प्रतिवर्ष की भाँती इस वर्ष भी आगमन काल की अवधि प्रारम्भ हो चुकी है। माता कलीसिया हमें चार सप्ताह का समय देती है प्रभु के आगमन की उचित तैयारी के लिए। यह तैयारी दो रूपों में हो सकती है – बाह्य तैयारी एवं दूसरा है आन्तरिक तैयारी। बाह्य तैयारी का मतलब है हमारे घरों की साफ-सफाई तथा साज-सज्जा। और आन्तरिक तैयारी से तात्पर्य है हमारी आध्यात्मिक तैयारी।
लेकिन सबसे पहले यह सवाल उठता है कि यह आगमन काल है क्या और प्रभु ख्रीस्त तो दो हजार साल पहले ही आ चुके हैं और क्रूस पर मरकर अपना मुक्तिकार्य भी पूर्ण कर चुके हैं। फिर यह किसके आगमन का समय है? किसके आगमन की तैयारी का समय? किस बात की तैयारी का समय? जब ‘सब कुछ समाप्त हो चुका’ है तो फिर बाकी क्या बचा है? एक बार प्रभु के इस दुनिया में आने के बाद, फिर दो हज़ार साल से किसका आना अभी बाकी है? ऐसे ही कुछ सवाल हैं जिनको अगर हम समझ लें तो हम आगमन काल का सदुपयोग एवं प्रभु येसु के जन्म का त्यौहार सार्थक रूप से मना पाएंगे।
वास्तव में यह आगमन काल प्रभु के आगमन से अधिक हमारे आगमन का समय है। प्रभु तो आ चुके हैं, बल्कि सर्वत्र हैं, लेकिन क्या हम प्रभु के पास, प्रभु में आ चुके हैं? यह समय इसी ओर इंगित करता है कि हम कहाँ हैं, प्रभु में हैं या प्रभु से दूर हैं। प्रभु ने दो हज़ार साल पहले दुनिया को बचाने के लिए इस दुनिया में जन्म लिया, लेकिन वो आज इस दुनिया में नहीं जिसमें वो पहले ही जन्म ले चुके हैं, बल्कि वो आज मेरी दुनिया, आपकी दुनिया, हम सबमें से प्रत्येक की दुनिया में जन्म लेना चाहते हैं। अगर मेरी दुनिया उनके जन्म लेने के योग्य है तो वो ज़रूर उसमें जन्म लेंगे लेकिन अगर मेरी दुनिया ही प्रभु के योग्य नहीं है तो वो तब तक इंतजार करेंगे जब तक मैं उनके लिए अपनी दुनिया को योग्य न बना लूँ।
आगमन काल का समय इसी दुनिया को सँवारने का समय है। यह समय हमें याद दिलाता है कि मेरा व्यक्तिगत जीवन, मेरी व्यक्तिगत दुनिया कैसी है? क्या इसमें प्रभु के लिए स्थान है? चार सप्ताह का समय इसी के मूल्यांकन एवं सुधार का समय है। इस दुनिया को तैयार करने से पहले हमें इसे समझना होगा। इस दुनिया में है क्या, या कौन है? ईश्वर की सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा है कि हम ईश्वर को सबसे बढ़कर प्यार करें और उसके बाद दूसरों को भी खुद के समान प्यार करें। यानि कि इस दुनिया के सिर्फ तीन पहलु हैं – ईश्वर, मैं और मेरे भाई-बहन।
आगमन काल का उद्देश्य यही है कि मैं इस समय में ईश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को और मजबूत करूँ। इसके कई तरीके हैं- प्रतिदिन अथवा जितना ज्यादा हो सके पवित्र युखरिस्त में भाग लें। संस्कारों को भक्तिपूर्वक गृहण करें। अगर किसी का दिल दुखाया है तो उनसे माफ़ी मांगे, या किसी को माफ़ करना बाकी है तो उन्हें माफ़ कर अपना मन साफ करें। जब हमारा सम्बन्ध ईश्वर से और दूसरों से अच्छा और भला, गहरा हो जाता है तभी हमारे जीवन में ईश्वर का आगमन होता है और हमारा ईश्वरीय जीवन में। वे आपकी व्यक्तिगत दुनिया को सँवारने में एवं उसे अपने निवास के योग्य बनाने में आपको आशिष प्रदान करे।
-फ़ादर जॉन्सन मरिया, ग्वालियर धर्मप्रांत