सन् 1994 में कुछ अमेरिकी युवक एक रूसी अनाथालय में बच्चों से मिलने गये। वह क्रिसमस का समय था और वे उन अनाथ बच्चों के साथ खीस्त जयंती की खुशी बाँटना चाहते थे। इस अवसर पर उन्होंने कई करोल गीत प्रस्तुत किये और क्रिसमस के बारे में बच्चों को काफी कुछ बताया। बच्चों ने ध्यानपूर्वक उनकी बातें सुनी। इसके बाद उन युवकों ने कुछ रंगीन पेपर और अन्य सामग्रियाँ बच्चों को दी और उनसे यह कहा कि वे उन चीज़ों से एक-एक चरनी बनायें। हर बच्चा अपनी जगह पर बैठ गया और दिया गया अपना काम करने लगा। युवक बच्चों के बीच घुमते-फिरते रहे, यह देखने के लिये कि किसी को अपना कार्य पूरा करने में उनकी ज़रूरत तो नहीं है। उन्होंने देखा कि सब बच्चे अपनी कल्पनाशक्ति के अनुसार चरनी बना रहे थे। जब वे मिषा नामक लड़के के पास आये तो वे अचंभे में पड़ गये क्योंकि मिषा की चरनी में दो बालक येसु थे। जिज्ञासापूर्वक उन युवकों ने मिषा से पूछा, ’’ये दो बच्चे कहाँ से आ गये जबकि तुम्हें सिर्फ बालक येसु को प्रस्तुत करना था?’’ इसपर मिषा ने प्रभु येसु के जन्म की कहानी शुरू की। मिषा ने कहानी में गब्रियल दूत के संदेश से लेकर येसु के जन्म की बातें रोचक ढ़ंग से प्रस्तुत की। उसके बाद मिषा की क्रिसमस-कहानी में एक मोड़ आ गया उसने कहा, ’’मरियम ने बालक येसु को चरनी में लिटाया। उसके बाद माँ मरियम ने मेरी ओर दृष्टि दौड़ाई और मुझसे पूछा कि क्या तुम्हारे पास रहने के लिये जगह है? इसपर मैंने जवाब दिया कि मेरे कोई पप्पा-मम्मी नहीं है और इसलिये घर भी नहीं। इतने में बालक येसु ने कहा कि तुम मेरे साथ रह जाओ। मुझे खुशी हुई। लेकिन एक समस्या थी, मेरे पास बालक येसु को देने के लिये कुछ नहीं था। जब कुछ देने के लिये नहीं है तो मैं इन के साथ कैसे रहूँ। मैंने बहुत सोचा। फिर एक आइडिया आया। मैंने बालक येसु से पूछा मेरे पास तुम्हें देने के लिये कुछ नहीं है, लेकिन मैं इतना तो कर ही सकता हूँ, कि तुम्हारे पास रहकर एक दोस्त का प्यार दे सकता हूँ। इसपर माँ मरियम ने मुझे भी येसु के पास ही लिटा दिया।’’
ईश्वर ने इस्राएलियों को मुक्तिदाता की अगवानी करने के लिये चुना और अपने सेवकों के माध्यम से अपने तरीके से उन्हें इस अवसर के लिये तैयार किया। इस दौरान उन्होंने उनमें मुक्तिदाता की आस को जीवित रखा। आज का पहला पाठ इसका बहुत ही सुन्दर उदाहरण है। समय आने पर उन्होंने अपने एकलौते पुत्र को इस संसार में भेजकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और इस प्रकार हम मानवों के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया।
इतने में उन युवकों ने जो मिषा की यह क्रिसमस कहानी सुन रहे थे, देखा कि उस बच्चे की आँखों से आँसू टपक रहे थे। उन्होंने उस बच्चे के आँसू पोछ कर उसे गले लगा लिया।
आज हम ईश्वर के मानव रूप में आगमन का त्योहार मना रहे हैं। नबी इसायाह आज के पाठ में मुक्तिदाता के आगमन की घोषणा करते हैं। हम हर जन्मदिवस पर अपने प्रिय जनों को उपहार देते हैं। आज के जन्मदिवस की यह विशेषता है कि इस दिन जितना उपहार चरनी में लेटा यह बालक प्राप्त करता है उससे बहुत ज्यादा उपहार यह लोगों को प्रदान करता है क्योंकि यह बालक खुद ही उपहार है। इस पर्व पर ईश्वर अपने आप को मानव मुक्ति के लिये उपहारस्वरूप हम में से हरेक व्यक्ति को प्रदान करते हैं। इस उत्कृष्ट उपहार में कई उपहार निहित हैं जैसे मुक्ति, प्यार, क्षमा, अनुकंपा, दया, आनन्द और अनंत जीवन। लेकिन सवाल यह उठता है कि हम इन वरदानों को कैसे प्राप्त कर सकते हैं। प्रभु येसु के जन्म पर स्वर्गदूतों ने स्तुतिगान किया, ’’सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा प्रकट हो और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति मिले’’। ईश्वर की कृपा विनम्र लोग ही प्राप्त कर सकते हैं। स्तोत्रकार कहते हैं, ’’वह दीनों को सन्मार्ग पर ले चलता और पददलितों को अपने मार्ग की शिक्षा देता है’’ (स्तोत्र 25:9)। ईश्वर की कृपाओं के लायक बनने के लिये हमें विनम्र बनना है। ईश्वर विनम्र लोगों का उद्धार करते हैं (स्तोत्र 149:4)।
प्रभु येसु खीस्त में ईश्वर के उपहार दिये जाते हैं और प्राप्त किये जाते हैं। प्रभु येसु ईश्वर होने के नाते ईश्वर के उपहार मानवों के बीच वितरित करते हैं। साथ-साथ मानव होने के नाते वे ईश्वर से उपहार प्राप्त भी करते हैं। इसलिये हम उनसे यह सीख सकते हैं कि ईश्वर के उपहार हमें किस प्रकार प्राप्त करना चाहिये। संत पौलुस फिलिप्पियों को लिखते हुये हमें यह समझाते हैं कि प्रभु येसु ने ईश्वर के उपहार प्राप्त करने के लिये अपने को दीन-हीन बनाया।
आज दुनियाभर में क्रिसमस का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। क्रिसमस के त्योहार को सभी लोग मना सकते हैं लेकिन क्रिसमस की कृपा सिर्फ उन्हीं लोगों को प्राप्त होगी जो हृदय से नम्र हो। आइए हम चरनी में लेटे बालक प्रभु से निवेदन करें कि वे हमें विनम्रता का वरदान प्रदान करें ताकि हम उन्हीं के अन्य उपहारों के योग्य बन जायें।