5) हमने जो सन्देश उन से सुना और तुम को भी सुनाते हैं, वह यह है- ईश्वर ज्योति है और उस में कोई अन्धकार नहीं!
6) यदि हम कहते हैं कि हम उसके जीवन के सहभागी हैं, किन्तु अन्धकार में चल रहे हैं, तो हम झूठ बोलते हैं और सत्य के अनुसार आचरण नहीं करते।
7) परन्तु यदि हम ज्योति में चलते हैं- जिस तरह वह स्वयं ज्योति में हैं- तो हम एक दूसरे के जीवन के सहभागी हैं और उसके पुत्र ईसा का रक्त हमें हर पाप से शुद्ध करता है।
8) यदि हम कहते हैं कि हम निष्पाप हैं, तो हम अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं है।
9) यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं, तो वह हमारे पाप क्षमा करेगा और हमें हर अधर्म से शुद्ध करेगा; क्योंकि वह विश्वसनीय तथा सत्यप्रतिज्ञ है।
10) यदि हम कहते हैं कि हमने पाप नहीं किया है, तो हम उसे झूठा सिद्ध करते हैं और उसका सत्य हम में नहीं है।
1) बच्चो! मैं तुम लोगों को यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो। किन्तु यदि कोई पाप करता, तो पिता के पास हमारे एक सहायक विद्यमान हैं, अर्थात् धर्मात्मा ईसा मसीह।
2) उन्होंने हमारे पापों के लिए प्रायश्चित किया है और न केवल हमारे पापों के लिए, बल्कि समस्त संसार के पापों के लिए भी।
(13) उनके जाने के बाद प्रभु का दूत युसुफ़ को स्वप्न में दिखाई दिया और यह बोला ’’उठिए! बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र देश भाग जाइए। जब तक में आप से न कहूँ वहीं रहिए क्योंकि हेरोद मरवा डालने के लिए बालक को ढूँढ़ने वाला है।
(14) यूसुफ उठा और उसी रात बालक और उसकी माता को ले कर मिस्र देश चल दिया।
(15) वह हेरोद की मृत्यु तक वहीं रहा जिससे नबी के मुख से प्रभु ने जो कहा था, वह पूरा हो जाये - मैंने मिस्र देश से अपने पुत्र को बुलाया।
(16) हेरोद को यह देख कर बहुत क्रोध आया कि ज्योतिषियों ने मुझे धोखा दिया है। उसने प्यादों को भेजा और ज्योतिषियों से ज्ञात समय के अनुसार बेथलेहेम और आसपास के उन सभी बालकों को मरवा डाला, जो दो बरस के या और भी छोटे थे।
(17) तब नबी येरेमियस का यह कथन पूरा हुआ-
(18) रामा में रूदन और दारुण विलाप सुनाई दिया, राखेल अपने बच्चों के लिए रो रही है, और अपने आँसू किसी को पोंछने नहीं देती क्योंकि वे अब नहीं रहे।
“जीवन का रहस्य“ हमारे जीवन काल में जारी रहता है। जैसे येसु के समय में विलाप, दुःख था, वैसे ही हमारे दिन में भी विलाप, दुःख है। अफसोस की बात है कि हमारी दुनिया में कई जगहें ऐसी हैं जहां लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। यदि हमें कभी भी अपनी दुनिया में सच्ची शांति मिलती, तो हम शायद इस ग्रह को अपने घर के रूप में नहीं पहचानते। हम सोच सकते हैं कि हम स्वर्ग में चले गए हैं। आप और मैं अपनी दुनिया को अधिक प्रेमपूर्ण और अधिक शांतिपूर्ण बनाने के लिए क्या कर सकते हैं? आइए हम आज अपनी दैनिक दिनचर्या में जिन लोगों और परिस्थितियों का सामना करते हैं, उनके प्रति प्रेमपूर्वक व्यवहार करने और प्रतिक्रिया देने का प्रयास करें। हम दुनिया को बदलने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, लेकिन हम अपने “दुनिया के छोटे से कोने“ को अधिक प्रेमपूर्ण और आनंदमय जगह बनाने का प्रयास कर सकते हैं। कौन जानता है? एक व्यक्ति के कार्य आपके “दुनिया के छोटे से कोने“ को एक अधिक प्रेमपूर्ण और आनंदमय जगह बना सकते हैं। उज्जवल और अधिक प्यारी जगह।
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)The “mystery of life” continues on in our life time. Just as there was wailing, sorrow, and lamenting in Jesus’ day, there also is wailing, sorrow, and lamenting in our day. Sadly, there are many places in our world where people are suffering significantly. If we were ever to have true peace in our world, we might not recognize this planet as our home. We might think that we have gone to heaven. What can you and I do to make our world more loving and more peace-filled? Let us strive to act and respond lovingly to the people and the situations that we encounter as we go about our daily routine today. We may not be able to change the world, but we can strive to make our "little corner of the world” a more loving and joyful place. Who knows? The actions of one person may make your “little corner of the world” a brighter and more loving place.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
आज की पूजन विधि एक ऐसे बदलाव का दृश्य प्रस्तुत करती है जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती है। घंटियों की झन-झन की आवाज रुदन में बदल गई है, सफेद ओस की बूंदे खून की लाल बूंदों में बदल गईं हैं। अचानक उत्सव की खुशी मातम में बदल गई है। आज के दिन अनेकों मासूमों को बेरहमी से तलवार के घाट उतार दिया गया था। हमारे मन में सवाल उठ सकता है कि ईश्वर ने ऐसा क्यूँ होने दिया? लेकिन यही जीवन का कड़वा सच है। एक पल के लिए हमारे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ हैं, वहीं दूसरे पल के लिए मातम और गम है। खुशियाँ और गम दोनों ही ज़िंदगी के पहलू हैं।
ये अबोध शहीद ईश्वर के मेमने की राह पर चलने वाले पहले साक्षी हैं, उसी मेमने के साक्षी जो अपने बलिदान के रक्त द्वारा हमारे पापों को धो डालता है। हमारे पाप केवल उसी निर्दोष मेमने के रक्त से धोए जा सकते हैं। प्रभु येसु ने कोई पाप नहीं किया था, वह अपने पाप के कारण नहीं बल्कि संसार के पाप के कारण निर्दोष मेमने की भाँति बलि चढ़ाए गए। ये अबोध बच्चे ईश्वर के मेमने के द्वारा इस संसार की मुक्ति मे सहभागी होने का गौरव प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति थे। वे ईश्वर की योजना के प्रारम्भिक सहभागी थे। ईश्वर की योजनाएं रहस्यमयी हैं।
✍ -फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
We see a very dramatic change in the atmosphere today. The jingling of the bell is turned into a wailing sound, the white snowflakes have turned into red blood drops. Suddenly the joy and celebration is turned into mourning and weeping. We may ask why it has to happen this way? But this is the reality of life. There are moments of joy, there are also moments of sorrow. The life has both the aspects of human reality.
The holy innocents are first followers on the path of the lamb who washed the sins of the world through his blood. Our sins can be washed and cleansed only through the blood of the lamb. Jesus was without any sin, so it was for others’ sin that he was to be sacrificed. The holy innocents were privileged to partake in the saving work of God through the sacrificial lamb. They were first ones to bear witness to God's plan of salvation through the sacrificial lamb. God’s ways are mysterious.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
ईश्वर ने प्रभु येसु के जन्म और जीवन के लिए कोई कृत्रिम परिपूर्ण वातावरण नहीं बनाया। उन्हें मानव जीवन की कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ा। हिंसा के बीच खुद को जिंदा रखने के लिए उनके परिवार को मिस्रदेश भागना पड़ा। उन्हें एक अपरिचित पड़ोस में मिस्र में रहना पड़ा। इब्रानियों का पत्र कहता है, "हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है" (इब्रानियों 4:15) )। येसु को उन लोगों की हिंसा का सामना पडा जिन्होंने उनके बचपन से ही उनका खून माँगा था। उन्हें विदेशी भूमि में रहने की सभी असुविधा और खतरे का सामना करना पड़ा। कई मासूम बच्चे को समाज में शासकों तथा अन्य शक्तिशाली लोगों के अन्याय के शिकार बनना पडा। हमें जीवन में एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, भले ही परिस्थितियां अनुकूल न हों, जिन लोगों के साथ हम रहते हैं और काम करते हैं वे दयालु नहीं हों और सबसे अच्छे इरादों के बावजूद भी हमारे प्रयास नकारात्मक परिणाम लाते हों। हमें सभी कष्टों और विरोधों के बीच आनंदित और शांतिपूर्ण होने की आवश्यकता है।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
God did not create perfect artificial surroundings for the birth and life of Jesus. Jesus had to face the harsh realities of human life. His family had to flee to Egypt to keep themselves alive in the midst of violence. They had to live in Egypt in an unfamiliar neighbourhood. The Letter to the Hebrews tells us, “For we do not have a high priest who is unable to sympathize with our weaknesses, but we have one who in every respect has been tested as we are, yet without sin” (Heb 4:15). Jesus confronted the violence of those who sought his blood from his childhood. He had to face all the inconvenience and threat of staying in a foreign land. Many innocent children were victims of the injustice perpetuated by those wielding power in the society. We need to cultivate a positive attitude to life even when circumstances are not ideal, the people with whom we live and work are not kind and our efforts seem to bring negative results even with the best of intentions. We need to seek to be joyful and peaceful in the midst of all tribulations and oppositions.
✍ -Fr. Francis Scaria