येसु का अधिकार

Word of Godमत्ती 28:18 में प्रभु अपने शिष्यों से कहते हैं, “मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है”। क्या हम इस सत्य पर विश्वास करते हैं? क्या मैं विश्वास करता हूँ कि सभी लोगों, परिस्थितियों, घटनाओं तथा जगहों पर येसू का पूरा-पूरा अधिकार है। येसु का मौसम, प्रकृति, बीमारी और अशुद्ध आत्मा पर भी अधिकार हैं?

प्रभु येसु अधिकार के साथ बोलते थे। मत्ती 7:28-29 में हम पढ़ते हैं, “जब ईसा का यह उपदेश समाप्त हुआ, तो लोग उनकी शिक्षा पर आश्चर्यचकित थे; क्योंकि वे उनके शास्त्रियों की तरह नहीं बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।” मारकुस 1:22 में भी इसी बात पर जोर दिया गया है।

संत मारकुस 2:1-12 में हम देखते हैं कि जब कुछ लोगों ने विश्वास के साथ एक अर्धांग रोगी को एक चारपाई पर लिटा कर छत खोल कर येसु के सामने उतारा, तब येसु ने अर्धांगरोगी से कहा, “बेटा! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं”। यह सुनकर वहाँ खडे शास्त्री सोचने लगते हैं कि यह ईश-निन्दा करता है। ईश्वर के सिवा कौन पाप क्षमा कर सकता है? इस पर प्रभु शास्त्रियों से प्रश्न करते हैं, “अधिक सहज क्या है- अर्धांगरोगी से यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’, अथवा यह कहना, ’उठो, अपनी चारपाई उठा कर चलो-फिरो’? परन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है’’- वे अर्धांगरोगी से बोले- “मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी चारपाई उठा कर घर जाओ’’। इस प्रकार प्रभु येसु उनके सामने प्रमाणित करते हैं कि उन्हें पाप-क्षमा का अधिकार है।

येरूसालेम के मंदिर को शुद्ध करने के बाद जब येसु मंदिर में शिक्षा दे रहे थे, तो महायाजक और जनता के नेता उनके पास आ कर बोले, “आप किस अधिकार से यह सब कर रहें हैं? किसने आप को यह अधिकार दिया ?” (लूकस 20:2) येसु को मालूम था कि उन पर दोष लगाने के लिए ही वे इस प्रकार के प्रश्न कर रहे थे। इसलिए उन्होंने जवाब देने से इनकार किया। इससे यह साबित होता है कि येसु वह कार्य भी अधिकार के साथ कर रहे थे। उनका मंदिर पर अधिकार था क्योंकि वे स्वयं ईश्वर हैं। लूकस 2:49 में येसु येरूसालेम के मंदिर को “मेरे पिता का घर” कहते हैं। लूकस 19:46 में प्रभु उसे “मेरा घर” कहते हैं। इस संबध में हम यह न भूलें कि हमारा शरीर भी पवित्र आत्मा का मंदिर है (1 कुरिन्थियों 6:19) और उस पर भी येसु का अधिकार है।

सभी प्रकार के शारीरिक तथा आत्मिक रोगों पर येसु का अधिकार है। वे इस अधिकार का उपयोग करके बहुत से रोगियों को चंगा करते हैं। मारकुस 1:32-34 में हम पढ़ते हैं, “सन्ध्या समय, सूरज डूबने के बाद, लोग सभी रोगियों और अपदूतग्रस्तों को उनके पास ले आये। सारा नगर द्वार पर एकत्र हो गया। ईसा ने नाना प्रकार की बीमारियों से पीडि़त बहुत-से रोगियों को चंगा किया ....।”

येसु का मृत्यु पर भी अधिकार है। इसी अधिकार का उपयोग कर येसु मृतकों को जिलाते हैं। (दे. मारकुस 5:38-43; लूकस 7:11-17; योहन 11:42-44)

वे समुद्र को शांत करते हुए (दे. लूकस 8:22-25) तथा पानी पर चलते हुए (दे. योहन 6:16-19) प्रकृति पर अपने अधिकार का प्रमाण देते हैं। पानी को दाखरस में बदल कर और पाँच रोटियों तथा दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को खिला कर येसु प्रकृति के नियमों पर भी अपने अधिकार का प्रमाण देते हैं।

येसु का अशुध्दात्माओं पर भी अधिकार है। लूकस 4:36 में हम पढ़ते हैं, “सब विस्मित हो गये और आपस में यह कहते रहे, “यह क्या बात है! वे अधिकार तथा सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आदेश देते हैं और वे निकल जाते हैं।” मारकुस 5:7 एक अपदूतग्रस्त मनुष्य येसु से निवेदन करता है, “मुझे न सताइए”।

येसु का सारी सृष्टि पर अधिकार है। “ईसा मसीह अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टि के पहलौठे हैं; क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टि हुई है। सब कुछ - चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, और स्वर्गदूतों की श्रेणियां भी - सब कुछ उनके द्वारा और उनके लिए सृष्ट किया गया है। वह समस्त सृष्टि के पहले से विद्यमान हैं और समस्त सृष्टि उन में ही टिकी हुई है।” (कलोसियों 1:15-17)

जब प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते हैं, “मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ” (मत्ती 28:20) वे इसी पूरे-पूरे अधिकार के साथ हमारे साथ रहने का वादा करते हैं। स्वर्ग में आरोहित करने वाले प्रभु से इससे बडा कोन-सा आश्वासन हमें मिल सकता है?

येसु अपने अधिकार में अपने शिष्यों को भी सहभागी बनाते हैं (देखिए लूकस 10:19; मारकुस 3:15)। लेकिन हमें येसु के इस चेतावनी पर भी ध्यान देना चाहिए कि हमें संसार के अधिपतियों के समान लोगों को निरंकुश शासन नहीं करना चाहिए है और सत्ताधारियों की तरह लोगों पर अधिकार नहीं जताना चहिए, बल्कि प्रभु के इस अनुदेश पर ध्यान देना चाहिए – “तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बडा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने और जो तुम में प्रधान होना चाहता है, वह तुम्हारा दास बने” (मत्ती 20:26-27)

-फादर फ़्रांसिस स्करिया


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