प्रेरित-चरित 17 में हम देखते हैं कि पौलुस और सीलस थेसलनीके पहुँचे और वहाँ यहूदियों के सभागृह जाकर उन्होंने तीन विश्राम-दिवसों को उनके साथ तर्क-वितर्क किया और धर्मग्रन्थ की व्याख्या करते हुए यह प्रमाणित किया कि मसीह के लिए दुःख भोगना और मृतकों में से जी उठना आवश्यक था और येसु जिनका प्रचार वे कर रहे थे वे ही मसीह हैं। तब उन में कुछ लोगों ने प्रभु पर विश्वास किया और वे पौलुस तथा सीलस से मिल गये। बहुत-से ईश्वर-भक्त यूनानियों और अनेक प्रतिष्ठित महिलाओं ने भी यही किया। लेकिन इस से यहूदी ईर्ष्या से जलने लगे और उन्होंने बाजार के कुछ लोगों की सहायता से भीड़ एकत्र की और नगर में दंगा खड़ा कर दिया। वे पौलुस और सीलस को यह चिल्लाते हुए नगर-अधिकारियों के पास खींच ले गये, "वे लोग सारी दुनिया में अशान्ति फैला चुके हैं और अब वहाँ पहुँचे हैं”। अंगेज़ी अनुवाद में कहा गया है, “These people who have been turning the world upside down have come here also” (दुनिया को उलटने वाले ये लोग यहां भी आए हैं)।
प्रभु येसु को जानने के बाद लोगों का जीवन अवश्य ही बदल जाता है। प्रभु येसु को मानने वाले लोग दुनिया को उल्टा नहीं बल्कि सही दिशा में मोड़ते हैं। इस संसार के इतिहास में कभी भी किसी भी व्यक्ति ने नैतिकता का इतना ऊँचा स्तर नहीं दिया जितना प्रभु येसु मसीह ने दिया। जो अपने शब्द और कर्म से उस नैतिकता का प्रचार का प्रचार करते हैं, वे इस दुनिया कुरीतियों तथा समाज की बुराईयों को चुनौती हर्गिज देते हैं। इस दुनिया में जब लोग ऊँच-नीच की भावनाएं रखते हैं, येसु को मानने वाले यह सन्देश फैलाना चाहते हैं कि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान होने के नाते एक समान है; वे सब समान गरिमा तथा आदर के योग्य हैं। जो किसी न किसी प्रकार आगे बढ़ने की आशा के साथ गरीबों का शोषण करते हैं, कमजोर लोगों को कुचलते हैं तथा समानता और स्वतंत्रता के कई सिद्धांतों की उपेक्षा करते हैं, उन सब के सामने प्रभु येसु के सेवक सारी मानव जाति को समग्रता का सुसमाचार (Gospel of inclusiveness) सुनाते रहते हैं।
ऐसा करने पर समाज में विरोध होना स्वाभाविक है। संत मत्ती के सुसमाचार 10:16-20 में प्रभु येसु अपने शिष्यों से स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, “देखो, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों क़ी तरह भेजता हूँ। इसलिए साँप की तरह चतुर और कपोत की तरह निष्कपट बनो। "मनुष्यों से सावधान रहो। वे तुम्हें अदालतों के हवाले कर देंगे और अपने सभागृहों में तुम्हें कोडे़ लगायेंगे। तुम मेरे कारण शासकों और राजाओं के सामने पेश किये जाओगे, जिससे मेरे विषय में तुम उन्हें और गै़र-यहूदियों को साक्ष्य दे सको। "जब वे तुम्हें अदालत के हवाले कर रहे हों, तो यह चिन्ता नहीं करोगे कि हम कैसे बोलेंगे और क्या कहेंगे। समय आने पर तुम्हें बोलने को शब्द दिये जायेंगे, क्योंकि बोलने वाले तुम नहीं हो, बल्कि पिता का आत्मा है, जो तुम्हारे द्वारा बोलता है। मसीहियों का विरोध इसलिए नहीं होता है कि वे अशान्ति फैलाते हैं, बल्कि इसलिए कि वे “शान्ति-सुसमाचार के उत्साह के जूते पहने” (एफेसियों 6:15) हुए हैं।
प्रभु ने अपने शिष्यों को बुराई को भलाई से जीतने को सिखाया है। इसलिए वे मत्ती 5:44 में कहते हैं, “मैं तुम से कहता हूँ - अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।” आईए, हम हर प्रकार के भेद-भाव से ऊपर उठ कर शान्ति तथा भाईचारा के प्रेरित बनें और हर मनुष्य की वास्तविक उन्नति के लिए प्रयत्न करते रहें, कभी हिम्मत न हारें।
✍ - फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया