पु० : प्रभु आप लोगों के साथ हो।
सब: और आपकी आत्मा के साथ।
पु० : प्रभु में मन लगाइए।
सब: हम प्रभु में मन लगाए हुए हैं।
पु० : हम अपने प्रभु ईश्वर को धन्यवाद दें।
सब: यह उचित और न्यायसंगत है।
पु० : हे पवित्र पिता, यह वास्तव में उचित और न्यायसंगत है कि हम तुझे धन्यवाद दें और तेरी महिमा करें, क्योंकि तू ही जीवंत और सत्य ईश्वर है, तू ही अनादि और अनंत है, तू ही अगम्य प्रकाश-पुंज निवासी है; तू जीवन तथा कल्याण का म्रोत, सम्पूर्ण सृष्टि का रचयिता है, तू सकल सृष्टि को अपने वरदानों से समृद्ध करता है, तू अपने दिव्य दर्शन द्वारा बहुतों को उल्लसित करता है। इसलिए, असंख्य दूतगण दिन-रात तेरी सेवा में लगे रहते हैं और तेरे मुखमण्डल का ध्यान कर निरंतर तेरी महिमा गाते हैं। उन्हीं के साथ हम, और हमारे साथ स्वर में स्वर मिलाकर, सकल चराचर हर्षित मन तेरा स्तवन करते हैं :
सब: पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु विश्वमण्डल के ईश्वर ! स्वर्ग और पृथ्वी तेरी महिमा से परिपूर्ण हैं। सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना ! धन्य हैं वे, जो प्रभु के नाम पर आते हैं। सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना !
(पुरोहित अपने हाथों को फैलाए हुए बोलते हैं)
पु० : हे पवित्र पिता, हम तेरी स्तुति करते हैं, क्योंकि तू महान् है और तेरे सभी कार्य प्रज्ञा तथा प्रेम से परिपूर्ण हैं। तूने मनुष्य को अपने अनुरूप बनाया और उसे सारी पृथ्वी के वृद्धि-विकास का दायित्व सौंपा कि वह अपने सृष्टिकर्त्ता की सेवा में समस्त सृष्टि पर शासन करे। जब उसने तेरी आज्ञा भंग कर तेरी मैत्री खो दी, तो तूने उसे मृत्यु के वश में नहीं छोड़ा, बल्कि तू सबका सहारा बना कि खोजनेवाले तुझे पा सके। तूने बार-बार उसके साथ अपना व्यवस्थान स्थापित किया, और नबियों के द्वारा उसे मुक्ति की प्रतीक्षा करना सिखाया। हे पवित्र पिता, तूने संसार को इतना प्यार किया कि जब अवधि पूरी हुई, तो तूने अपने इकलौते पुत्र को हमारे मुक्तिदाता के रूप में भेजा। वे पवित्र आत्मा की शक्ति से देह धारणकर कुँवारी मरियम से जन्में, पाप को छोड़ सब प्रकार से उन्होंने मानव जीवन जिया, उन्होंने विनीत जनों को उद्धार का, बंदियों को मुक्ति का और दु:खियों को आनंद का संदेश सुनाया। तेरी मुक्ति-योजना पूरी करने के लिए उन्होंने अपने प्राण अर्पित कर दिए और पुनर्जीवित होकर मृत्यु का विनाश तथा नवजीवन का निर्माण किया। हे पिता, उन्होंने तेरी ओर से अपने सर्वश्रेष्ठ वरदान पवित्र आत्मा को भक्तों के हित भेजा, ताकि हम अब से अपने लिए नहीं, बल्कि उनके लिए जिएँ, जो हमारे लिए मरे और जी उठे; वही पवित्र आत्मा संसार में खीस्त का मुक्तिकार्य पूरा करता और सृष्टि को सिद्ध-सम्पन्न बनाता है।
(वे करबद्ध होते हैं; और पुन: अपने हाथों को भेंट के ऊपर फैलाए हुए बोलते हैं :)
पु.पु० : इसलिए, हे प्रभु, हमारी प्रार्थना है : वही पवित्र आत्मा इन उपहारों को पवित्र करे,
(वे करबद्ध होते हैं और रोटी तथा कटोरे पर एक साथ एक बार क्रूस का चिह्न बनाते हुए बोलते हैं :)
(निम्नलिखित प्रार्थनाओं में प्रभु के शब्दों का स्पष्ट और अक्षरश: उच्चारण किया जाना चाहिए, क्योंकि यह इन शब्दों की प्रकृति द्वारा अपेक्षित है।)
(वे होस्तिया लेते हैं और उसे वेदी के थोड़ा-सा ऊपर उठाकर जारी रखते हैं : )
(वे थोड़ा नतमस्तक होते हैं।)
तुम सब इसे लो और इसमें से खाओ, क्योंकि यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए बलि चढ़ाया जाएगा।
(वे लोगों को प्रतिष्ठित होस्तिया दिखाते हैं, और उसे पुनः थालिका में रखकर आराधना में नतजानु होते हैं। इसके बाद वे जारी रखते हैं :)
इसी भाँति,
(वे कटोरा लेते हैं और उसे वेदी के थोड़ा-सा ऊपर उठाकर जारी रखते हैं :)
उन्होंने दाखर्स-भरा कटोरा लिया, तुझे धन्यवाद दिया और उसे अपने शिष्यों को देते हुए कहा :
(वे थोड़ा नतमस्तक होते हैं।)
तुम सब इसे लो और इसमें से पिओ, क्योंकि यह मेरे रक्त का कटोरा है, नवीन और अनंत व्यवस्थान का रक्त, जो तुम्हारे और बहुतों के पापों की क्षमा के लिए बहाया जाएगा। तुम मेरी स्मृति में यह करो।
(वे लोगों को कटोरा दिखाते हैं, और उसे पुनः दिव्यान्नपट पर रखकर आराधना में नतजानु होते हैं। तब वे बोलते हैं :)
पु० : विश्वास का रहस्य।
सब : 1. हे प्रभु, हम तेरी मृत्यु और पुनरुत्थान की घोषणा तेरे पुनरागमन तक करते रहेंगे।
अथवा
2. हे प्रभु, जब हम यह रोटी खाते और यह कटोरा पीते हैं, तेरे पुनरागमन तक तेरी मृत्यु की घोषणा करते हैं।
अथवा
3. हे विश्व के उद्धारकर्त्ता, हमारा उद्धार कर। तूने अपने क्रूस तथा पुनरुत्थान द्वारा हमें मुक्त किया है।
तब पुरोहित अपने हाथों को फैलाए हुए बोलते हैं :
पु० : इसलिए, हे प्रभु, हम अपनी मुक्ति के इस स्मृति-भोज में, खीस्त की मृत्यु तथा उनके अधोलोक-गमन की याद करके उनके पुनरुत्थान और स्वर्गरोहण के बाद तेरे दाहिने आसीन होने की घोषणा करते हैं, और उनके महिमामय पुनरागमन की प्रतीक्षा करते हुए हम तुझे उनका शरीर तथा रक्त चढ़ाते हैं; यह बलिदान तुझे सुग्राह्य और समस्त संसार के लिए मुक्तिदायी है। हे प्रभु, इस बलि पर कृपादृष्टि डाल, जिसे तूने ही अपनी कलीसिया के लिए तैयार किया है, अपनी दयालुता के कारण यह वर दे कि जो लोग यह रोटी खाएँ और यह कटोरा पिएँ वे सब पवित्र आत्मा के प्रभाव से एक शरीर बन जाएँ और खीस्त के साथ जीवंत बलि के रूप में तेरा महिमागान करें।
पु०1 : इसलिए, हे प्रभु, अब तू उन सबकी सुधि ले, जिनके लिए हम तुझे यह बलि चढ़ाते हैं : तेरे सेवक हमारे संत पिता (नाम), हमारे धर्माध्यक्ष (नाम), कलीसिया के सभी धर्माध्यक्षों और याजको की सुधि ले। इन सबका भी स्मरण कर, जो यहाँ उपस्थित होकर यह बलिदान चढ़ा रहे हैं। अपनी सारी प्रजा तथा उन सबका स्मरण कर, जो सच्चे हृदय से तेरी खोज में लगे रहते हैं। उन लोगों की भी सुधि ले, जो खीस्त की शांति में परलोक सिधार चुके हैं; उन मृतकों की सुधि ले, जिनकी धर्मनिष्ठा केवल तू जानता है।
पु०2 : हे दयालु पिता, हम सब तेरे पुत्र-पुत्रियाँ हैं, हमें यह वर दे कि ईश्वर की माता धन्य कुँवारी मरियम, उनके वर धन्य योसेफ तथा तेरे प्रेरितों और संतों के साथ हम भी स्वर्गिक आनंद प्राप्त कर सके। तब हम पाप और मृत्यु के अभिशाप से मुक्त होकर समस्त सृष्टि के साथ तेरे राज्य में तेरी महिमा करेंगे; अपने प्रभु खीस्त के द्वारा,
(वे करबद्ध होते हैं।)
जिनसे संसार को सभी शुभ दान प्राप्त होते हैं।
(वे कटोरा, और थालिका में होस्तिया लेते हैं और दोनों को ऊपर उठाते हुए बोलते हैं : )
पु.पु० : इन्हीं प्रभु खीस्त के द्वारा, इन्हीं के साथ और इन्हीं में, हे सर्वशक्तिमान् पिता ईश्वर, पवित्र आत्मा के साथ, सारा गौरव तथा सम्मान युगानुयुग तेरा ही है।
सब: आमेन।