क्रूस पर सारी दुनिया के लिये कुर्बान होते समय प्रभु येसु द्वारा उनकी मौत के चन्द लम्हे पहले कहे गये ये शब्द, एक ख्रीस्तीय विश्वासी के जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इन शब्दों के द्वारा प्रभु येसु, पहले अपने प्रिय शिष्य, (जिसे वह प्यार करते थे – योहन 19:26) को अपनी माता के सुपूर्द करते हैं, साथ ही अपनी माता को भी उसकी माता बनाते हुए उसके सुपुर्द करते हैं. वे जानते हैं कि ईश्वर के मुक्ति विधान में माता मरियम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, अतः ईसा को पूर्ण भरोसा है कि उनके (प्रभु येसु के) पिता के पास लौटने के बाद माता मरियम उनके शिष्यों को पूर्ण रूप से सम्भाल सकती थीं। सन्त योहन, जो न केवल आज के ख्रीस्तीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि समस्त कलीसिया की प्रत्येक सन्तान का भी। अतः ऐसा कहते हुए, प्रभु येसु ने कलीसिया की प्रत्येक सन्तान को माता मरियम को सौंपा है। यही कारण है कि माता मरियम, प्रभु येसु की मृत्यु के बाद उनके शिष्यों की प्रेरणा बनीं और उनके साथ प्रार्थना भी करती थीं। (प्रे च 1:14) अतः माता मरियम ने न केवल येसु की मृत्यु के पहले बल्कि उनकी मृत्यु एवं पुनरूत्थान के बाद भी ईश्वर के मुक्ति विधान में सक्रिय भूमिका निभाई। वह आज भी कदम कदम पर हमारे साथ हैं।
प्रत्येक ख्रीस्तीय के जीवन का मुख्य उद्देश्य है प्रभु येसु की शिक्षाओं को पूर्ण निष्ठा के साथ अपने जीवन में आत्मसात करना. येसु, ईश्वर के पुत्र होने के साथ-साथ माता मरियम के आज्ञाकारी पुत्र भी थे, अतः हमारा प्रभु येसु के अनुयायी कहलाने का अर्थ यह भी है कि हम अपने गुरु की ही तरह उनकी माँ को अपनी भी माँ बनाते हुए आज्ञाकारी संताने बने. माता मरियम, प्रभु येसु की क्रूस यात्रा से लेकर उनके दफनाये जाने तक अपने हृदय में अपार दुःख को समेट कर अपने पुत्र की हिम्मत बँधा रही थी, साथ ही उनके पुनरूत्थान के बाद उनके शिष्यों साथ रहकर सुसमाचार को घेषित भी कर रही थी, क्योंकि वही तो ईश्वर की इच्छा थी। तो क्या वही माता मरियम वर्तमान में अपने बच्चों को, जब उनका सामना, जीवन की विभिन्न कठिनाइयों से होता है, त्याग सकती हैं? इस युग में सच्चा और ईश्वर की इच्छानुसार जीवन जीना आसान नहीं है, लेकिन यदि प्रभु येसु के प्रेम के साथ-साथ, माता मरियम का मातृछाया हो तो ख्रीस्तीय जीवन ही क्या, हमें क्रूस पर मरने में भी खुशी होगी। माता मरियम उन सभी गुणों की आदर्श हैं, जो एक सच्चे ख्रीस्तीय में होने चहिये।
प्रभु येसु आज भी वही शब्द दुहराते हैं - ''भद्रे! यह आपका पुत्र है,'' और हमसे कहते हैं - ''यह तुम्हारी माता है।'' माता मरियम ने तो अपनी जिम्मेदारी उसी समय उठा ली थी और आज तक उस जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा के साथ निभाती आ रही हैं, किन्तु अब हमारी बारी है। हम चाहे जहाँ भी हों, जैसे भी हों, हमें यह कभी नहीं भूलना है कि माता मरियम हमारी माता है। प्रभु येसु तो हमारे सच्चे एवं सर्वोच्च आदर्श हैं ही, किन्तु माता मरियम भी हमारे लिये अपार प्रेरणा की श्रोत हैं। अतः हमको अपने जीवन में माता मरियम को विशेष स्थान देना है। क्या ईश्वर की ओर हमारी इस तीर्थ यात्रा में, माता मरियम से बढ़कर कोई और मार्गदर्शक हो सकता है? वह विनम्रता की प्रतिमूर्ति, पवित्रता का परम आदर्श एवं ममता की पूर्णता हैं। हम कभी भी ईश्वर की प्रिय सन्तान बन सकते हैं, बस हमें प्रभु येसु के इन शब्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है - ''यह तुम्हारी माता है।''