क्या कोई अपने लक्ष्य से ज़्यादा वहाँ पहुँचने के रास्ते से प्यार कर सकता है? आप के हाँ या न कहने से पहले ही मैं आपको एक घटना बताना चाहता हूँ। एक दिन मैंने देखा कि एक पिता अपने चार साल के बेटे को कन्धों पर ले कर चल रहा था। मैंने उस पिता से कहा, “यह लडका तो बडा है, यह पैदल चल सकता है, तो आप इस को अपने कन्धों पर क्यों ले जा रहे हैं?” उन्होंने मुझ से कहा, “आप सही कह रहे हैं, यह चल सकता है, चलना इस को पसन्द भी है।“ मैं ने उन्हें रोक कर पूछा, “फ़िर तो आप कन्धों पर ले चल कर इसको बिगाड़ रहे हैं।“ तो उन्होंने मुझसे कहा, “फ़ादर जी, आज मुझे कुछ काम से शीघ्र ही जाना है। इसको पैदल चलने दूँगा तो हम आज पहुँच नहीं पायेंगे। इसे रास्ते से बड़ा प्रेम है, हर जगह रुक जाता है, और देखने लगता है कि रास्ते के दोनों तरफ़ क्या-क्या हो रहा है। इस प्रकार हम कहीं भी पहुँच नहीं सकते। इसलिए इसको कन्धों पर ले चलना ही ठीक है, नहीं तो हम हमारी मंजिल पहुँच नहीं पाते हैं।“ कितनी सच्ची बात है!