सुसमाचार के अनुसार कुछ लोगों को प्रभु येसु को अपने घर में स्वागत करने का मौका मिला। मारकुस 1:29-34 में हम देखते हैं कि पेत्रुस और अन्द्रयस को प्रभु येसु को अपने घर में स्वागत करने का अवसर मिला। प्रभु ने बुखार में पडी पेत्रुस की सास को चंगा किया और वह उठ कर प्रभु के सेवा-सत्कार में लग गयी। वहीं प्रभु ने बहुत से अन्य रोगियों को भी चंगा किया और बहुत से अपदूतों को निकाला।
लूकस 8:49-56 में हम देखते हैं कि जैरूस नामक सभागृह के अधिकारी के घर में जा कर प्रभु येसु ने उसकी बेटी को जिलाया और उस घर में आनन्द छा गया।
लूकस 5:17-26 में हम देखते हैं कि जब प्रभु येसु किसी घर मे बैठ कर वचन सुना रहे थे, तब वहाँ कुछ लोग एक अर्धांग रोगी को ले कर आये और प्रभु ने उसे चंगा किया।
लूकस 10:38-42 में हम पाते हैं कि प्रभु येसु ने मार्था, मरियम और लाजरुस के घर में प्रवेश किया और पवित्र वचन सुनाया। मरियम प्रभु के चरणों में बैठ कर वचन सुन रही थी जबकि मार्था सेवा-सत्कार में लगी थी। प्रभु ने मरियम की सराहना भी की। इस परिवार में प्रभु कई बार आते हैं। योहन 11 में बताया गया है कि लाजरुस की मृत्यु के चार दिन बाद वहाँ आकर प्रभु उसे पुनर्जीवित करते हैं।
लूकस 19:1-10 से हमें पता चलता है कि प्रभु येसु जकयुस के घर प्रवेश करते हैं और प्रभु के आगमन से जकयुस का जीवन बदल जाता है। वह उदार बन कर अपनी सम्पत्ति का दान करने तथा अपने अन्याय के कार्यों के लिए प्रायश्चित करने का मन बना लेता है। लूकस 24 के अनुसार पुनर्जीवित येसु एम्माउस जाने वाले शिष्यों के घर में प्रवेश कर उनके लिए रोटी तोडते हैं और उनकी निराशा को आनन्द में बदल देते हैं।
प्रभु के आगमन का हमारे ऊपर प्रभाव तो अवश्य पडता है। वे अपनी उपस्थिति से हमें आशा, आनन्द, चंगाई और विश्वास प्रदान करते हैं। वे हमारे जीवन की परिस्थितियों को बदल कर हमें एक आशामय भविष्य प्रदान करते हैं।
ईश्वर ने इब्राहीम के घर पधार कर उनको आशिष दी। इब्राहीम ने खुशी से उनका सेवा-सत्कार किया। (देखिए उत्पत्ति 18) इसी प्रकार प्रभु ने अन्ना के यहाँ पहुँच कर उसको आशीर्वाद दिया और अन्ना जो अब तक बाँझ कहलाती थी “बार-बार गर्भवती हुई और वह तीन पुत्रों और दो पुत्रियों की माता बन गयी” (1 समुएल 2:21)।
जब प्रभु येसु बछेडे पर बैठ कर येरूसालेम की ओर आ रहे थे, तो साधारण लोग रास्ते पर कपडे बिछा कर, हाथ में जैतून की डालियाँ ले कर उनका जय-जयकार करते हुए स्वागत कर रहे थे। परन्तु उस समय के बहुत से धनी तथा प्रभावषाली लोगों ने उनका स्वागत नहीं किया। येरूसालेम की ओर दृष्टि डाल कर प्रभु रो पडे और बोले, ’’हाय! कितना अच्छा होता यदि तू भी इस शुभ दिन यह समझ पाता कि किन बातों में तेरी शान्ति है! परन्तु अभी वे बातें तेरी आँखों से छिपी हुई हैं। तुझ पर वे दिन आयेंगे, जब तेरे शत्रु तेरे चारों ओर मोरचा बाँध कर तुझे घेर लेंगे, तुझ पर चारों ओर से दबाव डालेंगे, तुझे और तेरे अन्दर रहने वाली तेरी प्रजा को मटियामेट कर देंगे और तुझ में एक पत्थर पर दूसरा पत्थर पड़ा नहीं रहने देंगेय क्योंकि तूने अपने प्रभु के आगमन की शुभ घड़ी को नहीं पहचाना।’’ (लूकस 19:42-44) संत पेत्रुस कहते हैं, “गैर-मसीहियों के बीच आप लोगों का आचरण निर्दोष हो। इस प्रकार जो अब आप को कुकर्मी कह कर आपकी निन्दा करते हैं, वे आपके सत्कर्मों को देख कर ईश्वर के आगमन के दिन उसकी स्तुति करेंगे” (1 पेत्रुस 2:12)।
प्रकाशना 3:20 में वे कहते हैं, “मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।” इस आगमन काल में प्रभु येसु हमारे दिल के दरवाजे पर खटखटा रहे हैं। क्या हम हमारे दरवाजा खोलने के लिए तैयार हैं?
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया