चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का तीसरा इतवार

पाठ: इसायाह 8:23ब-9:3; 1 कुरिन्थियों 1:10-13,17; मत्ती 4:12-23

प्रवाचक: फादर जीवन किशोर तिर्की


प्रवचन

प्रिय भाइयो-बहनों ईश्वर लोगों को विभिन्न प्रकार से बुलाते हैं। कभी अकेले में बुलाते हैं तो कभी समुदाय के रूप में बुलाते हैं। किसी को व्यक्ति विशिष्ट को बुलाने के उदाहरण बाइबिल में अनेक हैं। समुदाय के रूप में बुलाने का उदाहरण इस्राएली जनता है। ईश्वर विभिन्न मकसदों व उद्देश्यों के लिए बुलाते हैं। कभी किसी को किसी से स्वतंत्र होने के लिए बुलाते हैं तो कभी किसी के अधिनस्त रहने के लिए बुलाते हैं। कभी किसी वस्तु को त्यागने के लिए तो कभी किसी को अपनाने के लिए; कभी किसी के पास जाने के लिए तो कभी किसी से दूर जाने के लिए; कभी बोलने के लिए तो कभी एकांत में शांत बैठने के लिए; कभी किसी कार्य विशेष को करने के लिए तो कभी कुछ कार्यों से परहेज के लिए बुलाते हैं। ये सारी बातें हमें बाइबिल में मिलेगी। हर व्यक्ति ईश्वर के द्वारा बुलाया गया है। कोई व्यक्ति ईश्वर के बुलाहट से वंचित नहीं है। बस इतना है कि कोई ईश्वर की बुलाहट के अनुसार जीवन जीते हैं तो काई अपनी मर्जी का। जो बुलाहट का जीवन जीते हैं वे समाज के लिए मद्द एवं अनिवार्य सिद्ध होते हैं लेकिन जो अपनी मर्जी का जीवन जीते हैं वे समाज के लिए घतक व अनावश्यक सिद्ध हो सकते हैं। तो आवश्यकता है अपनी बुलाहट को सुनने व पहचानने की और उसके अनुसार जीवन जीने की।

आज के प्रथम पाठ में अंधकार में भटकने वालों से अहवान किया गया है कि वे ज्योंति को पहचाने और उसे स्वीकार करे। ‘अंधकार’ का अभिप्राय यहॉं पाप हो सकता है या दुःख-पीड़ा, संकट या किसी प्रकार की कठिनाई हैं जिससे लोग परेशान हो गये हो। यह ज्योति उनके लिए एक बहुत ही राहत देने वाली है। यह ज्योति एक तरह से उन्हें मुक्ति देने वाली है। अतः अंधकार में भटकने वाले लोग उस ज्योति को अपनाने के लिए बुलाये गये हैं।

दूसरे पाठ में हम देखते हैं कि कुरिंथ की कलीसिया विभाजन से ग्रसित है। वे प्रभु येसु को छोड़कर उनके प्राचारक को ही सब कुछ मान बैठें हैं। अतः संत पौलुस येसु को अपनाने व स्वीकार करने के लिए अहवान करते हैं। उनकी उस समय की बुलाहट है कि वे सुसमाचार-प्रचारकों या नेतृत्व करने वालों को नहीं बल्कि येसु मसीह को अपनायें।

सुसमाचार में हम देखते हैं कि योहन गिरफ्तार हो चुका है। येसु अपने मिशन-कार्यों की शुरूआत करते हैं। वे अपने मिशन-कार्यों का आरम्भ इन शब्दों से करते हैं-‘‘पश्चाताप करो। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।’’ योहन ने पश्चाताप पर उपदेश दिया था। अतः योहन जहॉं से अन्त करते हैं येसु वहीं से शुरू करते हैं। अपने मिशन-कार्य के दौर में येसु ने दो भाइयों को-पेत्रुस और अन्द्रेयस को देखा। येसु ने उनसे कहा-‘‘मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊॅंगा।’’ बस ये चंद शब्द थे जिन्हे सुनते ही, बिना विलम्ब वे उनके पीछे हो लिए। कुछ दूर आगे बढ़ने पर येसु ने ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को पाया। येसु ने उन्हे भी बुलाया। वे भी अपनी नाव व पिता को छोड़कर येसु के पीछे हो लिए। उनका नाव अपने और पिता को छोड़ना बहुत ही बडे त्याग को दर्शाता है। उन्हें हर प्रकार के रिश्तों को तोड़ना व छोड़ना पड़ा। इतना ही नहीं उन्हें अपना पेशा जिससे उनकी जीविका चलती थी भी छोड़ना पड़ा। उन्हें अपने आप को खाली करना पड़ा ताकि येसु उन्हें भर सके।

थोमस अलवा इडिसन एक बहुत ही सुप्रसिद्ध एवं बहुकृतिक अविष्कारक माने जाते हैं। इडिसन की शिक्षिका ने कहा था कि इडिसन कुछ सिखने के लायक नहीं है। वह इतना मूर्ख है कि कुछ नहीं सीख सकता है। बारह वर्ष की आयु में उसे विद्यायल से निकाला गया था क्योंकि लोग उसको गूंगा समझते थे। गणित तो उससे बनती नहीं थी। वह ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकता था। इतना ही नहीं उसे शब्दों और भाषाओं में भी कठिनाई थी। उसकी अनुत्पादकता के कारण उसे पेशों से भी भगा दिया गया था।

इडिसन ने अपने पेशे के दौर में लगभग 1,093 अविष्कार कर डाले। इडिसन के लिए हर असफलता सफलता के पत्थरों पर पैर रखने के भॉंति था। इलेकट्रिक बल्ब बनाने की कोशिश में वे सैकड़ो बार असफल रहे। फिर भी बड़ी मासुमियत कहते थे कि -‘‘मैंने यह सिखा कि मुझे 999 तरीकों से इलेकट्रिक बल्ब बनाना नही आता।

सन् 1914 ई. में थोमस इडिसन का कारोड़ों रूपये का नुकसान हो गया जब उसके प्रयोगशाला में आग लग गयी। उनके वर्षों की खोज, उपकरण, वर्षों की परिश्रम का बहुमूल्य अभिलेख सब जलकर राख बन गई। दूसरे दिन सुबह जब वे अपनी आशाओं, सपनों आकांक्षाओं, अभिलाषाओं की राखों के बीच चल रहे थे तो 67 वर्ष के सज्जन इडिसन ने कहा-‘‘महाविपदा में महामूल्य है क्योंकि हमारी हर गलती जल जाती है। ईश्वर को शुक्रिया। हम पुनः शुरूआत कर सकते हैं।’’ अत्याधिक निराशा में अविचलित रहने के हीरो थे थोमस इडिसन। थोमस इडिसन की काबिलयत को उसकी शिक्षिका नहीं देख सकी। थोमस इडिसन को उसकी शिक्षिका कुछ सिखने या करने के लायक नहीं समझती थी। उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि थोमस इडिसन इतने महान अविष्कारक बनेंगे।

उसी प्रकार हम येसु के शिष्यों को देखते हैं। यह सच है कि वे एक साधारण मछुआरे थे। शायद ज्यादा कुछ पढ़े-लिखे भी नहीं रहे होगें। संभवताः मछली फंसाने के अलावा और कुछ ज्यादा ज्ञान उनमें नहीं रह होगा। दुनिया की नज़रों में साधारण मछुए येसु के इतने विशाल मिशन-कार्य के लायक भी नहीं रहे होंगे। पर उनमें कुछ गुण थे जिसे येसु जानते थे, जिसे सिर्फ येसु ने देखा था। इसलिए येसु ने उन साधारण मछुओं को बुलाया। वे जो दुनिया की नज़रों में जीरो थे येसु के मिशन-कार्यों में हीरो बन गये। ये नहीं कि उनमें कमजोरियॉं नहीं थी। मानव स्वभाव की कमजोरियॉं उनमें भी थी। लेकिन जब कोई बुलाहट को स्वीकार कर उसके अनुसार कार्य करते हैं तो मनुष्य की कमजोरियॉं भी ताकत बनकर उभर आती है। अवगुण सगुण में बदल जाते हैं। ईश्वर हर मनुष्य को सुसमाचार प्रसार के लिए ही नहीं बुलाते हैं। हर मनुष्य की बुलाहट अलग-अलग हो सकती है। अतः हरेक को अपनी-अपनी बुलाहट पहचानने और स्वीकार करने की आवश्यकता है। यदि कोई अपने बुलाहट को पहचानने और उसके अनुसार कार्य करता है तो वह उस क्षेत्र में हीरो बन जाता है।

तो आइये जब हम इस समारोह में भाग ले रहें हैं तो ईश्वर से प्रार्थना करें कि हम ईश्वर की बुलाहट को पहचान सकें और उसके अनुसार कार्य कर सकें।


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Praise the Lord!