ईश्वर के अभिषिक्त

उत्पत्ति ग्रन्थ 19 में हम देखते हैं, कि सोदोम और गोमोरा के विनाश करने से पहले स्वर्गदूतों ने यह कहते हुए लोट से अनुरोध किया, “जल्दी कीजिए! अपनी पत्नी और अपनी दोनों पुत्रियों को ले जाइए। नहीं ओ आप भी नगर के दण्ड के लपेट में नष्ट हो जायेंगे।“ हालाँकि लोट की पत्नी पीछे मुड़ कर देखने के कारण नमक का खम्भा बन गयी, लोट और उनकी दो बेटियाँ बच गये। अगर ईश्वर दर्शन देकर हम से कहते हैं कि वे हमारे शहर को नष्ट करने वाले हैं और हम भाग कर बच सकते हैं, तो हम में कौन है जो तुरन्त नहीं भागेगा?

हम गणना ग्रन्थ अध्याय 16:41-50 में देखते हैं कि जब इस्राएलियों का सारा समुदाय मूसा और हारून के विरुध्द भुनभुनाने लगा, तो ईश्वर ने उन पर महामारी भेजने निर्णय लिया। इसलिए उन्होंने मूसा से कहा, “तुम इस समुदाय से दूर रहो। मैं क्षणभर में उन्हें नष्ट कर दूँगा”। तब मूसा ने वहाँ से भाग कर अपने आप को बचाना को नहीं सोचा, बल्कि पुरोहित हारून से कहा, ''तुम अपने धूपदान में वेदी पर से आग लो और उस पर लोबान रखो। उसे तुरन्त समुदाय के पास ले जाओ और उनके लिए प्रायश्चित-विधि सम्पन्न करो, क्योंकि प्रभु का क्रोध भड़क उठा और महामारी प्रारम्भ हो चुकी है।'' हारून मूसा की बात सुन कर उसका पालन करते हैं और तुरन्त महामारी रुक जाती है। इस विषय में प्रज्ञा-ग्रन्थ कहता है कि हारून ने “अपनी धर्मसेवा के शस्त्रों से, अर्थात्‍ प्रार्थना और प्रायश्चित्त-बलि की धूप से सुसज्जित” होकर ईश्वर के क्रोध का सामन किया और विपत्ति को समाप्त किया। पवित्र ग्रन्थ इसकी भी याद दिलाता है कि उस समय हारून एफ़ोद पहने था जिसपर समस्त विश्व का प्रतीक था। (देखिए प्रज्ञा ग्रन्थ 18:20-25).

पुरोहित जनता के लिए समर्पित है और जनता पर विपत्ती आने पर वह भाग नहीं सकता, बल्कि उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी धर्मसेवा के शस्त्रों को लेकर उस विपत्ति का सामना करने के लिए उनकी मदद करें। मिस्सा बलिदान के लिए जिस परिधान को पुरोहित पहनते हैं, वह उस पल्लि-समुदाय और समस्त विश्व की समस्याओं तथा कामनाओं का प्रतीक है।

पुरोहित प्रभु का अभिषिक्त है। अभिषेक के समय उम्मीदवार के सिर पर तेल उंडेला जाता है। स्तोत्र 133:2 हारून के अभिषेक का दृश्य हमारे सामने रखता है: “यह सिर पर सुगन्धित तेल-जैसा है, जो दाढ़ी पर, हारून की दाढ़ी पर उतरता है। जो उसके कुरते की गरदनी तक उतरता है।“ जिस प्रकार ईश्वर ने मूसा को आदेश दिया था, उन्होंने हारून को पहनने के लिए एफ़ोद बनवाया था। (देखिए निर्गमन 39:2-21) उस एफ़ेद पर लगी सुलेमानी की दो मणियों पर इस्राएल के पुत्रों के नाम अंकित किये गये थे। जब हारून का अभिषेक किया गया था, तब उस परिधान के ऊपर से तेल बह कर उसके पल्लों तक पहुँचता है। इस प्रकार इस्राएल के सभी बारह वंश हारून के अभिषेक में भाग लेते हैं। इसी कारण जब कभी हारून इस परिधान को पहन कर धूप या बलिदान चढ़ाते हैं तब वे इस्राएल के बारह वंशों के प्रतिनिधि बनकर धर्मसेवा के कार्य करते हैं।

अज जब किसी पुरोहित का अभिषेक होता है, तब ईश्वर की सारी प्रजा उस अभिषेक में सहभागी बनती है। जब एक ख्रीस्तीय पुरोहित मिस्सा बलिदान चढ़ाते हैं, तब जो परिधान वे पहनते, वह समस्त विश्व को प्रभु के सामने लाने का प्रतीक बनता है। वे सारी दुनिया की ओर से ही बलिदान चढ़ाते हैं। उनके साथ विश्वास में दृढ़ बनकर बलिदान में भाग लेने पर ईश्वर हमें अपना विशेष संरक्षण और आशिष प्रदान करते हैं। पुरोहित ईश्वर चुने हुए होते हैं, इसी कारण वे ईश्वर को प्रिय होते हैं।

येसु मसीह हैं, ख्रीस्त हैं। ख्रीस्त का मतलब है - अभिषिक्त। लूकस 4:18-19 में नबी इसायाह के ग्रन्थ से पढ़ कर प्रभु येसु अपने अभिषेक के बारे में कहते हैं, “प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृष्टिदान का सन्देश दूँ, दलितों को स्वतन्त्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।” उनके परिधान का भी अभिषेक हुआ है। लूकस 8:43-44 में हम इस अभिषेक की शक्ति को पहचान सकते है। बारह वर्ष से रक्तस्राव से पीडित एक स्त्री, जिसको कोई भी स्वस्थ नहीं कर सका था, ने पीछे से आ कर ईसा की चादर का पल्लू छू लिया और उसका रक्तस्राव उसी क्षण बन्द हो गया। प्रभु को यह महसूस होता है कि उनके अन्दर से शक्ति निकली है। वे कहते हैं, “मैंने अनुभव किया कि मुझ से शक्ति निकली है।” (लूकस 8:46)

ईश्वर अभिषिक्तों को और उनके द्वारा सारे विश्वासी समुदाय को पवित्र आत्मा की शक्ति से भर देते हैं। हमें इस वास्तविकता को समझना तथा उस के अनुसार जीवन बिताना चाहिए। 1 इतिहास 16:22 में प्रभु कहते हैं, “मेरे अभिषिक्तों पर हाथ नहीं लगाना, मेरे नबियों को कष्ट नहीं देना’’। स्तोत्र 105:15 में इसी बात को पुनः दुहराया गया है। राजा साऊल दाऊद के विरुद्ध ईष्या करते हैं और उसे चोट पहुँचाने के ताक में रहते हैं। परन्तु मौका मिलने पर भी दाऊद साऊल पर वार करने से यह कह कर इनकार करते हैं कि वे प्रभु के अभिषिक्त हैं और इसलिए उन पर हाथ नहीं लगाना चाहिए। कलीसिया में दृढ़ीकरण संस्कार द्वारा सभी लोग पवित्र आत्मा का अभिषेक पाते हैं। हमें इस अभिषेक की अमूल्यता को समझना चाहिए। इस के अतिरिक्त कलीसिया के अभिषिक्त धर्माध्यक्षों तथा पुरोहितों के अभिषेक में भी हम शामिल होना चाहिये हैं। हम यह भी याद करें कि यह अभिषेक हमें दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने, बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृष्टिदान का सन्देश देने, दलितों को स्वतन्त्र करने और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करने की जिम्मेदारी भी सौंपता है।

-फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया


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