चक्र अ के प्रवचन

प्रभु येसु का बपतिस्मा

पाठ: इसायाह 42:1-4, 6-7; प्रेरित चरित 10:34-38; मत्ती 3:13-17

प्रवाचक: फादर थॉमस फिलिप


जैसा कि आप लोगों ने गौर किया होगा कि आज के पवित्र ग्रंथ के तीनों पाठ घटना या भविष्यवाणी के रूप में प्रभु येसु के बपतिस्मा की ओर इंगित करते हैं। पहले पाठ में हमने मसीह के आगमन की भविष्यवाणी सुनी जिसमें बताया गया है कि मसीह सर्वोच्च ईश्वर के सेवक होंगे जिन्हें ईश्वर ने अपना आत्मा प्रदान किया है। मसीह न केवल ईश्वर की चुनी हुई प्रजा में बल्कि समस्त राष्ट्रों में न्याय स्थापित करेंगे।

ईश्वर का यह सेवक अपने को प्रकट करने के लिये नहीं चिल्लायेगा, न ही गलियों में उसकी आवाज सुनाई देगी। तात्पर्य यह है कि वह अपनी शिक्षाओं का अनुकरण करने के लिये किसी को बाध्य नहीं करेगा, न ही किसी प्रकार का प्रलोभन देगा। वह शांति से ईश्वर के राज्य का प्रचार करेगा। उसकी वाणी सुनने वालों का परिवर्तन पूर्ण रूप से आंतरिक होगा। यही हृदय परिवर्तन है। ईश्वर का यह सेवक हमारे प्रभु येसु मसीह ही हैं। 

उनके विषय में कहा गया था कि वे पापियों को बचाने आयेंगे। धुआँती हुई बत्ती वे नहीं बुझायेंगे क्योंकि जहाँ ईश्वर की कृपा कार्य करती है वहाँ आत्माओं के बचाये जाने की आशा बनी रहती है। नबी इसायाह अंत में कहते हैं कि मसीह संसार में न्याय स्थापित करेंगे और यह न्याय सांसारिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक होगा।

प्रभु येसु ने कहा - धन्य हैं वे जो न्याय के भूखे और प्यासे हैं, धन्य हैं वे जो दयालु हैं, जो हृदय के स्वच्छ हैं, जो शांति स्थापित करते हैं, जो अत्याचार सहते हैं, जो प्रताड़ित किये जाते है, जो बंदीगृह में डाले जाते हैं और जिनके ऊपर लोग अभियोग लगाते हैं क्योंकि स्वर्गराज्य उन्हीं का है (देखिये मत्ती 5:3-11)। अंत में उनके साथ न्याय किया जायेगा और वे पुरस्कृत किये जायेंगे।

प्रभु येसु ने हमें सत्य का अनुकरण करने के लिये बुलाया है। वे हमारा हाथ थाम कर ले चलते हैं और मार्ग में हमारी रक्षा करते हैं। उन्होंने हमें अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है और अपनी आज्ञायें प्रदान की हैं ताकि अंधों को दृष्टिदान मिले और बंदीगृह के अंधकार में रहने वाले मुक्ति प्राप्त कर सकें। इस प्रकार हम उनकी योग्य प्रजा बन सकें। हम जो ईश्वर की प्रिय प्रजा हैं, संसार की ज्योति हैं पहाड़ पर बसे हुए नगर के समान छिप नहीं सकते। दीपक जला कर कोई पैमाने के नीचे नहीं, बल्कि दीवट पर रखता है ताकि घर के सभी लोगों को ज्योति मिल सके। इसी प्रकार हमारी ज्योति दूसरों के सम्मुख चमकती रहनी चाहिये ताकि दूसरे हमारे भले कार्यो को देखकर हमारे स्वर्गीय पिता की महिमा करें।

हर बपतिस्मा प्राप्त खीस्तीय की बुलाहट है कि वह दूसरों के लिये ज्योति बने। हमारी ज्योति अंधकार में रहने वालों पर चमके, उन पर जो पाप के दास हैं ताकि उनकी आत्मा अंधकार के बंधनों से मुक्त हो जाये। परन्तु हम उन्हें कैसे प्रभु येसु की ओर आकर्षित कर सकते हैं जिन पर वे विश्वास नहीं करते? वे कैसे विश्वास कर सकते हैं, यदि उन्होंने उनके बारे में नहीं सुना! वे कैसे सुन सकते हैं, यदि उन्हें सुनाया नहीं गया हो? और कोई कैसे सुना सकता है यदि वह भेजा नहीं गया हो? पवित्र ग्रंथ कहता है- शुभ संदेश सुनाने वालों के चरण कितने मनोहर लगते हैं (रोमियों 10:4-5)। सच ही है कि यदि अंधकार में रहने वालों पर मसीह की ज्योति नहीं चमकेगी तो वे उसे कैसे प्रतिबिम्बित कर पायेंगे यानि वे दूसरों को शुभ संदेश कैसे सुना पायेंगे? 

हर मनुष्य को अपना निर्णय स्वयं लेने की स्वतंत्रता है। इसलिये वे लोग जो अंधकार में रहते हैं, तब तक अंधकार से मुक्त नहीं किये जायेंगे जब तक वे अपने अंधेपन और गुलामी को पहचान नहीं लेते, हृदय परिवर्तन कर अपने जीवन में ईश्वर की आवश्यकता महसूस नहीं करते और बचाये जाने की तीव्र इच्छा नहीं रखते। 

हम प्रभु भक्तों को प्रार्थना की शक्ति को पहचानना चाहिये और जिन्होंने प्रार्थना की शक्ति को पहचान लिया है, उन्हें चाहिये कि वे ईश्वर से सभी मनुष्यों के लिये मध्यस्थता करें कि प्रभु सभी के हृदयों को नम्र बनायें ताकि वे ईश वचन को विश्वास के साथ ग्रहण करें।

आज के दूसरे पाठ, प्रेरित-चरित में हम संत पौलुस को कहते सुनते हैं - ईश्वर ने ईसा को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से विभूषित किया और वह चारों ओर घूम-घूम कर भलाई करते रहे और शैतान के वश में आये हुए लोगों को चंगा करते रहे, क्योंकि ईश्वर उनके साथ था। इस तरह हम जान सकते हैं कि ईश्वर पक्षपात नहीं करते।

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु के बपतिस्मा का वर्णन है। प्रभु येसु जब योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा ग्रहण करने आये तो योहन ने कहा कि उनको स्वयं प्रभु से बपतिस्मा ग्रहण करने की आवश्यकता है न कि प्रभु को उन से। योहन का बपतिस्मा पश्चात्ताप और पाप स्वीकार का बपतिस्मा था, प्रभु येसु वह बपतिस्मा क्यों ग्रहण करें। प्रभु निष्पाप थे। संत पेत्रुस अपने पहले पत्र 2:22 में कहते हैं - उन्होंने कोई पाप नहीं किया और उनके मुख से कभी छल-कपट की बात नहीं निकली। ऐसे में निष्पाप और निष्कलंक येसु योहन से पश्चात्ताप और पाप-स्वीकार का बपतिस्मा क्यों ग्रहण करें? प्रभु येसु बपतिस्मा ग्रहण करके यहूदियों को बतलाना चाहते हैं कि वे एक समर्पित यहूदी हैं जो उन सभी संहिता और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं जो उस समय के एक सच्चे यहूदी के लिये आवश्यक था।

संत मत्ती 3:16 बताता है कि जैसे ही प्रभु जल से बाहर निकले, उसी समय स्वर्ग खुल गया और उन्होंने ईश्वर के आत्मा को कपोत के रूप में उतरते और अपने ऊपर ठहरते हुए देखा। यहाँ कपोत पवित्र आत्मा का प्रतीकात्मक रूप है। पुराने विधान में कपोत प्रेम का प्रतीक माना गया है। कपोत रूपी पवित्र आत्मा पुत्र ईश्वर पर पिता ईश्वर के प्रेम को प्रकट करते हैं। प्रभु येसु तो प्रारंभ से ही पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थे। कपोत के रूप में पवित्र आत्मा का उनपर ठहरने का अर्थ है कि सभी मनुष्य जाति के लिये प्रभु येसु ही पवित्र आत्मा के स्रोत हैं। स्वर्ग से यह वाणी सुनाई दी, ‘‘यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यंत प्रसन्न हूँ‘‘। यह नबी इसायाह 42:1 के कथन को पूरा करता है- ‘‘यह मेरा सेवक है। मैं इसे संभालता हूँ। मैंने इसे चुना है। मैं इस पर अत्यंत प्रसन्न हूँ‘‘। यह सेवक प्रभु येसु ही है। वे ही मसीह हैं, ऐसे मसीह जो राजदंड से शासन नहीं करते बल्कि सेवक बनकर सुसमाचार सुनाते और दुख सहते हैं।

प्रभु येसु का बपतिस्मा ईश्वर के सेवक के रूप में दुख सहने की शुरुआत और उसकी स्वीकारोक्ति थी। उन्होंने अपनी गिनती पापियों में करवा ली क्योंकि वे संसार के पाप हरने वाले मेमने थे। उनका बपतिस्मा लहू बहाकर मर जाने का पूर्वाभास था। उन्होंने प्रेमपूर्वक पिता की इच्छा के प्रति अपने को पूर्ण रूप से समर्पित किया और हमें पापों से मुक्ति दिलाने हेतु इस मृत्यु के बपतिस्मा को अंगीकार किया। इसलिये उनके बपतिस्मा के समय स्वर्ग जो आदम के पाप के कारण बंद हुआ था, खुल गया।

प्रभु येसु का बपतिस्मा उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान का बपतिस्मा था और हर खीस्तीय बपतिस्मा संस्कार के समय इसमें सहभागी बन जाता है। अपने बपतिस्मा के द्वारा हर खीस्तीय विश्वासी प्रभु येसु के साथ मरता और जी उठता है। जिस प्रकार यर्दन नदी के बपतिस्मा से लेकर क्रूस के बपतिस्मा तक प्रभु येसु ने अपने को, अपने परमपिता का पुत्र साबित किया उसी प्रकार हमें भी स्वयं को अपने बपतिस्मा के समय मिले ईश्वर की संतान बनने के वरदान के योग्य साबित करना चाहिये।


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