भारतीय कलीसिया का इतिहास बहुत विस्तृत है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत प्रभु येसु ख्रीस्त के बारह प्रेरितों में से एक संत थॉमस के द्वारा हुई। परंपरा के अनुसार संत थॉमस सन् 52 ई. में केरल के कोडुंगल्लुर नामक जगह पहुँचे और उन्होंने दक्षिण भारत के तटीय इलाकों में सुसमाचार का प्रचार-प्रसार किया। बीस साल की सेवा तथा प्रेरितिक कार्य के जीवन का अंत सन् 72 ई. में चैन्नई के पास मैलापुर नामक जगह में तब हुआ जब उनके शत्रुओं ने उन्हें भाले से मार डाला। मैलापुर में उनकी कब्र अभी भी स्थित है। संत थॉमस ’’भारत का प्रेरित’’ कहलाते हैं।
इतिहास में सन् 345 से भारत में ख्रीस्तीय समुदायों के होने का उल्लेख पाया जाता है और नवीं सदी में हमें यह देखने को मिलता है कि भारत में फ़ारस से धर्माध्यक्षों का आवागमन होता था। बारहवीं सदी में भारत के एक धर्माध्यक्ष का रोम पहुँचने का उल्लेख भी इतिहास में मिलता है। तेरहवीं सदी से पश्चिम की कलीसिया से दूतों तथा यात्रियों के भारत में आगमन का विवरण इतिहास में पाया जाता है।
फ्रांसिस्की तथा डोमेनिकी धर्मसमाजों के दस्तावेजों में तेहरवीं सदी में इन धर्मसमाजों के मिशनरियों का भारत में आगमन का उल्लेख मिलता है। इनमें जोवान्नी दी मोंते कोर्वीनो, जोर्दन कातालानी, ओदोरिको दी पोरदेनोने एवं जोवान्नी दी मरिन्जोली आदि के नाम प्रमुख हैं। ये मैलापुर एवं कोल्लम में ख्रीस्तीय समुदायों के अस्तित्व के बारे में साक्ष्य देते हैं। मोंते कोर्वीनो ने एक साल से अधिक समय मैलापुर, कोरोमण्डल एवं मलाबार के तट पर बिताया। सन् 1321 में चार फ्रांसिस्की पुरोहित मुम्बई के पास थाणे में शहीद हुये। संत पापा योहन बाईसवें ने 9 अगस्त सन् 1329 में प्रथम लातीनी धर्मप्रांत कोल्लम की स्थापना की तथा जोर्दन कातालानी को उसका प्रथम लातीनी धर्माध्यक्ष नियुक्त किया।
पुर्तगाली मिशनरियों का आगमन सौलहवीं सदी में प्रांरभ हुआ। कोचिन एवं गोवा पुर्तगालियों की धार्मिक गतिविधियों के दो प्रमुख केन्द्र थे। गोवा को लिस्बन महाधर्मप्रांत का अनुधर्मप्रांत घोषित किया गया तथा इस नये धर्मप्रांत के प्रथम धर्माध्यक्ष जोआओ अल्फोंसो दे अल्बुक्कुर्क सन् 1538 में गोवा पहुँचे। सन् 1558 में गोवा महाधर्मप्रांत घोषित किया गया तथा कोचिन एवं मलाका उसके अनुधर्मप्रांत बन गये। धीरे-धीरे फ्रांसिस्की मिशनरी उत्तर भारत में भी सुसमाचार का प्रचार-प्रसार करने लगे।
सौलहवीं सदी में येसु समाजी मिशनरियों ने भी भारत में सेवा कार्य शुरू किया। सन् 1542 में संत फ्रांसिस जेवियर गोवा पहुँचे। तत्पश्चात उन्होंने कोचिन, वसई तथा मैलापुर में भी सुसमाचार का प्रचार किया। सम्राट अकबर के आमंत्रण पर येसु समाजी मिशनरियों ने मुगल साम्राज्य में भी अपना मिशन कार्य शुरू किया।
गोवा, मैलापुर, ट्रावनकोर, मदुरई, वसई तथा मुम्बई के अलावा अब आगरा, दिल्ली, पटना, जयपुर में भी ख्रीस्तीय समुदाय अस्तित्व में आये। सन् 1637 में डक्कान (वर्तमान में मुम्बई) और 1659 में मलाबार (वर्तमान में वरापोली) उपधर्मप्रांतों की स्थापना हुई। इस समय से अन्य धर्मसमाजों ने भी भारत में अपनी गतिविधियाँ शुरू की।
सन् 1653 में दक्षिण भारत के तटीय इलाकों के कई ख्रीस्तीय विश्वासियों ने पुर्तगाली कलीसियाई अधिकारियों से अपना नाता तोड़ लिया। उनमें से कई विश्वासियों ने धीरे-धीरे अपना संबंध पुनः जोड़ लिया परंतु कुछ विश्वासियों ने मिलकर एक अलग स्वतंत्र कलीसियाई समुदाय को रूप दिया तथा बाद में उन्होंने अपना संबंध अंताखिया की एक प्राचीन कलीसिया से जोड़ लिया। इस कलीसियाई समुदाय ने कई बार रोम की कैथलिक कलीसिया से संबंध जोड़ने की कोशिश की, परंतु इस कार्य में वे बीसवीं सदी तक सफल नहीं हुये। सन् 1932 में मार इवानियुस के नेतृत्व में इनमें से कई लोगों के कलीसिया में पुर्नमिलन के साथ ही सीरो-मलंकरा कैथलिक कलीसिया अस्तित्व में आयी एवं उसके धर्माधिकारों का वरिष्ठता क्रम स्थापित हुआ तथा त्रिवेंद्रम को महाधर्मप्रांत घोषित किया गया।
लातीनी कलीसियाई धर्माधिकारों का वरिष्ठता-क्रम संत पापा लियो तेहरवें के द्वारा 1 सिंतबर सन् 1886 को स्थापित हुआ था। उस समय भारत में 19 लातीनी धर्मप्रांत थे।
सन् 1887 में सीरो-मलाबार कैथलिक विश्वासियों के लिये त्रिचुर तथा कोट्टायम प्रेरितिक उपधर्मप्रांतों (Apostolic Vicariate) की स्थापना हुई। सन् 1923 में संत पापा पीयुस ग्यारहवें ने भारत में सीरो-मलाबार धर्माधिकारों के वरिष्ठता क्रम की स्थापना करते हुये एर्नाकुलम को महाधर्मप्रांत तथा चंगनाशेरी एवं त्रिचुर को उसका अनुधर्मप्रांत घोषित किया। कोट्टायम भी धर्मप्रांत घोषित हुआ।
सन् 1944 में भारतीय धर्माध्यक्षीय संघ (Catholic Bishops' Conference of India) की स्थापना हुई। 26 जनवरी, सन् 1951 में संत पिता पीयुस बारहवें ने ईश माता मरियम को भारत देश की संरक्षिका घोषित किया। सन् 1953 में मुम्बई के महाधर्माध्यक्ष वलेरियन ग्रेशियस भारत के प्रथम कार्डिनल नियुक्त किये गये। सन् 1964 के नवम्बर महीने में संत पिता पौलुस छठवें मुम्बई में आयोजित यूखारिस्तीय सम्मेलन के अवसर पर भारत आये। सन् 1986 में संत पिता योहन पौलुस द्वितीय ने भारत का दौरा किया। सन् 1992 में संत पिता योहन पौलुस द्वितीय ने सीरो-मलाबार कलीसिया को प्रधान महाधर्माध्यक्षीय कलीसिया (Major Archiepiscopal Church) का दर्जा प्रदान किया तथा कार्डिनल अंतोनी पडियारा को उसका प्रथम प्रधान महाधर्माध्यक्ष (Major Archbishop) घोषित किया।
सन् 1999 में संत पापा योहन पौलुस द्वितीय पुनः भारत आये। इस अवसर पर उन्होंने नई दिल्ली में ’एक्लेसिया इन आसिया’ (एशिया में कलीसिया) नामक पे्ररितिक प्रबोधन का विमोचन किया। सन् 2005 में संत पापा ने मलंकरा-कैथलिक कलीसियाई समुदाय को प्रधान महाधर्माध्यक्षीय कलीसिया घोषित किया तथा सिरिल मार बसेलियोस को इसका प्रथम प्रधान महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किया।
वर्तमान में भारतीय कैथलिक कलीसिया के तीनों कलीसियाई समुदायों की यह चुनौती है कि वे एकजुट रहकर प्रभु येसु ख्रीस्त का सुसमाचार फैलायें।