हम सब विभिन्न प्रकार की घटनाओं के विवरण सुनने से प्रभावित होते हैं। पुराने व्यवस्थान में वर्णित प्रभावशाली घटनाओं में मूसा के जीवन से संबंधित कई बातों का उल्लेख है। मूसा और इस्राएलियों को निर्गमन के समय कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। चालीस वर्षों तक मरुभूमि में यात्रा करके वे कनान देश के पास पहुँचते हैं। प्रतिज्ञात देश को देखकर वे बहुत आनंदित हो जाते हैं। कई पीढ़ियों के सपने साकार होने का वक्त आ गया था। लेकिन देर से ही उन्हें मालूम हुआ कि वे मौत की मुँह में खड़े हैं। उन्हें यह ज्ञात हुआ कि कनान की जनता बहुत शक्तिशाली थी और यह डर भी था कि वे कभी भी उन पर हमला कर सकते हैं। वे बहुत डर गये, यहाँ तक कि वे यह भी भूल गये कि ईष्वर उनके साथ हैं। इस अवसर पर मूसा ने उनको यह याद दिलाया कि ईष्वर की शक्तिशाली उपस्थिति को उन्हें कभी भूलना नहीं चाहिये। इस संदर्भ में मूसा कहते हैं, ’’उस देश के रहने वालों से मत डरो, क्योंकि हम उन्हें समाप्त कर देंगे। उनका कोई संरक्षक नहीं रहा। प्रभु हमारे साथ हैं, इसलिये उनसे डरने का कोई सवाल नहीं उठता।’’ (गणना 14:9)
इसी प्रकार की एक घटना हम नबी इसायाह के ग्रंथ, अध्याय 7 में भी पाते हैं। जब राजा आहाज़ और उनकी प्रजा को यह डर था कि अराम का राजा रसीन और रमल्या का पुत्र इस्राएल का राजा पेकह दोनों मिलकर उनपर हमला करके उन्हें आसानी से पराजित कर देंगे। राजा और उसकी प्रजा यह सुनकर इस प्रकार ’’काँपने लगे, जिस प्रकार जंगल के पेड़ आँधी में काँपते हैं’’ (इसायाह 7:2)। इस अवसर पर प्रभु ने नबी इसायाह के द्वारा राजा से कहा, ’’धीरज धरकर मत डरो’’(इसायाल 7:4)। ईष्वर ने राजा आहाज़ को भरोसा दिलाने हेतु एक चिह्न दिया और वह यह है- ’’एक कुँवारी गर्भवती है। वह एक पुत्र प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानुएल रखेगी’’ (इसायाह 7:14)।
इसायाह की इस भविष्यवाणी के पूरे होने की याद आज हम कर रहें है। आज हम खीस्त जंयती का त्योहार धूमधाम से मना रहे हैं। आज का मुख्य संदेश यही है कि हमें किसी भी परिस्थिति में डरना नहीं चाहिये क्योंकि ईष्वर हमारे साथ हैं। वे इम्मानुएल हैं। प्रभु येसु के जन्म की भविष्यवाणी और उनके जन्म का संदेश बाइबिल के अनुसार ऐसे लोगों को दिया जाता है जो डरे हुए थे। ’’डरो मत ईष्वर हमारे साथ हैं’’ यह वाक्य बाइबिल में कई बार हमारे सामने आता है। स्वर्गदूत डरे हुए जकरियस से कहते हैं, ’’जकरियस डरिये नहीं’’ (लूकस 1:13)। वे मरियम से कहते हैं, ’’मरियम डरिये नहीं’’ (लूकस 1:30)। मत्ती 1:20 में संत यूसुफ को भी इस प्रकार का संदेश दिया जाता है।
क्रिसमस का त्योहार डरे हुए, काँपने वाले हर व्यक्ति को हिम्मत और धैर्य प्रदान करते हुए यह संदेश देता है कि हमें डरना नहीं चाहिए क्योंकि हमारे शक्तिशाली ईष्वर हमारे साथ हैं। हम सब किसी न किसी डर के शिकार हैं। कई दफ़ा इस प्रकार के डर से छुटकारा पाने की इच्छा रखते हुये भी, कई प्रकार के रास्ते अपनाने के बावजूद भी, भय हमारे ऊपर छाया रहता है। हम सांसारिक शक्तियों से, दुष्मनों से, बीमारियों से, अंधकार से, शैतानी शक्तियों से, जंगली जानवरों से, आने वाले अनिश्वित भविष्य से और मृत्यु से डरते हैं। हम बच्चों को निर्भय बनाने की बहुत चेष्टा करते हैं। फिर भी अपने ही डर के गुलाम बने रहते हैं।
आज प्रभु ईष्वर इम्मानुएल बनकर हमारे बीच में आकर हमें यही आशा दिलाते हैं कि अगर हम उनपर भरोसा रखेंगे तो अपने डर से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं। सुसमाचार में हम यह देखते हैं कि समुद्र की लहरों से डरते हुए पेत्रुस जब डूबने लगते हैं तो प्रभु येसु उनका हाथ पकड़कर उन्हंे धैर्य प्रदान करते हैं। पुनरुत्थान के बाद भी प्रभु येसु यही संदेश बार-बार अपने शिष्यों को प्रदान करते हैं।
जब तक हम इस संदेश को नहीं अपनायेंगे तब तक हम यह नहीं कह पायेंगे कि हमने खीस्त जयंती के संदेश को स्वीकारा है। इस त्योहार के अवसर पर हमें यह घोषणा करना है कि ईष्वर हर मानव के निकट हैं और उसके साथ हैं और इसी कारण उसे किसी भी प्रकार के भय का शिकार नहीं होना चाहिये। आइए हम इस संदेश को अपने ही जीवन में हृदय से ग्रहण करें और दूसरों को भी ईष्वर की निकटता का अहसास करायें।