हम शायद ही इस बात को पूरी तरह समझ पाते हैं कि पवित्र बाइबिल का सब से ज़्यादा चुनौतीपूर्ण सन्देश पडोसी-प्रेम का सन्देश है।
निर्गमन 20 में हम देखते हैं कि प्रभु ईश्वर सीनई पर्वत पर इस्राएलियों को दस आज्ञाएं देते हैं। इन आज्ञाओं को हम बचपन से ही जानते हैं। इन में से पहली तीन आज्ञाएं इशप्रेम के बारे में हैं जबकि चौथी से दसवीं तक की आज्ञाएं पडोसी-प्रेम के बारे में हैं। यानि दस में से तीन आज्ञाएं ईशप्रेम के संबध में और बाकी सात आज्ञाएं पडोसी-प्रेम के संबंध में। इस से हम यह समझ सकते हैं कि पडोसी-प्रेम कितना ज़रूरी है।
जब मत्ती 22:34-40 में फरीसी लोग येसु की परीक्षा लेने हेतु प्रभु से प्रश्न करते हैं कि संहिता में सब से बडी आज्ञा कौन-सी है, तब प्रभु येसु उन्हें बताते हैं, “अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है।“ (मत्ती 22:37-38)
प्रभु येसु पडोसी-प्रेम की आज्ञा को ईशप्रेम की आज्ञा के सदृश मानते हैं। दोनों को लागभग बराबरी का दर्जा दिया जाता है। इसलिए वे वहाँ न रुक कर आगे बढ कर कहते हैं, “दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। इन्हीं दो आज्ञायों पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलम्बित हैं।“ (मत्ती 22:39-40) इस का कारण क्या है?
सन्त योहन हमें इस का कारण समझाते हैं। वे कहते हैं, “यदि कोई यह कहता कि मैं ईश्वर को प्यार कता हूँ और वह अपने भाई से बैर करता, तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को जिसे वह देखता है, प्यार नहीं करता तो वह ईश्वर को, जिसे उसने कभी नहीं देखा, प्यार नहीं कर सकता। इसलिए हमें मसीह से यह आदेश मिला है कि जो ईश्वर को प्यार करता है, उसे अपने भाई को भी प्यार करना चाहिए।“ (1 योहन 4:20-21)
प्रभु येसु की यह शिक्षा है कि हम अपने पडोसी को “अपने समान” प्यार करें। इस वाक्यांश में सारी चुनौती मौजूद है। जितना मैं अपना ख्याल करता हूँ, मुझे उतना ही ख्याल अपने पडोसी का करना चाहिए।
लूकस 10:29-37 में प्रभु भले समारी के दृष्टान्त के जरिए हमें समझाते हैं कि जो भी कोई हमारे करीब आते हैं और जिसके भी करीब हम अपने को पाते हैं, वे सब के सब हमारे पडोसी हैं। जिनके पास से हम गुजरते हैं, जिनके साथ हम काम करते हैं और जिनके भी संपर्क में हम आते हैं – वे सब हमारे पडोसी हैं और उन सब को हमें अपने समान प्यार करना चाहिए।
लूकस 16:19-31 में अमीर और लाज़रुस के दृष्टान्त के द्वारा प्रभु येसु हमें यह भी समझाते हैं कि मुक्ति पाने के लिए पडोसी-प्रेम न केवल महत्वपूर्ण है बल्कि अनिवार्य है। अपने गरीब और लाचार पडोसी लाज़रुस का नज़र-अन्दाज करने वाला धनी व्यक्ति नरक में हमेशा-हमेशा के लिए न बुझने वाली आग में तडपता रहता है। हम पडोसी के आंगन से हो कर ही स्वर्ग जा सकते हैं।
प्रभु येसु ईश्वर के एकलौते पुत्र हैं। उन्होंने हम में से हरेक व्यक्ति को पडोसी मान कर हम को अपने समान प्रेम करते हुए हमें ईश्वर की सन्तति बनाया। इसलिए संत योहन कहते हैं, “जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया” (योहन 1:12)। इसी पडोसी प्रेम के कारण प्रभु येसु जहाँ वे हैं वहाँ हमें भी रखना चाहते हैं। “मेरे पिता के यहाँ बहुत से निवास स्थान हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो मैं तुम्हें बता देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये स्थान का प्रबंध करने जाता हूँ। मैं वहाँ जाकर तुम्हारे लिये स्थान का प्रबन्ध करने के बाद फिर आऊँगा और तुम्हें अपने यहाँ ले जाउँगा, जिससे जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम भी रहो। (योहन 14:2-3) हम भी इसी प्रभु से प्रेरणा पा कर पडोसी को अपने समान प्यार करें।
-फादर फ़्रांसिस स्करिया