सत्रहवीं सदी के मध्य से आज तक के युग को इतिहासकार आधुनिक युग कहते हैं। इस युग को ’आधुनिक’ इसलिए कहा जाता है कि आधुनिक विज्ञान के आविर्भाव के कारण पाश्चात्य संस्कृति का जीवन ही बदल गया। दर्शनशास्त्र की नई युक्तिसंगत शैली और राजनैतिक प्रणाली का पुनर्गठन क्रमिक रीति से सारे विश्व को प्रभावित करते आ रहा था। पाश्चात्य समुदाय की नीव ही हिल गई। कैथलिक कलीसिया और ख्रीस्तीय धर्म की कठोर परीक्षा ली गई जो आज भी समाप्त नहीं हुई है।
सत्रहवीं और अठारहवीं सदियों को उद्बुद्ध काल (Age of Enlightenment) भी कहा जाता है। इस काल में प्रचलित नवप्रकाश आंदोलन एक ऐसी दार्शनिक विचारधारा थी जो केवल मानव बुद्धि पर निर्भर रहती थी। इसका उद्देश्य धर्म और नैतिकता को रूढ़ियों और पूर्वाग्रहों से मुक्त कराना था। इस प्रयास में निकोलास कॉपरनिकस (1473-1543) ने यह प्रस्तावित किया कि सूर्य भूमण्डल का केन्द्र है तथा पृथ्वी उसका परिक्रमण करती है। हालाँकि यह प्रस्ताव प्रचलित यूनानी खगोलशास्त्री प्टोलमी के दृष्टिकोण से भिन्न था, फिर भी गलीलियो गलिलेई (1564-1642) ने अपने निरीक्षण से यह प्रदर्शित किया कि निकोलास कॉपरनिकस का दृष्टिकोण सही है। यह एक वैज्ञानिक क्रांति का आरंभ ही था। इसी के साथ साथ एक नये दर्शनशास्त्र तथा एक नये राजनैतिक क्रम का भी उदय हुआ। यह विचारधारा कि राजा ईश्वर की ओर से राज करता है लुप्त हो गई। विश्वास को हर दृष्टिकोण का आधार मानने से इनकार किया गया। ख्रीस्तीय धर्म का दर्जा सीमित हो गया। वह व्यक्तिगत जीवन का ही अंश बनकर रह गया। धर्म-निरपेक्षवाद को बढावा मिला। इस वातावरण में कैथलिक कलीसिया को निन्दा और उपहास का सामना करना पडा। कुछ लोगों ने बाइबिल को अन्य पुस्तकों से ज्यादा महत्व देने से इनकार किया।
इस अवसर पर कलीसिया की प्रतिक्रिया में भी कुछ कमियाँ थी। सन् 1616 और 1623 में कलीसिया की धार्मिक अदालत ने कॉपरनिकस और गलीलियो के निष्कर्षों की कड़ी आलोचना की और उन्हें त्रुटिपूर्ण तथा बाइबिल की त्रुटिहीनता का आक्षेप माना। बाद में कलीसिया ने यह स्वीकार किया कि इस सम्बन्ध में कलीसिया का निर्णय सही नहीं था। आज कलीसिया यह मानती है कि बाइबिल वैज्ञानिक सच्चाइयों या इतिहास की घटनाओं का सही विवरण देने के मतलब से नहीं, बल्कि मुक्ति के इतिहास को प्रस्तुत करने के मकसद से लिखी गई है। यह सच है कि कलीसिया की धार्मिक अदालत ने गलीलियो के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया, परन्तु उस घटना के बल पर कलीसिया को विज्ञानविरोधी कहना सरासर झूठ होगा। कलीसिया का यह मानना है कि धार्मिक सच्चाइयाँ वैज्ञानिक सच्चाइयों के विरुद्ध नहीं है। वास्तव में वैज्ञानिक सच्चाइयाँ हमें धार्मिक सच्चाइयों को समझने में मददकार सिद्ध हो सकती हैं।
सन् 1789 में जो फ्रांसीसी आंदोलन शुरू हुआ, वह उद्बुद्ध काल की पराकाष्ठा थी। वित्तीय संकट के कारण साधारण जनता ने राजा लुईस चैदहवें को हटाकर अपना ही क्रांतिकारी शासन स्थापित किया। ख्रीस्तीय याजकवर्ग ने इस आंदोलन का समर्थन किया था। इसी कारण आरम्भ में क्रांतिकारी सत्ता कलीसिया के खिलाफ नहीं थी। लेकिन सन् 1790 में फ्रांस के नये शासक ने सभी धर्माध्यक्षों तथा पुरोहितों को यह आदेश दिया कि वे या तो एक शपथ द्वारा क्रांतिकारी नये शासन के प्रति अपनी बिना शर्त निष्ठा प्रकट करें या अपने पदों को त्याग दें। शासन द्वारा याजक वर्ग के इस राष्ट्रीय पुनर्गठन से कलीसिया को घोर क्षति पहुँची और संत पापा तथा धर्माध्यक्षों के अधिकारों को धक्का लगा। करीब आठ महीनों तक संत पापा चुप रहे। लगभग आधे पुरोहितगणों ने यह सोचकर शपथ ग्रहण की कि व्यावहारिक जीवन में इसका कोई असर नहीं पडेगा और आधे ने कलीसिया से नाता तोड़ लिया। सन् 1792 में करीब 40 हज़ार पुरोहित जिन्होंने शपथ लेने से इनकार किया था राष्ट्र से निष्कासित किये गये और सन् 1793 में इनमें से कई पुरोहितों की हत्या की गई। सरकार ने सभी धार्मिक विधियों की निन्दा की और सभी ख्रीस्तीय त्योहारों, यहाँ तक कि रविवारीय आचरण को भी रद्द किया। उन्होंने पेरिस के नोत्रेदाम महागिर्जे में युक्ति की एक मूर्ति (statue of reason) की स्थापना की और निरीश्वरवाद को बढ़ावा दिया।
फिर भी सच्चे ख्रीस्तीयों के गहरे विश्वास को कोई भी हिला नहीं सका। सन् 1795 में सरकार ने धार्मिक स्वतन्त्रता की घोषणा की और लोग बडी संख्या में पुनः गिर्जाघरों में जाने लगे। सन 1976 में नेपोलियन ने राजा बनने के बाद पापा के अधिकारों को सीमित करने की कोशिश की। उन्होंने पापा पीयुस छठवें को कैद किया, और कैद में ही उनकी मृत्यु हुई। नये पापा पीयुस सातवें (1800 से 1823) बहुत शक्तिशाली साबित हुए। उन्होंने राजा को कलीसिया के अधिकारों में हस्तक्षेप करने नहीं दिया। नेपोलियन ने सन् 1801 में पापा पीयुस सातवें के साथ एक धर्मसन्धि बनाई जिसके द्वारा फ्रांस में कैथलिक कलीसिया की पुनः स्थापना हुई। बाद में भी नेपोलियन ने पापा को कैदी बनाने की कोशिश की लेकिन उन्हें ज्यादा सफलता हासिल नहीं हुई। अन्त में नेपोलियन एल्बा द्वीप में निष्कासित किये गये।
फ्रांसीसी आंदोलन के फलस्वरूप पुरोहित विरोधवाद की भावना फैलने लगी। लेकिन संत पापा की प्रतिष्ठा और अधिकार बढ़ने लगा। अस्तव्यवस्ता के समय कैथलिक विश्वासी संत पापा से मार्गदर्शन तथा प्रेरणा की आशा रखने लगे। इस बीच यूरोप में उन्नीसवीं सदी में राष्ट्रीय सरकारों ने कलीसिया की भूमि तथा सम्पत्ति पर अधिकार जताया। इस प्रकार लौकिक सम्पत्तियों से हाथ धोने पड़ने के कारण कलीसिया अपने वास्तविक आध्यात्मिक रूप को पहचानने तथा उसे बढ़ावा देने लगी। राजाओं के शासन का अन्त हुआ तथा संवैधानिक शासन का गठन होने लगा। इस प्रक्रिया के प्र्रति कलीसिया की प्रतिक्रिया में कमियाँ भी थी।
सन् 1869 में संत पिता पीयुस नौंवें ने विश्वास और युक्ति के संम्बन्ध तथा संत पापा के अधिकार पर विचार-विमर्श करने के लिए वतिकान में धर्माध्यक्षों की एक महासभा बुलाई। इस महासभा ने यह सिखाया कि जब संत पापा अपने धर्मासन से, याने कलीसिया के मुख्य गडेरिये तथा संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी की भूमिका निभाते हुए सारी कलीसिया को विश्वास तथा नैतिकता से सम्बन्धित कुछ प्रामाणिक शिक्षा देते हैं, तो वह शिक्षा पवित्र आत्मा की सहायता से त्रुटिहीन और असुधार्य होती है। इस सम्बन्ध में चर्चा समाप्त करने के बाद उपस्थित धर्माध्यक्ष अपनी तथा लोकधर्मियों की भूमिका पर विचार-विमर्श करने वाले थे। परन्तु फ्रांस और प्रेशिया के बीच जो युद्ध शुरू हुआ उस के कारण महासभा की कार्यविधि को अचानक स्थागित करना पडा। संत पापा के अधिकार को जो समर्थन प्रथम वतिकान महासभा में मिला, उसी का पूरा उपयोग करते हुए, पापा पीयुस नौंवें ने संस्कारों को ग्रहण करने की ज़रूरत, माता मरियम और पवित्र हृदय की भक्ति और प्रभु येसु ख्रीस्त की केन्द्रता पर जोर दिया। पापा लियो तेरहवें (1878-1903) ने आधुनिक युग में कैथलिक कलीसिया का प्रभाव बढ़ाया। उन्होंने प्रजातन्त्र तथा संवैधानिक सरकारों का समर्थन किया। उन्होंने बाइबिल के आलोचनात्मक तथा वैज्ञानिक अध्ययन में सहायता प्रदान की। उन्होंने श्रमिकों के कल्याण तथा न्यायसंगत वेतन पर भी जोर दिया। इस प्रकार कलीसिया आधुनिक युग में अच्छी और सकारात्मक अनुक्रिया अपनाने लगी।
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
1. कॉपरनिकस एवं गलीलियो की खोज पर कलीसिया की कैसी प्रतिक्रिया थी?
2. आज कलीसिया बाइबिल की सच्चाईयों को किस परिपेक्ष से देखती है?
3. फ्रांसीसी क्रांति क्यों हुई एवं उसका कलीसिया पर क्या प्रभाव पड़ा?
4. प्रथम वतिकान महासभा संत पापा के अधिकार के बारे में क्या शिक्षा देती है?
5. प्रथम वतिकान महासभा को अचानक क्यों स्थगित करना पडा?
2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
1. सत्रहवीं और अठारहवीं सदियों को ................................. भी कहा जाता है।
2. धार्मिक सच्चाईयाँ.......................के विरूद्ध नहीं है।
3. फ्रांसीसी आंदोलन ने...........................को बढ़ावा दिया।
4. नेपोलियन ने ...........................को कैद कर लिया।
5. पापा .................................ने श्रमिकों के कल्याण एवं न्यायसंगत वेतन पर ज़ोर दिया
3. किसका किससे संबंध।
1. नेपोलियन - वेतिकान महासभा
2. पीयुस नौवें - प्रजातंत्र संवैधानिक सरकारों का समर्थन।
3. लियो तेहरवें - एल्बा
4. लुईस चैहदवें - सूर्य भूमण्डल का केन्द्र
5. गलीलियो - फ्रांसीसी आंदोलन
3. सही या गलत बताइए।
1. बाइबिल मुक्ति के इतिहास को प्रस्तुत करने के मकसद से लिखा गया है।
2. वैज्ञानिक सच्चाइयाँ हमें धार्मिक सच्चाइयों को समझने में मदद करती हैं।
3. बाइबिल वैज्ञानिक सच्चाइयों या इतिहास की घटनाओं का सही विवरण देता है।
4. पापा लियो तेरहवें ने बाइबिल के आलोचनात्मक तथा वैज्ञानिक अध्ययन में सहायता प्रदान की।