आध्यात्मिक मन्ना

लक्ष्य से ज़्यादा रास्ते से प्यार!

फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया


francis scaria क्या कोई अपने लक्ष्य से ज़्यादा वहाँ पहुँचने के रास्ते से प्यार कर सकता है? आप के हाँ या न कहने से पहले ही मैं आपको एक घटना बताना चाहता हूँ। एक दिन मैंने देखा कि एक पिता अपने चार साल के बेटे को कन्धों पर ले कर चल रहा था। मैंने उस पिता से कहा, “यह लडका तो बडा है, यह पैदल चल सकता है, तो आप इस को अपने कन्धों पर क्यों ले जा रहे हैं?” उन्होंने मुझ से कहा, “आप सही कह रहे हैं, यह चल सकता है, चलना इस को पसन्द भी है।“ मैं ने उन्हें रोक कर पूछा, “फ़िर तो आप कन्धों पर ले चल कर इसको बिगाड़ रहे हैं।“ तो उन्होंने मुझसे कहा, “फ़ादर जी, आज मुझे कुछ काम से शीघ्र ही जाना है। इसको पैदल चलने दूँगा तो हम आज पहुँच नहीं पायेंगे। इसे रास्ते से बड़ा प्रेम है, हर जगह रुक जाता है, और देखने लगता है कि रास्ते के दोनों तरफ़ क्या-क्या हो रहा है। इस प्रकार हम कहीं भी पहुँच नहीं सकते। इसलिए इसको कन्धों पर ले चलना ही ठीक है, नहीं तो हम हमारी मंजिल पहुँच नहीं पाते हैं।“ कितनी सच्ची बात है!

प्रार्थना में भी ऐसा हो सकता है। कुछ फ़रीसी और शास्त्री प्रभु येसु के पास आकर शिकायत करते हैं, “’योहन के शिष्य बारम्बार उपवास करते हैं और प्रार्थना में लगे रहते हैं और फरीसियों के शिष्य भी ऐसा ही करते हैं, किन्तु आपके शिष्य खाते-पीते हैं’’। ईश-प्राप्ति के लिए लोग प्रार्थना करते हैं, परहेज और उपवास करते हैं। जब ईश्वर उन्हें मिल जाते हैं, अगर वे उन्हें स्वागत करने के बदले प्रार्थना, परहेज और उपवास करते जाते हैं तो उन बातों का कोई अर्थ ही नहीं निकलेगा।“ वे धार्मिक विधियों में इतना मग्न हैं कि उनके ही सामने खड़े इशपुत्र को वे पहचान भी नहीं पाते हैं। हमारी धार्मिक विधियों में हम कभी-कभी इतने मग्न रहते हैं कि हम ईश्वर को हीं भूल जाते हैं। जब बाहरी तैयारियों पर हम ज़्यादा ध्यान देते हैं और आन्तरिक तैयारी को भूल जाते हैं तब कोई भी त्योहार हमारे लिए सार्थक नहीं बन सकत है।


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Praise the Lord!