खुशी की खोज सभी मनुष्य करते हैं और उसे पाने के लिये विभिन्न रास्ते अपनाते हैं। लेकिन असलियत तो यह है कि जिसमें मनुष्य खुशी खोजता है, उसमें वह खुशी नहीं पाता और पाता भी है तो वह भी कुछ समय के लिये। एक शराबी व्यक्ति शराब की बोतल में खुशी की खोज करता है। जब नशा उतर जाता है तो उसे यह पता चलता है कि वह खुशी नकली एवं क्षणिक मात्र है। ज़्यादातर लोग सच्ची और अनन्त खुशी नहीं बल्कि उत्तेजना और सुख खोजते हैं। सभी लोग खुशी पाना चाहते हैं लेकिन वे उसे गलत जगह पर और गलत तरीके से खोजते हैं।
आज के सुसमाचार में येसु अपने शिष्यों को सच्ची खुशी और अनन्त आनन्द की राह दिखाते हैं, जो दुनियावी चीज़ें नहीं दे सकती। प्रभु की शिक्षा और दुनिया की शिक्षा में बहुत अंतर है। जब प्रभु गरीबों को धन्य घोषित करते हैं तो दुनिया धनियों को धन्य घोषित करती है। जब प्रभु विनम्र लोगों को धन्य कहते हैं तो दुनिया चतुर-सियाने लोगों को धन्य कहती है। जब प्रभु दुखियों को धन्य कहते हैं, तो दुनिया हँसी-मजाक करने वालों को धन्य कहती है। जब प्रभु भूखे-प्यासे लोगों को धन्य कहते हैं, तो दुनिया खाने-पीने वालों को धन्य कहती है। जब प्रभु दयालुओं की सराहना करते हैं तो दुनिया शक्तिशालियों को प्रोत्साहन देती है। जब प्रभु निर्मल हृदय वालों को धन्य मानते हैं, तो दुनिया शारीरिक सुन्दरता को महत्व देती है। इस प्रकार हम इस दुनिया के मूल्यों तथा स्वर्गराज्य के मूल्यों के अंतर को आसानी से देख सकते हैं।
धन्य हैं जो दीन-हीन हैं, स्वर्गराज्य उन्हीं का है। दीन वह है जो विश्वास करता है कि वह अपनी ही शक्ति से दुःख संकट व मृत्यु पर विजय नहीं पा सकता, जिसे यह विश्वास है कि उसे हर संभव ईश्वर की कृपा की ज़रूरत है। उसे यह ज्ञात है कि धन-दौलत, नाम, काम आदि उसे सुरक्षा नहीं दे सकते, सिर्फ ईश्वर ही उसका एक मात्र सहारा है। एक फ्रांसीसी कहावत है, ‘‘मृत्यु पर तुम वही अपने साथ ले जा सकते हो, जिसे तुमने दूसरों को दान में दिया है‘‘।
एक बार सम्राट सिकंदर महान चिल्ला चिल्लाकर रो रहे थे। एक मित्र ने उन से पूछा, ‘‘आप क्यों रो रहे हैं? आधी पृथ्वी पर आपका अधिकार है?‘‘ तो उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘लेकिन आधी पृथ्वी तो मेरे अधिकार में नहीं है‘‘। लालच एवं और अधिक कमाने की इच्छा मनुष्य को पागल बना देती हैं। मनुष्य को इस दुनिया में सब कुछ मिल जाता है, फिर भी उसे सच्ची खुशी नहीं मिलती। वह अतृप्त रहता है। अगर सिकंदर महान पूरी पृथ्वी पर अपना अधिकार जमा लेता तो भी वह रोता क्योंकि सारी दुनिया भी मनुष्य को खुश नहीं कर सकती। जब तक मनुष्य ईश्वर को नहीं पायेगा तब तक वह खुश नहीं होगा। आज की दुनिया बैचेन रहती है। लोग खुशी की पहचान भी नहीं कर पा रहे हैं।
एक पर्यटक मध्यप्रदेश के एक गाँव में घुमने आया। गाँव में उसने एक आदमी को दोपहर के समय एक वृक्ष के नीचे लेटा हुआ पाया। उसे लगा कि यह आदमी बहुत आलसी है। देखने में तो वह बहुत गरीब दिखता है। इसलिये उसे काम करके अपनी जिन्दगी सुधारना चाहिए। उसने सोचा कि क्यांे न इसे समझाया जाये। उसने पास जाकर देखा तो पाया कि वह गाँव वाला खर्राटे भरकर सो रहा है। पर्यटक ने गाँव वाले को जगाया और कहा, ‘‘देखो, आप तो बहुत गरीब दिख रहे हो। आप को आलसी नहीं बनना चाहिए। आप को इस वक्त सोने बजाय काम करना चाहिए।‘‘ इस पर गाँव वाले ने पूछा, ‘‘काम करने से क्या मिलेगा?‘‘ पर्यटक ने उत्तर दिया, ‘‘काम करने से आपको पैसा मिलेगा‘‘। गाँववाले ने फिर पूछा, ‘‘पैसे से मैं क्या करूँगा?‘‘ पर्यटक ने कहा, ‘‘पैसे से आप ज़मीन खरीद सकेंगे।‘‘ गाँव वाले ने फिर पूछा, ‘‘ज़मीन से मैं क्या करूँगा?‘‘ उसने उत्तर दिया, ‘‘आप खेती करके और अधिक पैसे कमा सकते हो।‘‘ गाँव वाले ने फिर पूछा, ‘‘उस पैसे से मैं क्या करूँगा?‘‘ उसने कहा, ‘‘उस पैसे से आप कारखाना खोल सकते हैं एवं और अधिक पैसा कमा सकते हैं।‘‘ गाँव वाले ने फिर पूछा, ‘‘और फिर क्या होगा?‘‘ पर्यटक ने उसे उत्तर दिया, ‘‘इससे आप धनी बन जायेंगे, आराम की जिन्दगी बिता पायेंगे और आराम से सो सकेंगे।‘‘ इसपर गाँव वाले ने बड़े भोलेपन से कहा, ‘‘अरे! वही तो मैं कर रहा था।‘‘ खुशी और आराम मन एवं हृदय की वह स्थिति है जब हम चिंताओं से छुटकारा पाते हैं। ईश्वर पर आसरा रखने वालो को ईश्वर शांति और खुशी प्रदान करते हैं।
तो आइए हम ईश्वर के बताये हुए मार्ग पर चलकर अनंत आनन्द और अनश्वर खुशी पाने का प्रयत्न करें।