आज आगमन काल का पहला रविवार है। एक तरह से देखने से आज नए साल का पहला दिन है। आज पूजन-वर्ष का पहला दिन है। माता कलीसिया पूजन-वर्ष आगमन काल से इसलिए शुरु करती है कि वह यह चाहती है कि हर एक विश्वासी अपने साल की शुरुआत बालक येसु को अपने दिल में स्वीकार करते हुए करे। आगमन काल में हम विशेष कर उस ईश्वर की प्रतीक्षा करते हैं जो हमारे लिए एवं हमारी खोज में आए। इसलिए इस काल में दुनिया भर के खीस्तीयों के दिलों में एक ही प्रार्थना है ‘मारानाथा’ यानी ‘हे प्रभु आजा’। आर्च बिशप फुलटन जे. शीन कहते हैं कि आगमन काल केवल येसु का हमारी ओर आने का काल नहीं बल्कि हमारे येसु की ओर जाने का काल भी है। इसका क्या मतलब है? इस का मतलब यह है कि हमारी ओर आने वाले ईश्वर को स्वीकार करने में हमारी भूमिका निष्क्रिय नहीं बल्कि सक्रिय है। यानी हमें भी कुछ तो करना ही है। हमें क्या करना है?
आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस कहते हैं कि हमारी नींद से जागने की घड़ी आ गयी है क्योंकि हमारी मुक्ति अधिक निकट है। अन्धकार के कर्मों को त्याग कर ज्योति के शस्त्र धारण करने का समय है। इसलिए हमें रंगरलियों और नषेबाजी, व्यभिचार और भोगविलास, झगड़े और ईर्ष्या से दूर रहना है।
ईश्वर जो हमारे सृष्टिकर्ता हैं सृष्टि का रूप धारण करके हमारी ओर आते हैं। इसलिए हमें जो सृष्टि हैं सृष्टिकर्ता के समान बनने के लिए उनकी ओर जाना चाहिए (मत्ती 5:48)। अनश्वर ईश्वर नश्वर रूप धारण करके हमारे बीच आते हैं। इसलिए हमें जो नश्वर हैं अनश्वर रूप प्राप्त करने के लिए ईश्वर की ओर जाना चाहिए। ईश्वर जो सर्वगुणसम्पन्न हैं दरिद्र बनकर हमारे पास आते हैं। इसलिए हमें जो दरिद्र हैं सर्वगुणसम्पन्न बनने के लिए उनकी ओर जाना चाहिए। ईश्वर जो सर्वशक्तिमान हैं शक्तिहीन बनकर हमारे बीच आते हैं। इसलिए हमें जो शक्तिहीन हैं शक्तिशाली बनने के लिए उनकी ओर जाना चाहिए। अगर हम इस आगमन काल में यह सब करने की कोशिश करेंगे तो ही हम आगामी क्रिसमस योग्य रीति से मना सकेंगे। बाइबिल में हमें इस प्रकार के कुछ लोग देखने को मिलते हैं जो आनेवाले मसीह को स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। जैसे सिमयोन, अन्ना (लूकस 2:25.38) और एलिज़बेथ (लूकस 1:43)। इन सबको हम मसीह से मिलने की तमन्ना के साथ प्रार्थना में लीन पाते हैं। इसलिए वे ईश्वर को पहचानने में एवं अनुभव करने में कामयाब होते हैं। बाइबिल में हम अन्य और भी लोगों को पाते हैं जो प्रभु के जन्म का सन्देश सुनकर उनसे मिलने के लिए बहुत दूर से आते हैं जैसे तीन ज्योतिषी और चरवाहे। ये सब मसीह को अपना सब कुछ देने के लिए तैयार होकर जाते हैं। बहुत दूरी तय करते हुए वे बालक येसु के पास आते हैं। ठीक इसी प्रकार हमें भी इस आगमन काल में प्रार्थना में लीन रहते हुए और उससे बल पाकर अपने आप को पूर्ण रूप से बालक येसु को समर्पित करने के लिए तैयार होते हुए ‘बहुत दूरी तय‘ करके बालक येसु के पास आना चाहिए। इसलिए इस काल में हम अपनी ओर देखें ओर ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन में सुधार लाने की कोशिश भी करें।
अभी तक हमने देखा कि आगमन काल में हमें क्या करना चाहिए। यदि हम ऊपर बतायी गई बातों को गंभीरता से लेते हुए आगमन काल में आगे बढेंगे तो ज़रूर क्रिसमस के दिन बालक येसु के जन्म का अनुभव अपने दिलों में, परिवारों में और पल्ली में करेंगे जैसे ज्योतिषियों और चरवाहों ने उनके दिलों में अनुभव किया था।
इस प्रकार का अनुभव होने से हमारे जीवन में बदलाव आ जाता है। संत मत्ती के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि जब ज्योतिषी नवजात राजा से मिलने आते हैं तो वे इस संबंध में हेरोद से जाकर पूछते हैं। हेरोद नवजात राजा को मार डालने का षडयंत्र रचते हुए उनसे कहता है ‘जाइए बालक का ठीक ठीक पता लगाइए और उसे पाने पर मुझे खबर दीजिए, जिससे मैं भी जा कर उसे दण्डवत् करूँ‘(मत्ती 2:8)। बाइबिल आगे बताती है कि ज्योतिषी राजा की बात मान कर चल दिये (मत्ती 2:9)। परन्तु बालक येसु से मिलने के बाद उन्हें स्वप्न में यह चेतावनी मिलती है कि वे हेरोद के पास नहीं लौटे। इसलिए वे दूसरे रास्ते से अपने देश चले जाते हैं (मत्ती 2:12)। अगर हम भी इस प्रकार बालक येसु को पाएंगे तो ज्येतिषियों के समान हमें भी अपना देश या स्वर्गराज्य जाने का सच्चा रास्ता बता दिया जाएगा। लेकिन हमारे दिल में ईश्वर का जन्म उस समय होता है जब हमारे अहम् की मृत्यु हो जाती है। हमारे अहम् की मृत्यु तब होती है जब हम प्रार्थना के द्वारा ईश्वर को सब कुछ देने के लिए तत्पर हो जाते हैं। आइए हम इस आगमन काल को गंभीरता से लेने की कोशिश करें। हम उनके समान न बनें जो नूह के समय जीते थे। नहीं तो जो नूह के दिनों में हुआ था वही हमारे जीवन में भी दोहराया जायेगा। नूह के समय लोग खाते-पीते और शादी-ब्याह करते रहे। नूह के नाव के अंदर जाने तक वे अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। उन्हें आनेवाली विपत्ति का पता नहीं था। उन सबका जलप्रलय में सर्वनाश हुआ। प्रभु की यह चेतावनी है कि अगर हम प्रभु की शिक्षा पर ध्यान नहीं देंगे तो हमारा अन्त भी ऐसा ही हो सकता है।
आज के पहले पाठ में नबी इसायाह अन्तिम दिनों के बारे में बोलते हैं। अन्तिम दिनों में ईश्वर के मन्दिर का पर्वत पहाडों से ऊपर उठेगा और सभी राष्ट्र वहाँ इकट्ठे होंगे और ईश्वर न्याय करेंगे। हमें इस दुनिया से एक दिन जाना ही है और ईश्वर के सामने प्रस्तुत होना ही है। लेकिन यह घड़ी कब होगी यह हम नहीं जानते हैं। इसलिए जागते रहने की कोशिश करें। समय के मूल्य को समझकर इस आगमन काल को गंभीरता से लेते हुए जीवन में आगे जाने की कोशिश करें। ईश्वर आप के इस कठिन प्रयत्न को आशिषों से भरें।