कोरोणा महामारी के अनुभव के कारण बहुत से लोग निराश हो गये हैं। वे चिन्ता करते रहते हैं कि आगे क्या होगा। प्रभु चाहते हैं कि हम विकट से विकट परिस्थितियों में भी उनमें विश्वास रखें तथा आशावान बने रहें। प्रभु कहते हैं, “मुझ पर भरोसा रखने वालों को लज्जित नहीं होना पड़ेगा।” (इसायाह 49:23)
पवित्र बाइबिल में हम बहुत से ऐसे लोगों को पाते हैं जो निराशाजनक परिस्थितियों में भी आशावान बने रहते हैं। रोमियों 4:18-21 में संत पौलुस कहते हैं, “इब्राहीम ने निराशाजनक परिस्थिति में भी आशा रख कर विश्वास किया और वह बहुत-से राष्ट्रों के पिता बन गये, जैसा कि उन से कहा गया था- तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे।यद्यपि वहजानते थे कि मेरा शरीर अशक्त हो गया है- उनकी अवस्था लगभग एक सौ वर्ष की थी- और सारा बाँझ है, तो भी उनका विश्वास विचलित नहीं हुआ, उन्हें ईश्वर की प्रतिज्ञा पर सन्देह नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने अपने विश्वास की दृढ़ता द्वारा ईश्वर का सम्मान किया।उन्हें पक्का विश्वास था कि ईश्वर ने जिस बात की प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में समर्थ है।”जब ईश्वर ने उनसे उनके एकलौते पुत्र का बलिदान चढाने को कहा, तब भी उनका विश्वास था कि उसके असंख्य वंशज होंगे।
योहन 5:1-18 में हम पढते हैं कि येरूसालेम में बेथेस्दानामक कुण्डके पास एक मनुष्यपडा हुआ था, जोअड़तीसवर्षोंसेबीमारथा। अड़तीस साल बीत जाने के बावजूत भी वह एक दिन ठीक होने का सपना देख रहा था। उसके अन्दर अब भी चंगाई पाने कीआशा थी। प्रभु येसु ने उसे चंगा किया।
लूकस 8:43-48 में हम देखते हैं कि बारह साल से रक्तस्राव से पीडित एक महिला विश्वास के साथ प्रभु येसु के कपडे के पल्ले छू कर चंगी हो जाती है। अपनी पूरी कमाई खर्च करने के बावजूद भी कोई भी उसे ठीक नहीं कर सका था। प्रभु में उसका विश्वास गहरा था। निराशाजनक परिस्थितियों के बीच भी ईश्वर में अपने विश्वास को बनाये रखना उसके लिए उतना आसान नहीं था। वह एक मात्र व्यक्ति नही थी जिसने येसु के कपडे के पल्ले को छू कर चंगाई प्राप्त की।
संत मत्ती (मत्ती 14:35-36) बताते हैं, “वहाँ (गेनेसरेत) के लोगों ने ईसा को पहचान लिया और आसपास के गाँवों में इसकी ख़बर फैला दी। वे सब रोगियों को ईसा के पास ले आकर उनसे अनुनय-विनय करते थे कि वे उन्हें अपने कपड़े का पल्ला भर छूने दें। जितनों ने उसका स्पर्श किया, वे सब-के-सब अच्छे हो गये।“
सभागृह के जैरुस नामक अधिकारी ने अपनी एकमात्र बीमार तथा मरणासन्न बेटी को उनके घर जाकर स्वस्थ करने के लिए प्रभु से निवेदन किया। प्रभु उनके साथ जा रहे थे। इस बीच उस अधिकारी को यह खबर मिलती है कि उसकी बेटी मर गयी है। प्रभु येसु उसके विश्वास को मज़बूत करते हैं। हमारी मॄत्यु भी इश्चर के लिए कोई सीमा नहीं है – यह साबित करते हुए प्रभु उस बालिका को मॄत्यु से वापस जीवन में लाये।
योहन 11 में हम देखते हैं कि लाज़रुस की मॄत्यु के चार दिन बाद प्रभु येसु मॄतक को जिलाते हैं। प्रभु के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
प्रभु येसु के जन्म की भविष्यवाणी करते हुए नबी इसायाह कहते हैं, “अन्धकार में भटकने वाले लोगों ने एक महती ज्योति देखी है, अन्धकारमय प्रदेश में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है” (इसायाह 9:1)।
जो प्रभु पर विश्वास करते हैं, वे निराशाजनक परिस्थितियों में उज्ज्वल भविष्य के सपने देखते हैं। पुराने विधान के यूसुफ़ तथा नये विधान के पवित्र परिवार के युसुफ़ – दोनों इस प्रकार सपने देखने वाले थे।
हम आशावान बने रहें तथा प्रभु येसु की उदारता पर विश्वास करें।
✍ - फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया