मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ

क्या आपने इस पर कभी गौर किया है कि मरुभूमी में सन्त योहन बपतिस्ता से मिलने के लिए इतने सारे लोग क्यों गये थे? योहन के पास क्या था जिस के कारण बहुत से लोग उनकी ओर आकर्षित हो गये थे?

मत्ती 11:7 में प्रभु येसु स्वयं लोगों से प्रश्न करते हैं, “तुम लोग निर्जन प्रदेश में क्या देखने गये थे?” दुनियावी दृष्टिकोण से देखने पर योहन में कोई आकर्षण नहीं था। वे बढ़िया कपड़े पहनने वाले नहीं थे, राजमहल में रहनेवाले भी नहीं थे। उनका निवास-स्थान भी किसी शहर के किसी प्रमुख चैराहे पर नहीं था। वे जनसामान्य से दूर निर्जन प्रदेश में रहते थे। वे ऊँट के रोओं का कपडा पहनते थे तथा कमर में चमड़े का पट्टा बाँधे रहते थे। (देखिए मत्ती 3:4) वे टिड्डियाँ और वन का मधु खाते थे। इसके अतिरिक्त अगर हम उनकी भाषाशैली पर ध्यान देंगे तो हमें यह पता चलता है कि वह भी साधारण रीति से किसी को आकर्षित करने वाली नहीं थी। योहन बपतिस्ता अपने भाषण में कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते थे। कौन यह पसन्द करेगा कि कोई उसे “साँप का बच्चा” कहे। इन सब के बावजूद भी पवित्र ग्रन्थ यह कहता है कि “येरूसालेम, सारी यहूदिया और समस्त यर्दन प्रान्त के लोग योहन के पास आते थे” (मत्ती 3:5)। जिस व्यक्ति में ईश्वर का आत्मा क्रियाषील है वह आत्मा लोगों को आकर्षित करता है।

निर्गमन ग्रन्थ, अध्याय 3 में हम देखते हैं कि ईश्वर जलती हुई झाड़ी में अपने को प्रकट कर मूसा को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। तब मूसा कहने लगते हैं, “यह अनोखी बात निकट से देखने जाऊँगा” (निर्गमन 3:3)।

येसु बहुत से लोगों को आकर्षित करते हैं। उनके जन्म के समय गडेरिए आकर उनका दर्शन करते हैं। पूर्व से आये ज्योतिषी बालक येसु से मिलने की तीव्र इच्छा रखते हैं और वे इस इच्छा को कार्यान्वित करने हेतु एक लम्बी यात्रा तय करते हैं और लोगों से पूछताछ कर बालक के निवास-स्थान का पता लगाते हैं। एक तारे के द्वारा ईश्वर स्वयं उनका मार्गदर्शन करते हैं। अन्त में वे बेथलेहेम पहुँच कर बालक को उनकी माता मरियम के साथ देखते और उन्हें साष्टांग प्रणाम करते हैं। फिर वे अपना-अपना सन्दूक खोलकर बालक येसु को सोना, लोबान और गंधरस की भेंट चढ़ाते हैं।

येरूसालेम के धर्मी तथा भक्त पुरुष सिमेयोन इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में रहता था। उसे पवित्र आत्मा से यह ज्ञात हुआ कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा। बालक येसु के मंदिर में समर्पण के समय उसकी यह कामना पूरी होती है। जब उसकी कामना साकार होती है, तब संतृप्त होकर वह कहने लगता है, “’प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शान्ति के साथ विदा करिये क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है” (लूकस 2:29-30)

लूकस 19:1-10 में हम देखते हैं कि येरीखो के नाकेदार जकेयुस के मन में यह देखने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि “ईसा कैसे हैं” (लूकस 19:3)। यह जिज्ञासा तब प्रकट होती है जब वह गूलर के एक पेड़ पर चढ़ कर येसु का इंतजार करता है। येसु न केवल रास्ते में जकेयुस से मिलने के लिए रुकते हैं, बल्कि जकेयुस को पास बुलाकर उनके साथ उनके मेहमान बन कर उनके घर भी जाते हैं।

यहूदियों की महासभा का सदस्य फरीसी निकोदेमुस येसु से मिलने की इच्छा के कारण रात को उनके पास जाते हैं और धीरे-धीरे दोनों के बीच एक गहरा संबध बनता है (देखिए योहन 3:2; 7:50; 19:39)।

जो ईश्वर का अनुभव पाना चाहते हैं उन्हें उत्सुकता से उनकी खोज करनी चाहिए। उस के लिए उन्हें कुछ खोना पड़ सकता है, कुछ तकलीफें उठाना पड़ सकती है, बहुत कुछ त्यागना पड़ सकता है और बहुत इंतजार भी करना पड़ सकता है। स्तोत्रकार कहता है, “जो तुझ पर भरोसा रखते हैं, वे कभी निराश नहीं होते। निराश वे होते हैं, जो अकारण तुझे त्यागते हैं।“ (स्तोत्र 25:3)

कुछ लोग येसु से मिलने की इच्छा तो रखते हैं, परन्तु उन तक पहुँचने का रास्ता उन्हें लम्बा और कठिन लगता है। इसलिए वे ईश्वर से दूर ही रह जाते हैं। लूकस 9:9 कहता है कि हेरोद येसु की चर्चा सुन कर उनको देखने के लिए उत्सुक था“। लूकस 23:8-9 हमें बताता है “हेरोद ईसा को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। वह बहुत समय से उन्हें देखना चाहता था, क्योंकि उसने ईसा की चर्चा सुनी थी और उनका कोई चमत्कार देखने की आशा करता था। वह ईसा से बहुत से प्रश्न करता रहा, परन्तु उन्होंने उसे उत्तर नहीं दिया।“

सन्त याकूब कहते हैं, “ईश्वर के पास जायें और वह आपके पास आयेगा” (याकूब 4:8)। स्तोत्रकार के साथ हम भी कामना करें, “ईश्वर! तू ही मेरा ईश्वर है! मैं तुझे ढूँढ़ता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी सन्तप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ।“ (स्तोत्र 63:1.2)

-फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया


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