इतिहास के दूसरे ग्रन्थ के अध्याय 14 से 16 में हम यूदा के राजा आसा के बारे में पढ़ते हैं। चौहदवाँ अध्याय इस प्रकार शुरू होता है : “आसा ने वही किया, जो प्रभु, उसके ईश्वर की दृष्टि में अच्छा और उचित था।” यह कितना सुन्दर वचन है। इस वचन के बाद आसा के शासन काल के बारे में विस्तार से हमें जानकारी दी जाती है। आसा ने मूर्तिपूजा, जादू-टोना आदि खत्म करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। यहाँ तक कि “राजा आसा ने अपनी दादी माता को राजमाता के पद से हटा दिया, क्योंकि उसने घृणित अशेरा-देवी का खूँट बनवाया था। उसने उसके द्वारा स्थापित घृणित मूर्ति काट दी, उसे चूर-चूर कर दिया और केद्रोन घाटी में जलवा दिया।“ (2 इतिहास 15:16) उन्होंने हर कार्य में ईश्वर से परामर्श किया और ईश्वर के मार्गदर्शन पर चलने का हर संभव प्रयत्न किया। इसके फलस्वरूप उसे सफलता मिलती रही।
जब कूश के जे़रह ने दस लाख की एक सेना और तीन सौ रथ ले कर उन पर आक्रमण किया, तो आसा ने ईश्वर की शक्ति पर निर्भर रह कर उसे पराजित किया। लेकिन जब उसकी प्रगति हुयी, तब वह घमण्ड करने तथा ईश्वर को भूलने लगा। तब “ओदेद का पुत्र अज़र्या ईश्वर के आत्मा से आविष्ट हो कर आसा की अगवानी करने निकला और उस से बोला, ‘‘आसा और समस्त यूदा और बेनयामीन! मेरी बात सुनिए। प्रभु आपके साथ होगा, यदि आप उसके साथ होंगे। यदि आप उसे ढूँढ़ेंगे, तो वह आप को मिलेगा। यदि आप उसे त्यागेंगे, तो वह भी आप को त्याग देगा।“ (2 इतिहास 15:1-2) आसा उस चेतावनी पर ध्यान देकर ईश्वर की ओर अभिमुख हो गया और उसके फलस्वरूप “आसा के शासनकाल के पैंतीसवें वर्ष तक कोई युध्द नहीं हुआ।” ( 2 इतिहास 15:19)
परन्तु पैंतीस सालों की सफलताओं तथा उपलब्धियों पर वह गर्व करने लगा। आसा के शासनकाल के छत्तीसवें वर्ष इस्राएल के राजा बाशा ने यूदा पर आक्रमण किया। तब आसा ने अपने प्रभु ईश्वर से मदद माँगने के बजाय दमिश्कवासी अराम के राजा बेन-हदद के यहाँ प्रभु के मन्दिर और अपने महल के कोषागारों का चाँदी-सोना अपने सेवकों द्वारा भेज कर अपने शत्रु के विरुध्द लडने के लिए मदद माँगी। इस प्रकार उसने प्रभु के विरुध्द पाप किया। तब ईश्वर ने दृष्टा हनानी को राजा आसा के पास यह कहने भेजा ‘‘आपने अराम के राजा पर भरोसा रखा और प्रभु, अपने ईश्वर पर नहीं। इसलिए अराम के राजा की सेना आपके हाथ से निकल गयी।” (2 इतिहास 16:7) उनकी वाणी पर ध्यान देकर पश्चात्ताप करने के बजाय दृष्टा की बात सुन कर आसा क्रुध्द हो गया और उसने उस दृष्टा को बन्दीगृह में डाल कर उसे काठ की बेड़ियाँ पहना दीं” (2 इतिहास 16:10)। इसके अलावा, आसा ने प्रजा के अनेक लोगों पर भी अत्याचार किया।
पवित्र ग्रन्थ आसा के कुकर्म को दर्शाते हुए कहता है, “उसके शासनकाल के उनतालीसवें वर्ष में आसा के पाँवों में बीमारी हो गयी। वह बीमारी बड़ी भयानक थी। वह उस बीमारी में भी प्रभु के पास नहीं गया, बल्कि वैद्यों के पास गया।” (2 इतिहास 16:13) अपने शासनकाल के इकतालीसवें वर्ष में आसा की मृत्यु हो गयी। इस कार्य-काल के पैंतीसवें वर्ष तक उसने ईश्वर की सेवा की और उसने ईश्वर से आशिष प्राप्त की, परन्तु शेष छ: साल वह ईश्वर से दूर रहा और फलस्वरूप ईश्वर की कृपा से वंचित रहा।
इस संबंध में एज़ेकिएल के ग्रन्थ 33:12 में प्रभु नबी एज़ेकिएल से कहते हैं, “मानवपुत्र! तुम अपने लोगों से यह कहोगे- धर्मी की धार्मिकता, उसके पाप करने पर, उसे नहीं बचा पायेगी और दुष्ट की दुष्टता, उसके दुष्टता छोड़ देने पर, उसके विनाश का कारण नहीं बनेगी और पाप करने पर धर्मी अपनी धर्मिकता के कारण जीवित नहीं रह सकेगा।” प्रभु नबी के द्वारा इस्राएलियों को सिखाते हैं कि धर्मी को अपनी धार्मिकता के भरोसे पाप नहीं करना चाहिए बल्कि धार्मिकता में बने रहना चाहिए। पापी को अपना कुमार्ग छोड कर धार्मिकता को अपनाना चाहिए।
ईश्वर हमें बचाना चाहते हैं। हमें कभी भी धार्मिकता के मार्ग को नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि उसी में धीरज के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए। पापी को बचने के लिए अपना कुमार्ग को छोड़ कर धार्मिकता को धारण करना चाहिए।
येसु के दायें और बायें सैनिकों ने एक-एक डाकू को क्रूसित किया था। उनमें से एक उस समय भी ईश-निन्दा कर रहा था। परन्तु दूसरे ने उसे डाँटने के बाद येसु से विनती की, “ईसा! जब आप अपने राज्य में आयेंगे, तो मुझे याद कीजिएगा’’। (लूकस 23:42) तब येसु ने उस से कहा, “मैं तुम से यह कहता हूँ कि तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होगे’’ (लूकस 23:43)। नबी एज़ेकिएल द्वारा सुनायी गयी ईश्वर की वाणी यहाँ पर हम सार्थक होते देखते हैं। आईए, हम भी अपने पापों के कुमार्ग को छोड़ कर ईश्वर के पास रहने का दृढ़संकल्प करें।
-फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया