18) बच्चो! यह अन्तिम समय है। तुम लोगों ने सुना होगा कि एक मसीह-विरोधी का आना अनिवार्य है। अब तक अनेक मसीह-विरोधी प्रकट हुए हैं। इस से हम जानते हैं कि अन्तिम समय आ गया है।
19) वे मसीह-विरोधी हमारा साथ छोड़कर चले गये, किन्तु वे हमारे अपने नहीं थे। यदि वे हमारे अपने होते, तो वे हमारे ही साथ रहते। वे चले गये, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि उन में कोई भी हमारा अपना नहीं था।
20) तुम लोगों को तो मसीह की ओर से पवित्र आत्मा मिला है और तुम सभी लोग सत्य जानते हो।
21) मैं तुम लोगों को इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि तुम सत्य नहीं जानते, बल्कि इसलिए कि तुम सत्य जानते हो और यह भी जानते हो कि हर झूठ सत्य का विरोधी है।
1) आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।
2) वह आदि में ईश्वर के साथ था।
3) उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ। और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ।
4) उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।
5) वह ज्योति अन्धकार में चमकती रहती है- अन्धकार ने उसे नहीं बुझाया।
6) ईश्वर को भेजा हुआ योहन नामक मनुष्य प्रकट हुआ।
7) वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें।
8) वह स्वयं ज्यांति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था।
9) शब्द वह सच्च ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था।
10) वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ; किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना।
11) वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया।
12) जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया।
13) वे न तो रक्त से, न शरीर की वासना से, और न मनुष्य की इच्छा से, बल्कि ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
14) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा-जैसी है- अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण।
15) योहन ने पुकार-पुकार कर उनके विषय में यह साक्ष्य दिया, ‘‘यह वहीं हैं, जिनके विषय में मैंने कहा- जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से बढ़ कर हैं; क्योंकि वह मुझ से पहले विद्यमान थे।’’
16) उनकी परिपूर्णता से हम सब को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है।
17) संहिता तो मूसा द्वारा दी गयी है, किन्तु अनुग्रह और सत्य ईसा मसीह द्वारा मिला है।
18) किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले एकलौते, ईश्वर, ने उसे प्रकट किया है।
आज वर्ष का अंतिम दिन है। यह एक और साल का अंत है और एक नए साल की शुरुआत है। ईश्वर ही समय एवं सारी दुनिया का मालिक है। यह समय ईश्वर के संरक्षण में सुरक्षित बिताए गए पलों के लिए धन्यवाद का समय है। अब हमारे समक्ष एक और पूरा नया साल है जिसे हमें सोच-समझकर बिताना है। हम इस बीते हुए साल की गलतियों और असफलताओं से सबख सीखते हुए एक नई और आशाजनक शुरुआत करें।
आज के सुसमाचार में सन्त योहन हमें याद दिलाते हैं कि हमारा जीवन तभी सार्थक हो सकता है जब ईश्वर हमारे जीवन के हर क्षण में हमारे साथ रहते हैं। ईश्वर आदि काल से है और अनन्त काल तक है। हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य उसी अनन्त ईश्वर के साथ अनन्त जीवन में प्रवेश करना है। जो अपने जीवन मे देहधारी प्रभु को स्वीकार करते हैं उनका जीवन सार्थक हो जाएगा और जो प्रभु को अस्वीकार करते हैं वे अंधकार में जीते हैं, और अपना जीवन गँवा देंगे। प्रभु येसु ही आदि और अंत हैं, अल्फा और ओमेगा हैं, सारी दुनिया का आरंभ और अंत हैं। वही हमारे जीवन के त्राणकर्ता हैं।
✍ -फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today is the last day of the year. It is the end of one more year and going to be the beginning of another year. God is the creator of time and space. He is the one who controls all the moments of our life. It is time to be grateful for the time that has been spent under the care and protection of God. Now we have another year ahead of us to spend wisely. Let us learn from our mistakes and failures from the last year and look forward with the hope of bright future ahead.
Saint John in the gospel today reminds us that our time and life can have meaning only when we have God in our life. God is from the beginning and will be there eternally. Our aim of whole life should be to spend our time to achieve that eternal life with God. Those who accept Jesus in their life, their life will be complete and those who choose to live in darkness, they will lose their life. Jesus is the alpha and omega of the world, time and space and the life of each and every one of us.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
जबकि संत मत्ती और संत लूकस हमें प्रभु येसु के जन्म और शैशवावस्था के बारे में बताते हैं, संत मारकुस येसु के बचपन के बारे में कुछ नहीं कहता है। संत योहन शब्द के देहधारण के रहस्य को प्रस्तुत करने के लिए ईशशास्त्रीय तरीका अपनाते हैं। कलीसिया सिखाती है कि ईश्वर का पुत्र अनादि से उत्पन्न हुआ है, ईश्वर से उत्पन्न ईश्वर, प्रकाश से उत्पन्न प्रकाश, पिता के साथ एक तत्व है। येसु एक सृष्ट-प्राणी नहीं है, लेकिन पिता ईश्वर से अनादि से उत्पन्न है। स्तोत्र 2: 7 जो कहता है, “तुम मेरे पुत्र हो, आज मैंने तुम को उत्पन्न किया है" नए नियम में मसीह का उल्लेख करने के लिए उद्धृत किया गया है (प्रेरित-चरित 13:33; इब्रानियों 1: 5; 5: 5)। संत योहन अपनी प्रस्तावना में इस प्रकार उत्पन्न ईश्वर के पुत्र के बारे में हमें बताते हैं। संत योहन ने प्रभु येसु को "ईश्वर के एकलौते पुत्र” के रूप में प्रस्तुत किया है (योहन 1:14, 18; 3:16, 18; 1 योहन 4: 9)। संत योहन अपने सुसमाचार के अध्याय 1 वाक्य 14 में प्रभु येसु मसीह के मानव जन्म का उल्लेख करने के लिए कहते हैं, “शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया”। इस प्रकार संत योहन हमें एक समृद्ध ईशशास्त्र प्रदान करता है और प्रभु येसु की ईश्वरीयता को देखने के लिए आमंत्रित करता है। प्रभु येसु वास्तव में ईश्वर का पुत्र है जिसके द्वारा सब कुछ बनाया गया था। वह ईश्वर का शाश्वत शब्द है। आइए हम प्रभु से प्रार्थना करें कि हम नाज़रेत के येसु के बारे में अधिक से अधिक सच्चाई देख सकें।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
While evangelists Matthew and Luke give us accounts of the birth and infancy of Jesus, Mark does not speak about the childhood of Jesus at all. St. John has a theological way of presenting the mystery of Incarnation. The Church teaches that the Son of God was eternally begotten by the Father, God from God, Light from Light, being of one substance with the Father. Jesus is not a creature, but one eternally begotten by the Father. Ps 2:7 which says, “You are my Son; today I have begotten you” is quoted to refer to Christ in the New Testament (Act 13:33; Heb 1:5; 5:5). St. John refers to this eternal begetting of the Son of God in the Prologue. St. John also refers to Jesus as “the only begotten” Son of God (Jn 1:14, 18; 3:16, 18; 1 Jn 4:9). In Jn 1:14 we find the expression “the Word became flesh and dwelt among us” to refer to the human birth of Jesus Christ. Thus St. John offers us a rich theology and invites us to see the divinity of Jesus. Jesus is really the Son of God through whom everything was created. He is the Eternal Word of God. Let us pray to the Lord so that we may see the greater truths about Jesus of Nazareth.
✍ -Fr. Francis Scaria
आज सुसमाचार लेखक संत योहन हमें ईश्वर के पुत्र के अवतार के रहस्य में गहराई से उतरने के लिए आमंत्रित करते हैं। येसु के जन्म को बेतलेहेम के गोशाले में पेश करने के बजाय, वे उनके पूर्व-अस्तित्व और शाश्वत जन्म के बारे में हमें बताते है। वे उन्हें 'लोगोस' - शब्द के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह शाश्वत शब्द येसु मसीह में मांस बन जाता है। उन्हें एक प्राणी के रूप में प्रस्तुत करने से हट कर, वे उन्हें उस सृष्टिकर्ता के रूप में प्रस्तुत करते हैं जिनमें सब कुछ बनाया गया था। येसु को प्रकाश के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है जो अंधेरे को दूर करता है। सुसमाचार के लेखक प्रकाश और अंधेरे के बीच निरंतर लड़ाई को भी हमारे सामने रखते हैं और दावा करते हैं कि अंतिम जीत प्रकाश की ही होती है। आज हमें बालक येसु की चरनी के आगे घुटने टेकने और ईश्वर के रहस्य पर ध्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता है जो स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर हम में से हर एक के साथ रहे। येसु को स्वीकार करने वाले सभी लोगों को परमेश्वर की संतान बनने की शक्ति प्रदान की जाती है।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Today St. John the evangelist invites us to delve deep into the mystery of the Incarnation of the Son of God. Instead of presenting the birth of Jesus in the manger of Bethlehem, he speaks about his pre-existence and eternal birth. He presents him as ‘logos’ – the Word. This eternal Word becomes flesh in Jesus Christ. Far from presenting him as a creature, he presents him as the creator in whom everything was created. Jesus is also presented as the light that dispels the darkness. The evangelist also acknowledges the constant battle between the light and the darkness but asserts that the ultimate victory is of the light. Today we are invited to kneel before the crib and meditate upon the mystery of God who has come down from heaven to the earth to be with each one of us. All those who accept Jesus are given the power to become the children of God.
✍ -Fr. Francis Scaria