चक्र अ के प्रवचन

पवित्र परिवार का पर्व

पाठ: प्रवक्ता 3:2-6,12-14; कलोसियों 3:12-21 या 3:12-17; मत्ती 2:13-15,19-23

प्रवाचक: फादर अंथोनी आक्कानाथ


आज कलीसिया हमें पवित्र परिवार की ओर ले चलती है। जब भी हम एक विशिष्ट या उत्कृष्ट परिवार के बारे में सोचते हैं तो हमें लगता है कि ऐसे परिवार में कोई कठिनाई या समस्या नहीं होगी। लेकिन सच्चाई इससे बहुत दूर है। वास्तव में परिवार की विशिष्टता इसमें निहित है कि परिवार के सदस्य एक अनोखी रीति से समस्याओं तथा कठिनाईयों का सामना करते हैं। 

प्रभु येसु के जन्म के पूर्व और पश्चात् संत यूसुफ और मरियम को ईश्वर के पुत्र के कारण बहुत संघर्ष करना और कष्ट झेलना पड़ा। अगर उनके स्थान पर और कोई होता तो शायद इन कठिनाईयों के सामने ईश्वर के अस्तित्व पर ही संदेह करने लगता। हम इस पर विचार करें। हमारे जीवन की कठिनाईयों के लिये हमने कितनी बार दूसरों को दोषी ठहराया है। ईश्वर के नाम पर कोई भी कार्य सम्पन्न करने से होने वाली पीड़ा में हमने भी ईश्वर के अस्तित्व को नकारा है। कई बार हमारी आध्यात्मिकता हमारी खुशी तक ही सीमित रहती है। यदि हमारी खुशी में विघ्न उत्पन्न होता है तो हमारा व्यवहार और बातें प्रकट कर देती हैं कि हम ईश्वर को इसके लिये दोषी ठहराते हैं।

उनके जीवन के प्रारंभ से ही संत यूसुफ और मरियम ईश्वर द्वारा ईश्वरीय कर्त्तव्य निर्वाह के लिये चुने गये थे। ईश्वर के पुत्र को संसार में लाना उनका दायित्व बना। उनकी इस बुलाहट का संसार के मापदण्ड के अनुसार कोई मूल्य नहीं था। आधुनिक युग में किराये की कोख की कीमत बहुत अधिक है। ऐसी माताओं को ऊँचीं रकम दी जाती है। परन्तु इसके ठीक विपरीत इस ईश्वर की माँ को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। सामाजिक और शारीरिक प्रताडना झेलनी पड़ी। अपनी संतान को जन्म देने के लिये एक कमरा तक नसीब नहीं हुआ सिवाय एक गौशाले के। संत यूसुफ भी एक ईमानदार पालक पिता रहे। बढ़ई के कार्य में महत्वपूर्ण समय न देने के कारण उनकी आय कम हो गयी होगी। फिर भी उन्होंने कभी कोई शिकायत नहीं की। बालक येसु की रक्षा के लिये उन्हें दूर देश भाग कर शरण लेनी पड़ी और इन सबके प्रतिफल के रूप में उन्हें सिर्फ पीड़ा और दर्द ही मिला। 

संत यूसुफ ने ईश्वर की इच्छा को बिना शिकायत और विरोध के पूरा किया। स्मरण रहे प्रभु येसु ईश्वर के पुत्र थे परन्तु वे एक साधारण से परिवार में एक साधारण से पुत्र बन गये। हम प्रभु येसु की ईश्वर के पुत्र के रूप में आराधना करते हैं। हम मरियम को ईश्वर की माता मानते हैं। साथ ही संत यूसुफ को येसु और मरियम के रक्षक और बालक येसु के पालक पिता के रूप में सम्मान देते हैं। 

पवित्र परिवार हमारे लिये प्रेरणा स्रोत है। हमारे दुःख की घड़ी में वह हमें सांत्वना देता है। हम उसे घर-घर की कहानी नहीं कह सकते क्योंकि यहाँ उस प्रश्नाधीन बालक येसु का बहुत ही संघर्ष और कठिनाईयों का सामना करते हुए पालन-पोषण किया गया जो सिर्फ संत यूसुफ और मरियम ही कर सकते थे। उनके स्थान पर किसी दूसरे द्वारा इस तरह अपने कर्त्तव्यों का पूर्णरूपेण निर्वाह संभव प्रतीत नहीं होता। मुझे नहीं मालूम कि संत यूसुफ और मरियम के स्थान पर मेरी या आपकी क्या प्रतिक्रिया होती? 

आज खीस्त जन्मोत्सव के बाद के रविवार पर खीस्त के जन्म का रहस्य बरकरार है जब कलीसिया पवित्र परिवार को आदर्श के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत करती है। संत यूसुफ, मरियम और येसु सभी ख्रीस्तीय परिवारों के आदर्श हैं। एक ऐसा सुन्दर परिवार जहाँ शिशु येसु बढ़कर बालक बनता है और फिर एक सम्पूर्ण मनुष्य। एक अच्छे परिवार से जीवन की अच्छी शुरुआत बालक येसु को प्राप्त हुयी। हम भी किसी बच्चे को अच्छे परिवार से वंचित न रखें। अच्छे परिवार में पालन-पोषण हर बालक का जन्मसिद्ध अधिकार है। प्रभु येसु शांति-दूत कहलाये जिन्होंने सारा जीवन शांति और क्षमा का प्रचार किया। यूसुफ और मरियम ने आदर्श माता-पिता की अपनी भूमिका अच्छी तरह निभाई। हम, जो परिवार में हमारे बच्चों के सामने लड़ते-झगड़ते हैं, यह ख्याल रखें कि बच्चों पर इसका गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है एवं इसका परिणाम हमको अपने जीवन में भोगना होगा। मेरे पास संतान की शिकायत लेकर आने वाले माता-पिताओं को मैं उनके अतीत की ओर मुड़कर देखने का सुझाव देता हूँ कि क्या आप अपने बच्चों के लिये अच्छे उदाहरण दे पाये? और यह पाया गया कि अधिकांश मामलों में माता-पिता ही इसके लिये जिम्मेदार थे।

माता-पिता का दायित्व बच्चों को सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा दिलाने तक ही सीमित नहीं है। अपितु उन्हें बच्चों में अनुशासन विकसित करना चाहिये ताकि बच्चे भी भविष्य में अनुशासनपूर्ण जीवन का संचार कर सकें। आज संचार माध्यम मनोरंजन के नाम पर काल्पनिक दुनिया की तस्वीर पेश करता है। यदि माता-पिता गंभीरतापूर्वक नये संचार माध्यम जैसे सिटी केबल और इंटरनेट की जाँच-पड़ताल करें तो उन्हें मिली भयावह जानकारी से उनकी आत्मा कांप उठेगी। दुर्भाग्यवश अधिकांश माता-पिताओं ने बालू के ढ़ेर में अपना सिर छिपाया हुआ है और जब वे सिर उठाते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। आज दूरदर्शन, वीडियो गेम्स, चलचित्र और इंटरनेट का अनियंत्रित उपयोग और उपभोग ही कई परिवारों के विनाश का मुख्य कारण है। इसके कारण परिवार के सदस्य एक-दूसरे से कट गये हैं। एक-दूसरे से संबंध विच्छेद कर लोगों ने अकेलेपन के साथ अपनी एक अलग दुनिया बना ली है। यह माता-पिता को बच्चों से और बच्चों को माता-पिता से दूर कर सकता है।

नेपोलियन बोनापार्ट एक पराक्रमी योद्धा तो थे ही, साथ ही साथ एक महान शिक्षक भी। उन्होंने एक दिन कुछ ज्ञानियों के साथ बातें करते समय पूछा, ‘‘एक बच्चे की शिक्षा का आरंभ कब होना चाहिये? किसी ने कहा, ‘‘चौदह साल की आयु में क्योंकि वह तब तक शिक्षा का महत्व खुद समझने लगता है‘‘। दूसरे ने कहा, ‘‘सात साल की आयु में, क्योंकि तब उसे भले-बुरे का ज्ञान हो जाता है‘‘। तीसरे ने कहा, ‘‘चार साल की आयु में क्योंकि तब से वह सीख सकता है‘‘। एक अन्य ने कहा, ‘‘जन्म से ही, क्योंकि वह तब से ही सीख सकता है‘‘। अन्त में नेपोलियन ने कहा, ‘‘जन्म के बीस साल पहले से‘‘। यह सुन कर उनमें से किसी ने पूछा, ‘‘यह कैसे संभव हो सकता है?‘‘ तब नेपोलियन ने बताया, ‘‘एक बच्चे की शिक्षा उसकी माँ की शिक्षा से शुरू होती है‘‘। परिवार में माता-पिता की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है। उन्हें लगातार बच्चों का मार्गदर्शन करते रहने की ज़रूरत है।

यह किसी से छिपा नहीं है कि समाज की परिवार रूपी धुरी आज बिखर रही है। हमारे बीच में से ही बहुतेरे खीस्तीय परिवारों को भी जो अच्छा खीस्तीय जीवन जीना चाहते हैं, इन संचार माध्यमों के विनाशकारी प्रलोभनों से कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है।

संत यूसुफ, मरियम और येसु के पवित्र परिवार के पर्व के द्वारा कलीसिया इंगित करती है कि पवित्र परिवार हमारे पारिवारिक जीवन का आदर्श और नमूना होना चाहिये। आज के पाठ परिवार में अनुकरण करने योग्य बहुत सी बातों पर प्रकाश डालते हैं। संत पापा योहन पौलुस द्वितीय का यह कथन सटीक लगता है, ‘‘जीवन के महत्व और मूल्यों को समझाने के लिये जागृति लाने की बड़ी आवश्यकता है। निःसंदेह जब हम नैतिक मूल्यों को पहचानेंगे तभी हम विज्ञान और भौतिक विकास के द्वारा मनुष्यों के बीच सम्मान, स्वतंत्रता और सत्य स्थापित कर पायेंगे। आधुनिक युग की समस्याओं और दुष्परिणामों में एक खीस्तीय होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम स्वयं को और दूसरों को ईश्वरीय प्रज्ञा से अवगत करायें। 

आज के पहले पाठ को समझने के लिये हम इतिहास की ओर ज़रा नज़र डालें। प्रवक्ता ग्रंथ के प्रवक्ता एक नबी थे जो हमें यह बताना चाहते हैं कि ईश्वर हममें किस प्रकार की प्रज्ञा और किस प्रकार के कार्य देखना चाहते हैं। ई. पू. 180 वर्ष के दौरान प्रवक्ता ने ईश्वर की आज्ञाओं के प्रति आज्ञाकारिता के लाभों पर प्रकाश डाला है कि प्रभु की आज्ञाओं का पालन करने वाले लोग दीर्घायु होंगे, बहुत सारी सुयोग्य संतान प्राप्त करेंगे, उन्हें पापों की क्षमा प्राप्त होगी और पृथ्वी पर ढे़र सारी आशिष भी। प्रवक्ता के उपदेश आज के युग में भी सार्थक हैं। आज भी ईश्वर की आज्ञाओं के पालन की आवश्यकता है। 

दूसरे पाठ में संत पौलुस भी परिवार के अन्दर एक दूसरे के प्रति हमारे व्यवहार पर प्रकाश डाल रहे हैं। यह अध्याय बहुत से लोगों द्वारा पसंद नहीं किया जाता। यह इसलिये कि हम इसका अर्थ नहीं जान पाये हैं। माता-पिता और बच्चों के एक-दूसरे के प्रति कुछ उत्तरदायित्व हैं। आज के सुसमाचार में इन उत्तरदायित्वों का पवित्र परिवार द्वारा खूबसूरत उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि स्वर्गदूत केवल संत यूसुफ को दर्शन देकर परिवार की सुरक्षा के लिये मार्गदर्शन देते हैं। यह एक पिता की भूमिका का सूचक है। हम यह भी गौर करें कि मरियम और येसु उनके अधीन रहकर उनकी आज्ञाओं का पालन करते थे। हमें सोचना चाहिये कि प्रभु हमसे एक परिवार के रूप में क्या चाहते हैं। प्रभु येसु कहते हैं कि जो उनमें विश्वास करते और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं वे ही उनके माता-पिता और भाई-बहन हैं। प्रभु येसु के अनुसार उनके परिवार में वे लोग शामिल हैं जो उनमें विश्वास करते हैं। इसका अर्थ यह है कि हम सब येसु खीस्त में एक परिवार हैं और हमारी योग्यतानुसार हमें इस परिवार को प्यार करना चाहिये। आइए, हम नाज़रेथ के पवित्र परिवार की विशेषताओं पर मनन् करते हुए अपने-अपने परिवारों को ईश्वरीय प्रेम तथा मानवीय सेवा के उदाहरण बनायें।


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