कलीसियाइ इतिहास

7 - संत पापा का सार्वभौम प्रामुख्य तथा उनकी अमोघता

कलीसिया की भव्य शुरुआत नाज़रेथ के येसु तथा उनके बारह प्रेरितों से हुई। कलीसिया में धर्माध्यक्ष प्रेरितों के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। संत पापा को प्रेरितों के अगुआ पेत्रुस का उत्तराधिकारी माना जाता है एवं इसी कारण वे कलीसिया के धर्माध्यक्षों में प्रथम हैं।

धर्माध्यक्ष में ख्रीस्तीय पुरोहिताई की पूर्णता है। धर्माध्यक्षों का समुदाय जिसे धर्माध्यक्षीय धर्मपरिषद (Episcopal College) कहा जाता है प्रेरितों के उत्तराधिकारियों की जिम्मेदारियाँ निभाकर कलीसिया में मेषपोषक बनकर प्रबोधन, पूजन-विधि तथा प्रशासन के कार्य संभालता है।

संत पापा, कार्डिनल, प्राधिधर्माध्यक्ष (Patriarch), महाधर्माध्यक्ष- ये सबके सब वास्तव में धर्माध्यक्ष ही हैं और इन्हें एक ही अभिषेक प्राप्त हुआ है। लेकिन विभिन्न जिम्मेदारियों को निभाने के कारण ये अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं। ये सबके सब धर्माध्यक्षीय धर्मपरिषद के सदस्य ही हैं।

जब प्रभु येसु शिक्षा देते थे तब उनकी बातें सुनने के लिए भीड़ एकत्र होती थी। उनमें कुछ लोग उनके पीछे-पीछे चलते थे। उन में से उन्होंने बहत्तर शिष्यों को नियुक्त किया और उन्हें सुसमाचार का प्रचार-प्रसार करने हेतु नगरों और गाँवों में भेजा (देखिए लूकस 10:1-12)। अपने शिष्यों में से बारह को उन्होंने प्रेरित नियुक्त किया। उनके नाम इस प्रकार है- पहला, सिमोन, जो पेत्रुस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रेयस; ज़ेबेदी का पुत्र याकूब और उसका भाई योहन; फिलिप और बरथोलोमी; थोमस और नाकेदार मत्ती; अलफ़ाई का पुत्र याकूब और थद्देयुस; सिमोन कनानी और यूदस इसकारियोती, जिसने ईसा को पकड़वाया (देखिये मत्ती 10:2-4)। इनमें से तीन - पेत्रुस, योहन और याकूब को कुछ विशेष अवसरों पर प्रभु के साथ उपस्थित रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे प्रभु के रूपान्तरण (मत्ती 17:1), जैरुस की बेटी की चंगाई (मारकुस 5:37) और प्राणपीड़ा (मत्ती 26:37) के साक्षी थे।

प्रेरितों के इस समुदाय में संत पेत्रुस प्रथम थे। सुसमाचार में बारह प्रेरितों की सूचियों में पेत्रुस का नाम हमेशा प्रथम आता है (देखिये मत्ती 10:2-4; मारकुस 3:16-19; लूकस 6:13-16)। वे कई बार प्रेरितों के नाम पर बोलते थे तथा उनकी अगुवाई करते थे। प्रभु येसु ने उनको चट्टान कहा (मत्ती 16:18) तथा उन्हें विशेष अधिकार प्रदान किया ( मत्ती 16:17-19; योहन 21:15-17))। आदिम कलीसिया में भी पेत्रुस का स्थान अद्वितीय रहा। सभी प्रेरित विश्वास तथा कलीसियाई बातों में पेत्रुस से परामर्श करते थे। पेत्रुस रोम के प्रथम धर्माध्यक्ष थे। उनके शहीद बनने के बाद उनके उत्तराधिकारी भी कलीसियाई नेताओं में प्रथम माने जाते थे। अन्य धर्माध्यक्ष विश्वास संबंधी बातों में उनसे चर्चा करते थे तथा उनके सुझावों का आदर करते थे।

सन् 96 में पापा क्लेमेंट प्रथम ने कुरिन्थ की कलीसिया को पत्र लिखकर उनके कुछ आध्यात्मिक नेताओं को उनके पद से हटाने के संबंध में मार्गदर्शन दिया। लगभग सन् 107 में अंताखिया के इग्नासियुस ने अपनी शहादत के पूर्व रोम यात्रा के दौरान 6 कलीसियाई समुदायों को पत्र लिखे थे, जिनमें उन्होंने रोम की कलीसिया को सर्वोच्च स्थान देते हुए उसे सर्वश्रेष्ठ कलीसिया बताया। इग्नासियुस ने रोमी कलीसिया को प्रेम में सर्वोच्च भी बताया। उस समय से लेकर वर्तमान तक कैथलिक कलीसिया की यह अटूट परंपरा रही कि कलीसिया के अधिकारियों में रोम के धर्माध्यक्ष को गरिमामय तथा सर्वोच्च स्थान दिया जाता है।

संत पापा, प्रेरित पेत्रुस के उत्तराधिकारी, ’पोप’ के नाम से लोकप्रिय हैं। पूर्वी कलीसिया में ’पोप’ शब्द का इस्तेमाल किसी भी पुरोहित के लिये किया जाता था परन्तु पश्चिम की कलीसिया में प्रारंभ से ही इस शब्द का इस्तेमाल धर्माध्यक्षों तक ही सीमित रहा। चैथी सदी में यह शब्द सिर्फ संत पापा के लिये ही आरक्षित किया गया। कलीसिया में संत पेत्रुस से लेकर संत पापा बेनेडिक्ट सौहलवें तक 266 संत पापा रहे।

प्रोटेस्टेन्ट आन्दोलन के समय आन्दोलनकारियों ने कलीसिया पर संत पापा के विश्वव्यापी अधिकार का विरोध किया। इस संबंध में त्रेन्त की महासभा (सन् 1545) ने पुनः संत पापा के इस विशेष अधिकार पर ज़ोर दिया। प्रथम वतिकान महासभा (सन् 1869-70) में इस प्रामाणिक शिक्षा की घोषणा हुई कि संत पापा, पेत्रुस के उत्तराधिकारी होने के नाते, विश्वव्यापी कलीसिया के परमाध्यक्ष हैं तथा उन्हें विश्वास एवं नीति संबंधी प्रामाणिक शिक्षा देते समय अमोघता (त्रुटिहीनता, Infallibility) प्राप्त है। जब संत पापा विधिवत् घोषणा करते हैं कि विश्वास एवं नीति संबंधी कोई सिद्धांत प्रेरितिक परम्परा से प्राप्त ईश्वरीय प्रकाशन की धरोहर है और समस्त कलीसिया को उस सिद्धांत को मानना अनिवार्य है तब संत पापा अचूक हैं। साथ ही जो सत्य इस प्रकार से घोषित किया जाता है वह भी अचूक है।

कैथलिक कलीसिया का यह विश्वास तथा शिक्षा है कि जो अधिकार येसु ने अपने प्रमुख शिष्य पेत्रुस को दिया वह केवल सम्मानार्थ या निर्देशात्मक नहीं था बल्कि वास्तविक है। यह अधिकार संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी होने के कारण संत पापा को प्राप्त है। यह अधिकार वैधानिक, शैक्षणिक एवं पवित्रकारक है। संत पापा का अधिकार सारी विश्वव्यापी कलीसिया पर सर्वोच्च, सम्पूर्ण, सामान्य और प्रत्यक्ष है। द्वितीय वतिकान महासभा (सन् 1962-65) में धर्माध्यक्षीय धर्मपरिषद (College of Bishops) के अधिकार पर भी ज़ोर डाला गया।

यह कैथलिक कलीसिया की परंपरा रही है कि पोप नव-नियुक्त महाधर्माध्यक्ष को पैलियम (Pallium) प्रदान करते हैं। पोप के हाथों से पैलियम ग्रहण करने का अर्थ महाधर्माध्यक्ष की पोप एवं सार्वत्रिक कैथलिक कलीसिया के साथ एकता की स्वीकृति है। लातीनी भाषा के पैलियम शब्द से तात्पर्य वह लबादा है जो सफेद ऊन से बुना गया है एवं कंधे के ऊपर ओढ़ा जाता है। इस लबादे पर 6 छोटे-छोटे काले रंग के क्रूस के चिह्न अंकित होते हैं। यह संत पापा द्वारा महाधर्माध्यक्षो को दिया जाता है जो उनके धर्मप्रांतों में उनके अधिकारों की निशानी होती है। इस कारण से महाधर्माध्यक्ष इस अधिकार के चिह्न, पैलियम को केवल उनके अधिकार क्षेत्र के धर्मप्रांत में ही पहन सकते हैं। यह पैलियम प्रत्येक महाधर्माध्यक्ष को संत पापा व्यक्तिगत रूप से प्रदान करते हैं जो महाधर्माध्यक्ष को रोम की कलीसिया के धर्माध्यक्ष के साथ एकता में बंध जाने की निषानी होता है।


1. निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखिए:-
1. संत पापा किस प्रेरित के उत्तराधिकारी है?
2. येसु के बारह प्रेरितों के नाम लिखिए?
3. बाइबिल के अनुसार संत पेत्रुस का प्रेरितों में क्या स्थान था? विवरण दीजिये।
4. संत पापा के विश्वव्यापी कलीसिया पर अधिकार एवं उनकी अमोघता पर टिप्पणी लिखिये।
5. ’’पैलियम’’ शब्द से क्या तात्पर्य है? टिप्पणी लिखिए।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
1. प्रेरितों में...................प्रथम थे।
2. प्रेरितों में................, .................. और ...................... कुछ विशेष अवसरों पर प्रभु के साथ उपस्थित थे।
3. कलीसिया में संत पेत्रुस से लेकर संत पापा बेनेडिक्ट सौहलवें तक ...........संत पापा रहे।
4. ...............महासभा ने संत पापा के विश्वव्यापी अधिकार तथा अमोघता की प्रामणिक शिक्षा दी।

3. गृह-कार्यः वर्तमान संत पिता के बारे में कम से कम 300 शब्दों का निबंध लिखिए।






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