आज सारा विश्व खीस्त का जन्मोत्सव मना रहा है। आज की रात हर मानव के लिये विशेष मायने रखती है। क्योंकि आज की रात को ईश्वर द्वारा मानव जाति से की हुई प्रतिज्ञा पूरी हुई थी। आज की रात को मानव जाति की सदियों की प्रतिक्षा का अंत हुआ था। आज की रात को ईश्वर ने अपने प्रेम का सबसे उत्तम प्रमाण बालक येसु के रूप में हमें दिया। ईश्वर होते हुये भी उन्होंने अपनी ईश्वरीय वैभव को त्याग कर हमारा मानव स्वभाव अपनाया और निरीह बालक बनकर हमारे बीच आये और इस प्रकार हमसे अपनत्व जताया। यह सारे मानव जाति के लिये खुशी की बात है। इसलिये सारा विश्व पूरे हर्षोल्लास से खीस्त का जन्मोत्सव मना रहा है। हम सब भी इस खुशी का हिस्सा बनने के लिये यहाँ पर उपस्थित हुये हैं। मनुष्य जिसकी सृष्टि ईश्वर को प्रेम करने, उनकी आराधना करने एवं उनके सृजन कार्य में सहयोग करने के लिये हुई थी, आदि माता-पिता की अवज्ञा के कारण अपनी वास्तविक प्रकृति खो बैठा और ईश्वर के सानिध्य से दूर हो गया और इस प्रकार ईश्वरीय जीवन से वंचित हो गया। आदि माता-पिता की इस त्रुटि के कारण पूरी मानव जाति शापित हुई। पर ईश्वर अपने परम प्रिय कृति मानवों को इस प्रकार मझधार में छोड़ नहीं सकते थे। इसलिये उन्होंने मुक्तिदाता की प्रतिज्ञा की जो उन्हें इस शाप से मुक्त करेगा, उनकी खोई हुई प्रकृति को पुनः वापस दिलायेगा और इस प्रकार पिता से उनका पुनः मेल करायेगा।
ईश्वर ने इस्राएलियों को मुक्तिदाता की अगवानी करने के लिये चुना और अपने सेवकों के माध्यम से अपने तरीके से उन्हें इस अवसर के लिये तैयार किया। इस दौरान उन्होंने उनमें मुक्तिदाता की आस को जीवित रखा। आज का पहला पाठ इसका बहुत ही सुन्दर उदाहरण है। समय आने पर उन्होंने अपने एकलौते पुत्र को इस संसार में भेजकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और इस प्रकार हम मानवों के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया।
इसलिये खीस्त जयंती हमें महान आशा का संदेश देती है। ईश्वर की तरफ से यह एक चिन्ह है कि वे हमें कितना प्यार करते हैं और प्रभु खीस्त के द्वारा अपने पुत्र-पुत्रियाँ बनाने के लिये आतुर हैं जिससे हम ईश्वरीय जीवन में भाग ले सकें। खीस्त जयंती हमें अहसास दिलाती है कि हमारे अविश्वास एवं त्रुटियों के बावजूद ईश्वर अपनी प्रतिज्ञा से मुकरते नहीं बल्कि अपनी प्रतिज्ञा के प्रति वफादार रहते हैं। वे हमें पापी होने के बावजूद खीस्त में एक नया जीवन देते हैं जिससे हम ईश्वर की संतान बन सकें।
खीस्त जयन्ती हमें शांति के मार्ग पर अग्रसर होने के लिये प्रेरित करती है। आदि माता-पिता के विद्रोह के कारण उपजे अज्ञान, स्वार्थ, अत्याचार, अधर्म आदि ने इस संसार में अशांति फैला दी थी। प्रभु इस अशांत दुनिया में शांति दूत बनकर आते हैं और उसे एक नया आयाम देते हैं। वे मानवों के हृदय में बसे अंधकार को दूर करते हैं और उसकी विकृत मनःस्थिति को एक नया रूप देते हैं और इस प्रकार उसे ईश्वर का मार्ग दिखाते हैं।
हम खीस्तीयों के लिये खीस्त जयन्ती कोई बीती घटना की याद मात्र नहीं है। अगर हम इसे सिर्फ प्रथम आगमन की यादगारी के रूप में मनाते हैं तो हम खीस्त जयंती के उद्देश्य से भटक जाते हैं। यह सत्य है कि प्रथम आगमन को येसु पहले और अंतिम बार शारीरिक रूप से इस धरा पर आये। पर आज वे शारीरिक रूप से नहीं बल्कि आत्मिक रूप से हमारे बीच आते हैं। पर क्या आज का संसार प्रभु को ग्रहण करने के लिये तैयार है? प्रभु के जन्म के इतने वर्षों के बाद भी विश्व की स्थिति में कोई ज्यादा फर्क देखने को नहीं मिलता है। संचार माध्यमों से हम जानते हैं कि किस प्रकार सारे विश्व में भय का वातावरण है। सब जगह उथल-पुथल हो रही हैं मनुष्य को मनुष्य से भय लगने लगा है। बेवजह के युद्ध, राष्ट्रों के बीच बेमतलब का तनाव, सत्ता के लिये खून खराबा, विकसित राष्ट्रों द्वारा विकासशील राष्ट्रों का शोषण, सांप्रदायिक दंगें, आंतकवाद, धर्म, भाषा आदि के नाम पर मार-काट, अपने स्वार्थ के लिये लोगों पर अत्याचार, भ्रष्टाचार, लूटपाट, आगजनी ये सब आम बात बनती जा रही हैं। सब जगह अशांति का वातावरण है।
आज इस अशांत दुनिया को खीस्त की, पहले से कहीं ज्यादा, आवश्यकता है। घृणा के इस वातावरण को ईश्वर के प्रेम की ज़रूरत है। अज्ञान के इस अंधकार को ईश्वर की ज्योति की आवश्यकता है। इसलिये खीस्त जयंती आज भी मायने रखती है।
पर हम में से कितने हैं जो खीस्त जयंती को गंभीरता से लेते हैं? शायद बहुत कम। हमारा अधिकांश समय बाहरी आडम्बर आदि में व्यतीत हो जाता है। हम बाहरी चीजों की बारीकी से तैयारी करते हैं पर अपनी आत्मा की तैयारी की तरफ ध्यान नहीं देते हैं और अक्सर हम स्वयं प्रभु को ही अनदेखा कर देते हैं। इस तथ्य को एक गुमनाम कहानीकार बहुत ही सुन्दर तरीके से हमारे सामने रखते हैं। खीस्त जयंती के अवसर पर अक्सर परिवार के सदस्य क्रिसमस ट्री के आसपास जमा होकर तोहफों का आदान-प्रदान करते हैं। एक परिवार का दस्तूर था कि जो तोहफा बाँटता था वही सबसे पहले तोहफा खोलता था। एक बार एक छोटी बच्ची, जिसने हाल ही में पढ़ना सीखा था, को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। जब उसने सबों को तोहफे बाँट दिये तब वह क्रिसमस ट्री के चारों ओर घूमकर कुछ खोजने लगी। आखिरकार बच्ची के पिता ने उससे पूछा ’’तुम क्या ढूंढ़ रही हो?’’ तो बच्ची ने उत्तर दिया, ‘‘मेरे ख्याल से खीस्त जयन्ती येसु का जन्मदिवस है और मैं सोच रही हूँ उनका तोहफा कहाँ है? मुझे लगता है हम सब उन्हें भूल गये हैं।’’उस बच्ची की सहज टिप्पणी हम में से हर एक के लिये एक चेतावनी है। तैयारी की हमारी व्यस्थता में हम अक्सर प्रभु को ही भूल जाते हैं जिनके नाम पर हम यह सब करते हैं। इसलिये ज़रूरी है कि हम हमारी आत्मिक तैयारी पर ज्यादा ध्यान दे और स्वयं को प्रभु के योग्य बनायें। इसका यह मतलब नहीं कि बाहरी तैयारी आदि अनावश्यक है पर यह कि आंतरिक तैयारी की प्राथमिकता वांछनीय है।
आज प्रभु हमारे हृदयों में जन्म लेते हैं। अपने आगमन से हमारे हृदयांे के अंधकार को दूर करते हैं। वे हमें अपने प्रेम एवं ज्ञान से भरते हैं ताकि हम ईश्वर के पुत्र-पुत्रियों के समान जीवन यापन कर सकें। पर क्या हम प्रभु को हमारे हृदयों में जगह देने के लिये आतुर हैं? क्या हम उन्हें स्वीकारने के लिये तैयार हैं? यह चिंतन का विषय है। एक चिंतक के अनुसार ’खीस्त अगर हमारे हृदयों में जन्म नहीं लेते तो उनका हजार बार चरनी में जन्म लेना भी व्यर्थ है’। येसु का जन्म संसार में शांति स्थापित करने, बिखरों को एकत्र करने और टूटे हृदयों को जोड़ने के लिये हुआ। आज येसु इस कार्य को हमारे माध्यम से करना चाहते हैं। तो क्यों न हम येसु के इस कार्य में हाथ बटायें और खीस्त जयंती को हमारे लिये सार्थक बना ले। आइये हम प्रेम एवं शांति के वरदान के लिये प्रार्थना करें।