दिसंबर 26, 2024, गुरुवार

ख्रीस्त जयन्ती सप्ताह
सन्त स्तेफनुस - शहीद

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📒 पहला पाठ: प्रेरित-चरित 6:8-10; 7:54-60

8) स्तेफनुस अनुग्रह तथा सामर्थ्य से परिपूर्ण हो कर जनता के सामने बहुत-से चमत्मकार तथा चिन्ह दिखाता था।

9) उस समय ‘‘दास्यमुक्त’’ नामक सभागृह के कुछ सदस्य और कुरेने, सिकन्दरिया, किलिकया तथा एशिया के कुछ लोग स्तेफनुस से विवाद करने आये।

10) किन्तु वे स्तेफ़नुस के ज्ञान का सामना करने में असमर्थ थे, क्योंकि वह आत्मा से प्रेरित हो कर बोलता था।

54) वे स्तेफ़नुस की बातें सुन कर आगबबूला हो गये और दाँत पीसते रहे।

55) स्तेफ़नुस ने, पवित्र आत्मा से पूर्ण हो कर, स्वर्ग की ओर दृष्टि की और ईश्वर की महिमा को तथा ईश्वर के दाहिने विराजमान ईसा को देखा।

56) वह बोल उठा, ’’मैं स्वर्ग को खुला और ईश्वर के दाहिने विराजमान मानव पुत्र को देख रहा हूँ’’।

57) इस पर उन्होंने ऊँचे स्वर से चिल्ला कर अपने कान बन्द कर लिये। वे सब मिल कर उस पर टूट पड़े

58) और उसे शहर के बाहर निकाल कर उस पर पत्थर मारते रहे। गवाहों ने अपने कपड़े साऊल नामक नवयुवक के पैरों पर रख दिये।

59) जब लोग स्तेफ़नुस पर पत्थर मार रहे थे, तो उसने यह प्रार्थना की, ’’प्रभु ईसा! मेरी आत्मा को ग्रहण कर!’’

60) तब वह घुटने टेक कर ऊँचे स्वर से बोला, ’’प्रभु! यह पाप इन पर मत लगा!’’ और यह कह कर उसने प्राण त्याग दिये।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 10:17-22

17) ’’मनुष्यों से सावधान रहो। वे तुम्हें अदालतों के हवाले करदेंगे और अपने सभागृहों में तुम्हें कोडे़ लगायेंगे।

18) तुम मेरे कारण शासकों और राजाओं के सामने पेश किये जाओगे, जिससे मेरे विषय में तुम उन्हें और गै़र-यहूदियों को साक्ष्य दे सको।

19) ’’जब वे तुम्हें अदालत के हवाले कर रहे हों, तो यह चिन्ता नहीं करोगे कि हम कैसे बोलेंगे और क्या कहेंगे। समय आने पर तुम्हें बोलने को शब्द दिये जायेंगे,

20) क्योंकि बोलने वाले तुम नहीं हो, बल्कि पिता का आत्मा है, जो तुम्हारे द्वारा बोलता है।

21) भाई अपने भाई को मृत्यु के हवाले कर देगा और पिता अपने पुत्र को। संतान अपने माता पिता के विरुद्ध उठ खड़ी होगी और उन्हें मरवा डालेगी।

22) मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, किन्तु जो अन्त तक धीर बना रहेगा, उसे मुक्ति मिलेगी।

📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार मौलिक रूप से भिन्न है जो हमने कल सुना था। यह सुसमाचार येसु द्वारा अपने शिष्यों से यह कहते हुए आरंभ होता हैः सावधान रहो। क्रिसमस के दिन हमने जो पाठ सुना, उससे कितना विरोधाभास है। आज येसु अपने शिष्यों को चेतावनी दे रहे हैं कि यदि वे उनका अनुसरण करना जारी रखेंगे, तो उन्हें राज्यपालों और राजाओं को सौंप दिया जाएगा। उनसे भी नफरत की जाएगी. हालाँकि, यदि वे अंत तक येसु के प्रति वफादार रहे, तो वे बच जायेंगे! येसु के अनुसरण का मार्ग उपहार और क्रूस दोनों है। जब हम येसु के साथ चलते हैं तो हमें प्रचुर उपहार और आशीर्वाद मिलते हैं। हालाँकि, ऐसी चुनौतियाँ या कठिनाइयाँ भी होंगी जिनका हम सामना करेंगे--सिर्फ इसलिए क्योंकि हम येसु का अनुसरण करते हैं। मैं क्या जोखिम उठाने को तैयार हूं? आप येसु के लिए क्या सहने को तैयार हैं? येसु हमें वह अनुग्रह और शक्ति देंगे जिसकी हमें आवश्यकता है! सवाल यह हैः क्या मैं उनका अनुसरण करूंगा?

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


The Gospel for this feast of St. Stephen radically differs from the Gospel we heard yesterday. This Gospel opens with Jesus telling his disciples: Beware. What a contrast to the readings we heard on Christmas Day. Today Jesus is warning His disciples that if they continue to follow Him, they will be handed over to governors and kings. They also will be hated. However, if they remain faithful to Jesus to the end, they will be saved! The path of following Jesus is both gift and cross. There are abundant gifts and blessings we receive when we walk with Jesus. However, there also will be challenges or difficulties that we will encounter---simply because we do follow Jesus. What am I willing to risk? What are you willing to endure for Jesus’ sake? Jesus will give us the grace and strength we need! The question is: will I follow Him?

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज हम सन्त स्तेफ़ानुस की शहादत का पर्व मनाते हैं। वह कलिसिया के प्रथम शहीद सन्त माने जाते हैं। वही प्रथम शिष्य हैं जिन्होंने सर्वप्रथम अपना रक्त बहाकर अपने प्रभु का साक्ष्य दिया। वास्तव में प्रभु येसु द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलना बहुत मुश्किल है। प्रभु येसु के शब्द अनन्त जीवन के स्रोत हैं लेकिन इस दुनिया के पैमाने से देखने पर वे शब्द अपने जीवन में उतारने के लिए बहुत कठिन लगते हैं। यह संसार ईश विरोधी और बुराई के समर्थकों से भरा पड़ा हैं। ऐसे अनेक लोग हैं जो प्रभु वचनों को साकार नहीं होने देना चाहते।

स्तेफ़ानुस को इसलिए पत्थरों से मार डाला गया क्योंकि उसके विरोधी धार्मिक ज्ञान के बारे में उस से जीत नहीं पा रहे थे। उनको पता भी नहीं था कि सन्त स्तेफ़ानुस के मुख से निकलने वाले शब्द स्वयं प्रज्ञा के स्रोत प्रभु येसु की प्रेरणा से थे। प्रभु येसु ईश्वर की वह प्रज्ञा है जिसके द्वारा ईश्वर ने इस संसार की सृष्टि की। और आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमसे वादा करते हैं कि जब हमारे विरोधी हमें कठघरे में खड़ा कर दें तो हमें इस बात की चिंता नहीं करनी है कि हम क्या बोलें, क्योंकि प्रभु येसु उसी समय हमें बोलने के लिए प्रज्ञा प्रदान करेंगे। जिस व्यक्ति की प्रेरणा और शक्ति का स्रोत स्वयं ईश्वर है, उस व्यक्ति से कौन जीत सकता है? प्रभु येसु की खातिर बहाया वह रक्त बहुत बहुमूल्य एवं शक्तिशाली है। वह कलिसिया के विकास एवं प्रज्ञा के फलीभूत होने के लिए खाद और उपजाऊ मिट्टी बन जाता है।

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today we celebrate the martyrdom of St. Stephen. He is also known as the protomartyr. He is the first disciple who gave witness to the Lord with his own blood. It is indeed very difficult to follow and walk on the path shown by Jesus. The words of Jesus, even though they have eternal life, but according to the standard of this world they are extremely difficult to translate into reality. The world is full of oppositions and opponents. There are people all around who do not want these words to materialize.

Stephen was killed because his opponents could not win over him in the arguments about the religious matters. They hardly knew that the source of his words was the wisdom incarnate. Jesus is the wisdom of God through which God created the world. And in the gospel today Jesus promises that when we are to face our opponents, we need not to worry about what to say, because he himself will give the words. Who can win over the person whose strength is in the Lord. The blood shed for the sake of Jesus is very precious and fruitful. It becomes the soil and manure for the growth of the Church and materializing the words of wisdom.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 3

क्रिसमस का संदेश खुशी और शांति का संदेश है। बालक येसु के जन्म के बारे में चरवाहों को बताते हुए स्वर्गदूत कहता है, “मैं आप को सभी लोगों के लिए बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ” (लूकस 2:10)। फिर भी आज के पाठ उनके शिष्यों को अत्याचार सहने के लिए हमेशा तैयार रहने को कहते हैं। क्या इसका मतलब यह है कि क्रिसमस का आनंद कुछ ही समय के लिए सीमित है? बिलकूल नही। मसीह के शिष्यों को सताए जाने के बीच भी ईश्वरीय सांत्वना का आनंद मिलता है। उत्पीड़न का समय साक्ष्य देने का समय है। वह एक ऐसा समय है जब प्रभु ईश्वर हमारे माध्यम से बोलेंगे। वह एक ऐसा समय है जब ईश्वर के स्वर्गदूत हमें दिलासा देते हैं। गेथसेमनी की बारी में, प्रभु येसु ने कष्टदायी पीड़ा का अनुभव किया। सुसमाचार लेखक हमसे कहता है, “तब उन्हें स्वर्ग का एक दूत दिखाई पड़ा, जिसने उन को ढारस बँधाया" (लूकस 22:43)। उत्पीड़न के बीच, संत पौलुस और बरनबास ने विश्वासियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा, "हमें बहुत से कष्ट सह कर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है"। (प्रेरित-चरित 14:22) इस प्रकार यह स्पष्ट है कि हमारे कष्टों और उत्पीड़न में ईश्वर हमें आराम और सहायता देते हैं ताकि इन कष्टों के माध्यम से हम ईश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

The message of Christmas is that of joy and peace. The angel spoke to the shepherds about “good news of great joy” (Lk 2:10) when he spoke about the birth of Jesus. Yet today’s reading speaks about the persecutions the disciples of Jesus should be prepared for. Does this mean that the Christmas joy does not last? Of course not! Even in the midst of persecutions the disciples of Christ enjoy divine consolation. The time of persecution is a time of witnessing. It is a time when God speaks through us. It is a time God’s angels comfort us. In the Garden of Gethsemane, Jesus experienced the excruciating agony. We are told by the evangelist that “an angel from heaven appeared to him and gave him strength” (Lk 22:43). In the midst of all persecutions, St. Paul and Barnabas encouraged the believers saying, “It is through many persecutions that we must enter the kingdom of God” (Act 14:22). Thus it is clear that God comforts and assists us in our sufferings and persecutions so that through these tribulations we can enter the Kingdom of God.

-Fr. Francis Scaria