आज के वचन के केन्द्र बिंदु है अंधकार और प्रकाश। अंधकार और प्रकाश करीब-करीब संसार के सभी दर्शनों, विचारों और धर्मों की विषय- वस्तु रहा है। चाहे भारतीय दर्शन हो या फिर यूनानी दर्शन, सुमेरो-अकार्डियन साहित्य हो या फिर एशिया के समता धर्म के सिद्धांत हो प्रकाश और अंधकार के विरोधाभास का वर्णन अवश्य मिलता है। पवित्र बाइबिल में यह विषय उत्पत्ति ग्रन्थ से लेकर प्रकाशना ग्रंथ तक अपना वर्चस्व बनाये रखता है। अलग-अलग विचारकों के अनुसार इन दोनों चीजों को लेकर मान्यतायें भिन्न-भिन्न हैं। हम पवित्र बाइबल के प्रकाश में इस विषय के ऊपर चर्चा करेंगे।
पवित्र बाइबल में अंधकार को हमेशा ईश्वर और अच्छाई का विरोधी बताया गया है। शैतान और उसके कार्यों की तुलना अंधकार से की गई है। वहीं ईश्वर की तुलना ज्योति अथवा प्रकाश से की गई है। जहॉं प्रकाश होता है वहॉं अंधकार नहीं रह सकता। अतः प्रकाश का आभाव ही अंधकार है। जो अंधकार के कार्य करता है वह प्रकाश अथवा ज्योति का परित्याग करता है।
आज संसार में अंधकार और अंधकार के कार्यों का बोल-बाला है। विभिन्न प्रकार की बुराईयों का काला जाल आज मानवता को अपने आगोश में लिए जा रहा है। प्रभु येसु इस अंधकारमय संसार में ज्योति बनकर आये हैं। संत योहन 8:12 में वे कहते हैं - ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।’’ ईश्वर ज्योति है और वह इस संसार से अंधकार को हमेशा के लिए दूर करने आये है। संत योहन का पहला पत्र 3:8 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘जो पाप करता है वह शैतान की संतान है। क्योंकि शैतान हमेशा से पाप करता आया है। ईश्वर का पुत्र इसीलिए प्रकट हुआ कि वह शैतान के कार्यों को समाप्त कर दे।’’ येसु तो इसीलिए इस दुनिया में आये हैं। और वे चाहते हैं कि हर एक के जीवन से शैतान के अंधकार का राज्य समाप्त हो जाये। परन्तु यह मुझे और आपको चुनना है कि हम अंधकार से मुक्ति पाना चाहते हैं या फिर नहीं। हम किसको पसंद करते हैं संसार की ज्योति प्रभु येसु को या फिर अंधकार के नायक शैतान को। संत योहन 3:19 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘ज्योति संसार में आयी है और मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अंधकार को अधिक पसन्द किया, क्योंकि उनके कर्म बुरे थे। जो बुराई करता है, वह ज्योति से बैर करता है और ज्योति के पास इसलिए नहीं आता कि कहीं उसके कर्म प्रकट न हो जायें। किंतु जो सत्य पर चलता है, वह ज्योति के पास आता है, जिससे यह प्रकट हो कि उसके कर्म ईश्वर की प्रेरणा से हुए हैं।’’
आज हम अपने जीवन में झॉंक कर देखें कि हमारे कर्म किससे प्रेरित हैं, अंधकार के अधिपति शैतान से या फिर जीवन की ज्योति येसु ख्रीस्त से। यदि हमारे कर्म ईश्वर द्वारा प्रेरित हैं तो हम आज के पहले पाठ में जैसा बताया गया है वैसा आचरण करेंगे। हम अपनी रोटी भूखों के साथ खायेंगे, बेघर दरिद्रों को अपने यहॉं ठहरायेंगे, निर्वस्त्रों को पहनायेंगे, और अपने भाई से मुँह नहीं मोडेंगे। ऐसा करने पर आज के वचन में प्रभु कहते हैं - ‘‘तब तुम्हारी ज्योति उषा की तरह फूट निकलेगी...यदि तुम भूखों को अपनी रोटी खिलाओगे और पददलितों को तृप्त करोगे, तो अंधकार में तुम्हारी ज्योति का उदय होगा और तुम्हारा अंधकार दिन का प्रकाश बन जायेगा।
जी हॉं! यदि हम बुराईयों का पूर्ण परित्याग कर देंगे तो पाप के अंधकार से हम ईश्वर की ज्योति में आ जायेंगे। प्रभु येसु आज के सुसमाचार में हम सब को ज्योति बनने के लिए आह्वान करते हुए कहते हैं - तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने जलती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें। जि हॉं हम हमारे भले कार्यों के द्वारा अपने जीवन में ज्योति बनकर चमक सकते हैं।
तो आईये हम अंधकार के सब कार्यों को त्यागकर भले व प्रेममय कार्यों को अपनायें व मसीह की ज्योति में चलने वाले बनें। ताकि हम स्वयं मसीह की ज्योति बनकर इस संसार के पापों में भटक रही मानवता को प्रभु के पास ले जा सकें। आमेन।