चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का चौथा इतवार

पाठ: सफ़न्याह 2:3,3:12-13; 1 कुरिन्थियों 1:26-31; मत्ती 5:1-12अ

प्रवाचक: फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


Preetamकुछ दिनों पहले हमने ख्रीस्त जयंति का पर्व मनाया, उसके बाद पवित्र परिवार का पर्व मनाया, तत्पश्चात ईश माता का पर्व मनाया, फिर प्रभु-प्रकाश का पर्व और आज हम प्रभु येसु के मंदिर में समर्पण का पर्व मना रहे हैं। इन सब पर्वों में हम पवित्र परिवार को एक साथ पाते हैं। प्रभु के मंदिर में समर्पण की घटना को जब हम ऊपरी तौर से पढते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि सब कुछ सामान्य सा है। माता मरियम और संत युसूफ बालक येसु को लेकर ठीक वैसे ही मंदिर में आते हैं, जैसे अन्य यहूदी माता-पिता परंपरागत रूप से करते आ रहे थे। लेकिन जब हम गहराई से इन बातों पर मनन चिंतन करते हैं तो हम पाते हैं कि यह एक बहुत ही रहस्यमय और गहरे अर्थ भरी घटना है। संत लूकस अपने सुसमाचार में लेवी ग्रंथ 12:1-8 व निर्गमन 13:2 का हवाला देते हुए इस घटना का वर्णन करते हुए लिखते हैं - ‘‘जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तो वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरूसालेम ले गये; जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है।’’ जब हम लेवी ग्रंथ का उद्धरण पढते हैं तो पाते हैं कि मंदिर में समर्पण की धर्मविधी खतना एवं शुद्धीकरण से तालुक रखती है।

यूँ देखें तो, येसु और मॉं मरियम दोनों, संहिता की किसी शुद्धीकरण की रीति को पूरा करने लिए बाध्य नहीं थे। परन्तु यह उनकी महान विनम्रता को दर्शाता है। उनकी विनम्रता से भी बढ़कर बालक येसु को अन्य यहूदी बच्चों की भॉंति प्रभु के मंदिर में चढ़ाना संत योहन 1:14 में कहे गये वचन की पूर्ण पुष्टी करता है - ‘‘शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।’’ उनका मंदिर में चढाया जाना यह बतलाता है कि येसु में ईश्वर पूरी तरह मनुष्य बन गये हैं। माता मरियम और संत यूसुफ जहॉं येसु के मनुष्य होने के पक्ष को पुख्ता करते हैं। वहीं धर्मी सिमियोन और नबिया अन्ना येसु के ईश्वर होने के पक्ष को पुख्ता करते हैं। जहॉं सिमियोन एक ओर येसु को सब राष्ट्रों का मुक्तिदाता घोषित करता है। वहीं दूसरी ओर उनके घोर दुखभोग एवं क्रूस मरण द्वारा माता मरियम को होने वाले असहनीय दर्द की भविष्यवाणी करता है - एक तलवार आपके हृदय को आर-पार भेदेगी।

इस रहस्य की और गहराई में यदि जायें, तो हम पवित्र परिवार के अंदर पवित्र यूखारिस्त समारोह की एक झलक पाते हैं। पवित्र यूखारिस्त और माता मरियम में एक घनिष्ट संबंध है। जैसा हम देखते हैं कि पवित्र यूखारिस्त में दो मुख्य भाग होते हैं: 1- पवित्र वचन की धर्मविधी और 2 - पवित्र यूखारिस्त की धर्म विधी। पहले भाग में माता मरियम अपने जीवन में ईश्वर के वचन को न केवल सुनती है परन्तु उसे अपने अंदर धारण करती है। तथा आज के इस पर्व में माता मरियम येसु को मंदिर में चढाती हैं। यह मिस्सा के दूसरे भाग - यूखारिस्तीय धर्म विधी की आरम्भिग विधी है - भेंट अथवा चढावा। जैसे हम रोटी और दाखरस प्रभु की वेदी पर चढाते हैं माता मरियम ने बालक येसु को हमारे लिए बलिदान चढने हेतु समर्पित कर दिया। जैसे भेंट में चढाई गई रोटी और दाखरस की भेंट हमारे प्रभु येसु के कलवारी पर चढाये गये उस येसु के बलिदान की याद है जिसे आज के दिन उनकी माता ने मंदिर में चढाया था। येरूसालेम मंदिर में अर्पित येसु का वही शरीर एक दिन कलवारी पर हम सब के पापों के खातिर चढाया जाता है। और मरियम इस पूरे मुक्तिकार्य में येसु के साथ रहती है। प्रभु येसु माता मरियम के द्वारा मंदिर में अर्पित वह चढ़ावा है जिसने हमारे उद्धार के लिए सूली चढ़कर हमें पाप-मुक्त किया है।

आज का यह पर्व हर एक ख्रीस्तीय परिवार को व हर माता-पिता को आह्वान करता है कि हम भी अपने बच्चों को ईश्वर को समर्पित करें। उन्हें यह विश्वास दिलायें कि वे ईश्वर के हैं, संसार के नहीं। हम आज की दुनिया में हमारे बच्चों को संसार और संसार की बहुत सारी चीजें तो ज़रूर देते हैं और उन्हें संसार का बना रहे हैं पर हम उन्हें ईश्वर का ज्ञान, और ईश्वर की भक्ति से दूर कर रहे हैं। हम उन्हें अच्छी पढाई, अच्छी नौकरी और सफलता हासिल करना तो सिखा रहे हैं परन्तु कहीं न कहीं इस अंधी दौड में हम इन सब से ज्यादा जो आवश्यक है उसे भूल रहे है या नज़र अंदाज कर रहे हैं। संत मत्ती के सुसमाचार 6:33 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीज़ें तुम्हें यों ही मिल जायेगी।’’ आईये हम हमारे बच्चों को ईश्वर को समर्पित करें और उन्हें ईश्वर से जुडकर, ईश्वर के प्रेम एवं सान्निध्य में रहते हुए जीवन जीना सिखायें, उन्हें प्रभु में बढना सिखायें। आमेन।


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