमों को छोड़ना है, जैसे बच्चों का खतना किया जाये या नहीं, विश्राम दिवस का कड़ाई से पालन किया जाये या नही इत्यादि। लेकिन प्रभु येसु के मन में ऐसी कोई बात नहीं थी। प्रभु येसु न पुराने व्यवस्थान का बारीकी से पालन करने को कहते हैं और न ही उसे पूरी तरह छोड़ देने को कहते हैं। वास्तव में प्रभु येसु खीस्त तो एक नया जीवन जीने को कहते हैं और वह है प्रेम का जीवन। प्रभु येसु खीस्त हमें बहुत सारे उदाहरणों से यह समझाना चाहते हैं कि वे मूसा द्वारा दिये नियमों को समाप्त करने नही बल्कि उन्हें सम्पूर्ण करने आये हैं।
हम जानते हैं कि संहिता का विधिवत पालन करना हमारे लिये कितना सहज है। लेकिन इसकी असली ज़रूरत हम समझ नहीं सकते हैं। बाहरी रूप से संहिता का पालन करना ही काफी नहीं है, बल्कि इसमें मन की सही समझदारी आवश्यक है। आज के सुसमाचार में मूसा द्वारा लोगों के लिये दी गई संहिता की स्वयं प्रभु येसु खीस्त, ईश्वर के पुत्र द्वारा दी गई प्रेम की संहिता से तुलना की जाती है।
किसी समाज या संस्था को सही रूप से संचालित करने के लिये नियमों का होना अत्यावश्यक है। यह किसी व्यक्ति विशेष की स्वतंत्रता को सीमित करने के लिये नहीं बल्कि उसके अधिकार और स्वतंत्रता को निश्चित करने के लिये होता है। जिस तरह एक माँ अपने बच्चों की परवरिश करने में तथा उन्हें परामर्श देने में थकावट का अहसास नहीं करती है, उसी तरह पिता ईश्वर भी इस्राएलियों को बार-बार परामर्श देते हैं। ईश्वर ने उनके त्योहार, पारिवारिक जीवन की सफलता, शारीरिक स्वास्थ्य और सामुदायिक जीवन की सफलता के लिये, ईश्वर की सच्ची पूजा और आराधना करने का नियम उन्हें दिया है।
एक बार महात्मा गांधी ने अपने वक्तव्य में कहा, ‘‘अगर सभी व्यक्तियों ने बाइबिल के इस कथन, आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत का पालन किया होता तो दुनिया अंधों और दाँतरहित लोगों से भर जाती’’। यह बात किस हद तक सच है? इस्राएलियों के लिये मूसा द्वारा दिया गया नियम अर्थात संहिता, हिंसा को काबू में करने के लिये दिया गया था। क्योंकि बदले की भावना इतनी बढ़ गयी थी कि दोष के अनुपात में सजा और कष्ट ज्यादा दिया जाता था। प्रभु येसु खीस्त हमें, इस भावना को दूर करके इससे ऊपर उठने का सुझाव देते हैं। दुश्मनी, क्रोध और हत्या जैसे कुकर्मों के विचार मानव के हृदय में एक छोटी-सी चिंगारी के समान उत्पन्न होते हैं और यदि इस पर सावधानी नहीं बरती जाये तो यह भयंकर आग की लपटों का रूप धारण कर हमारा विनाश कर सकते हैं। इसलिए स्वयं पर संयम रखना ज़रूरी है। तभी तो शांति, क्षमा और समानता की भावनायें सहज रूप से हृदय में आयेंगी।
प्रभु येसु द्वारा हमारे जीवन में बहुत सारी चुनौतियाँ रखी गयी हैं। यह सब सुनकर एवं देखकर लगता है कि दैनिक जीवन में इनको लागू करना और जीना असंभव-सा है। लेकिन आज का पहला पाठ जो ‘‘प्रवक्ता ग्रंथ’’ से लिया गया है, हमसे कहता है कि अगर हमारी इच्छा शक्ति प्रबल हो तो ईश्वर की संहिता का पालन करना कठिन नहीं है। घर में बाल-बच्चे किसी के दबाव में नहीं बल्कि स्वेच्छा से रहते हैं। वे अपने माता-पिता, भाई-बहन और परिवार के सभी सदस्यों का प्यार पाकर आनंदित होते हैं। उन्हें भरोसा है कि ऐसी खुशी उन्हें किसी दूसरी जगह नहीं मिल सकती है। ये बातें उस परिवार से संबंधित हैं, जहाँ प्रेम और सहयोग की भावना होती है।
ईश्वर ने हमें अपने प्रिय पुत्र-पुत्रियों की तरह पवित्र परिवार में रखना चाहा। उन्होंने हमें अपने अधिकार और शक्ति की सीमा में रखकर स्वतंत्र बनाया और जीवन की सारी खुशियाँ और आनंद दिया। इसे स्वीकार या इनकार करना, उसकी संहिता का पालन या उल्लंघन करना हमारे ऊपर निर्भर है। अगर हम ईश्वर के इस प्रेम का मार्गदर्शन स्वीकार करते हैं तो प्रभु येसु द्वारा आज के सुसमाचार में दी गई संहिता और नियम को सहज रूप से समझ सकते हैं।
हमारे प्रभु येसु मसीह मूसा द्वारा दिये गये नियमों में कोई नयी संहिता नहीं जोड़ते हैं। बल्कि वे उसमें प्रेम की भावना डालते हैं और प्रेम भावना उत्पन्न करने को कहते हैं। वे ईश्वरीय प्रेम को समझने में हमारी सहायता करते हैं। ईश्वर के प्रति प्रेम, वफादारी, ईमानदारी और सेवा-भावना मानव के हृदय में उत्पन्न होती हैं और उसका महत्व आंतरिक मनोवृत्ति से जुड़ा है। हम इस मिस्सा पूजा में ईश्वर की संहिता का पालन करने की शक्ति और सच्ची खुशी पाने के लिये प्रार्थना करें क्योंकि ईश्वरीय आज्ञापालन ही वास्तविक खुशी का साधन है। आइए हम इसका खुशी से पालन करने का प्रयत्न करें।