आज हम एपीफ़नी का पर्व मना रहे हैं। यह पर्व, सभी राष्ट्रों का पर्व है। क्योंकि इस दिन हम पिता ईश्वर के एकलौते पुत्र के हमारे बीच अर्थात धरती पर साक्षात् मानव रूप में अवतरित होने की खु़शियाँ बाँटते हैं। प्रभु येसु खीस्त जो सभी राष्ट्रों के लिये सच्ची ज्योति बनकर आये, हम सब को इस ज्योति से परिपूर्ण कर देने के लिये बुलाते हैं। साथ ही वे हम से अपेक्षा करते हैं कि हम इस प्रकाश को उन सबों तक पहुँचायें जो अब भी अंधकार में हैं। यह उसी रहस्य के प्रकट होने का, अर्थात खीस्त के रूपावतरण का पर्व, एपीफ़नी का पर्व है। यह ईश्वर के प्रत्यक्ष रूप से मानवता के सम्मुख और मानवता के लिये प्रकट होने का पर्व है। एपीफ़नी पर्व को मनाने का मुख्य आधार वह घटना है जब प्रभु खीस्त, उन पूर्व से आये तीन राजाओं को अपना रहस्य प्रकट करते हैं, जो एक सितारे द्वारा मार्गदर्षित होकर उस गोशाले तक पहुँचते हैं, जहाँ बालक येसु ने जन्म लिया है। ये तीनों विद्वान राजा वहाँ आकर बालक येसु को भेंट देकर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।
इसी सदी की एक घटना की चर्चा मैं अभी करना चाहूँगा जो तीन राजाओं की कहानी का संकेत है। वर्ष 1969 जुलाई में अपोलो-2 अंतरिक्ष यान के चाँद से धरती पर सफल वापसी के बाद, जब इसके अंतरिक्ष यात्री विश्व के अन्य देषों में सद्भावना यात्रा पर निकले, तब उनके लिये सबसे रोचक क्षण वह था जब वे परम धर्मगुरू परम-पूजनीय पॉल छठवें के सम्मुख थे। इन तीनों अंतरिक्ष यात्रियों में से एक एडवर्ट अल्ड्रीन बताते हैं कि संत पापा परम पूजनीय पॉल छटवें ने हमें चीनी मिट्टी की बनी हुई तीन विद्वानों की अलग-अलग रंगों की प्रतिमाएँ दी और उनका अनावरण करते हुये कहा, ‘‘ये तीनों भी सितारे को देखते हुये बालक येसु तक पहुँचे थे और आज तुम तीनों भी सितारों को देखते हुये ही अपने गन्तव्य तक पहुँचे हो।’’ यह सुनकर तीनों अंतरिक्ष यात्री तीन राजाओं की कहानी का अर्थ और गहराई से समझ गये और अपने लक्ष्य को एक नई दिशा देने में जुट गये- खीस्त ज्योति की दिशा। क्योंकि वे तीन राजाओं की कहानी से अनभिज्ञ नहीं थे।
2000 वर्ष पूर्व लोग मसीह की तलाश में भटक रहे थे। हमारे देश में जो हरिजन, ब्राह्मण, क्षूद्र जैसी जाति-वर्ण व्यवस्थाएँ मानवता के विभाजन के मुख्य कारण के रूप में आज व्याप्त हैं, वे 2000 वर्ष पूर्व भी व्याप्त थीं। आज तो फिर भी अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिये अनेक राजनेता हैं परंतु एक समय वह था जब कोई नहीं था। जो अमीर था वह और अमीर होता जा रहा था और जो ग़रीब था वह और ग़रीब होता जा रहा था। पीड़ितों की पुकार कोई नहीं सुनता था। उस समय के नबी लोगों को सांत्वना देते एवं विश्वास दिलाते थे कि बहुत शीघ्र एक मानवपुत्र जन्म लेगा, जो आप सभी को अन्याय और अत्याचारों से बचायेगा, मुक्ति दिलायेगा। कौन है यह मानव? कौन होगा वह मसीह जिसका विश्वास वे दिलाते थे?
उन दिनों, जहाँ गै़र-यहूदियों पर रोमी साम्राज्य का निरन्तर अत्याचार हावी था, उन असहायों का मंदिरों में प्रवेश निषेध था, यहाँ तक कि उन्हें वहाँ सर्वसामान्य व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त जल भी पीने का अधिकार नहीं था। ऐसी भयावह स्थिति में पीर-पैगम्बर कहते थे कि तुम्हें बचाने के लिये एक मसीह जन्म लेगा। यह सचमुच उन असहाय, निर्बल लोगों के धैर्य की कठिन परीक्षा थी। मसीह के आने की यह एक लंबी प्रतीक्षा थी। अंततः एक स्वर्गदूत माता मरियम के सम्मुख प्रकट हुआ तथा उन्होंने पवित्र आत्मा द्वारा उनके गर्भवती होने की भविष्यवाणी सुनाई। मरियम पवित्र आत्मा द्वारा गर्भवती हुई और कालान्तर में बालक येसु को एक गोशाले में जन्म दिया।
इस बालक के जन्म के तुरंत बाद ईश्वर के दूत चरवाहों के सामने प्रकट हुये और उन्होंने कहा, ‘‘आप लोगों के लिये यह शुभ संदेश है। प्रेम और शान्ति का शुभ संदेश।’’ दूसरी ओर यही सुसमाचार उन तीन राजाओं को भी प्रकट हुआ जो पूर्व से आये थे। प्रतिमाओं में इन्हें अलग-अलग भूरा, काला एवं सफ़ेद रंग की वेष-भूषाओं में दर्षाया गया हैं, यहाँ तक कि ये गोरे-काले एवं साँवले वर्ण के थे जो इस बात का संकेत है कि ईश्वर ने इन राजाओं के माध्यम से, स्वयं को साक्षात् संपूर्ण संसार के सभी वर्गों के लोगों की मुक्ति के लिये प्रकट किया। उन्होंने जाति-वर्ण-धर्म सबकुछ भुलाकर चरवाहों, दीन-हीनों, गु़लामों, पीड़ितों, असहायों और प्रत्येक इन्सान की मुक्ति के लिए सारी सृष्टि के सामने अपने रहस्य को प्रकट किया। इसी रूपावतरण या प्रकटीकरण को एपीफ़नी कहते हैं।
आज, जब सम्पूर्ण कलीसिया एपीफ़नी का यह पर्व मना रही है, तब, हम सबके लिये यह अत्यंत आवष्यक है कि ईश्वर के इस रहस्योद्घाटन का हम प्रत्येक के लिये क्या अर्थ एवं संकेत है, इसे समझें। आज यह पर्व मेरी अंतरात्मा के लिये क्या संदेश बनकर आया है? इसका अर्थ बहुत विस्तृत है, गहरा भी। पूर्व से आये तीन राजाओं के उपहार बालक येसु की मानवता, दिव्यता तथा राजत्व के प्रतीक हैं, जो हमारे लिये खीस्तीय आचरण करने की ओर बुलाहट है। तीन राजाओं ने जो उपहार बालक येसु को दिये थे उनमें एक था सोना। चूँकि सोने को धातुओं का राजा माना जाता था, अतः प्रभु येसु को संसार का राजा माना जाने का वह प्रतीक है। वे परमपिता के दाहिने विराजमान पिता ईश्वर के भेजे हुये राजा हैं। वे अंतिम दिन निर्णय करने के अधिकारी हैं कि हमने अपने भाई-बहनों के लिये क्या किया?
दूसरा उपहार सुगन्धित लोबान है। यह इस बात को दर्षाता है कि ईश्वर अतिउत्ताम तथा पवित्रतम हैं। चर्च में हम जो सुगन्धित लोबान का प्रयोग करते हैं वह एक धुआँ है जो हमारी सारी भावनाओं को, प्रार्थनाओं को, श्रद्धा को ऊपर स्वर्गिक पिता तक ले जाता है। धुआँ अक्सर स्वर्ग की तरफ़ उठता है न कि धरती की तरफ़ और यह हमें घोषित करना चाहिये।
तीसरा उपहार गंधरस है जो राजाओं ने बालक येसु को दिया। यह इस बात का साक्षी है कि प्रभु येसु एक मनुष्य हैं और वे भी भूख और प्यास को अनुभव करते हैं। वे पापी को चाहते हैं, परंतु पाप को नहीं। उन्हें भी शैतान द्वारा पाप करने के बहुत से प्रलोभन मिले, मौके मिले। परंतु अपनी अंतरात्मा की आवाज़ तथा विश्वास से पापों पर विजय प्राप्त कर मानव होने का अर्थ साकार कर दिखाया। इसलिये वे अपने जीवन के अंतिम दिनों में मनुष्यों की तरह रोये भी ‘‘हे पिता तूने मुझे क्यों भुला दिया?’’
इस पर्व का प्रेम और शान्ति भरा संदेश तथा उसके प्रकट होने का सुसमाचार मानवता की ख़ातिर हमारे समस्त मित्रों तक पहुँचाना होगा कि प्रभु येसु, आप और मेरे लिये भावनाओं से, वचनों से एवं कर्मो से जन्मे हैं। ईश्वर के साक्षात् प्रकट होने का अर्थ यह है कि हम आपस में प्रेमभाव रखें तथा उनका राज्य स्थापित करें। मसीह अपने आपको मात्र मानवपुत्र रूप में स्थापित करने नहीं आये बल्कि मानवरूप में, मानवों में रहकर ही स्वर्गराज्य की स्थापना करने आये- एक ऐसा राज्य जहाँ किसी को कोई पीड़ा न हो, किसी की आँखों में आँसू न हो, जहाँ सब भाई-बहन हों, सब समृद्ध हो, कोई ग़रीब नहीं हो, सब अपनी समृद्धि को परस्पर बाँटने को तैयार हो।
अब हमें यह सोचना है कि हममें से प्रत्येक का ईशराज्य की स्थापना के लिये क्या योगदान है। उदाहरण के लिये, एक खीस्तीय परिवार में पिता अपने से यह पूछे कि मैं अपने परिवार में अपनी पत्नी तथा बच्चों की अवहेलना तो नहीं करता हूँ? मैं अपनी पत्नी से केवल स्त्रीत्व या पतिव्रता की ही अपेक्षा क्यों रखूँ, उसे अपने मित्र का स्थान क्यों न दूँ? मैं अपने बच्चों को तीन राजाओं द्वारा प्रदत्ता अपना ही उपहार क्यों न मानूं ?
स्वर्गराज्य को धरती पर लाने वाले खीस्त मानव हैं और हम सब इन्सान हैं। अतः खीस्तीय होने के नाते हमें ईशराज्य की स्थापना का प्रयास सतत् करते रहना चाहिए। हमारी बिरादरी में, हमारे परिवार में, हमारे समाज में, हमारे कार्यक्षेत्र में और उन सभी को जिनसे हम मिलते हैं यही संदेश पहुँचाना होगा कि मैं ईश्वर के इस रहस्योद्घाटन का साक्षी बनूँगा कि वे परम पावन हैं, वे मानवीय हैं, वे दिव्यतम हैं और संपूर्ण संसार के राजा हैं। मैं अपना यह अनुभव उन सबके साथ परस्पर बाँटूँगा जिनसे भी मैं आज, कल और भविष्य में मिलूँगा। हमारी प्रार्थना यह हो, ‘‘हे ईश्वर मुझे शक्ति दे, मुझे धैर्य दे, मुझे वह विश्वास दे जिससे मैं जहाँ भी जाऊँ तेरे राज्य को स्थापित कर सकूँ जिस कारण तू समस्त मानवता के सम्मुख प्रकट हुआ। जाति, वर्ण-भेद, ऊँच-नीच आदि से ऊपर उठकर मैंने तेरी शिक्षा पर चलने की कृपा प्राप्त की है। इसके लिये मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ। हे प्रभु, तूने अपने शिष्यों को हमारे मार्ग दर्षन के लिये प्रदान किया और हम तेरा साक्षात्कार पाकर धन्य हुये। हम एपीफ़नी के इस पर्व को मनाकर तेरे प्रकट होने का साक्ष्य जन जन तक पहुँचा सकें।
आइए, हम उनके राजत्व की चमक को हमारे माध्यम से सबों तक पहुँचायें। मानवता के संदेश को हम जन-जन तक पहुँचायें। प्रभु येसु ने सम्पूर्ण मानवजाति के उद्धार के लिये मानवरूप में स्वयं को प्रकट किया इसलिये इस पर्व को कई देशों में क्रिसमस से ज़्यादा निष्ठापूर्वक मनाया जाता है, या यूँ कहिये कि यह द्वितीय क्रिसमस के रूप में भी मान्य है। तो हम अपनी अंतरात्मा से पूछें, ‘‘क्या मैं तैयार हूँ प्रभु मसीह के इस शुभ संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिये?’’