1) जब दाऊद अपने महल में रहने लगा और प्रभु ने उसे उसके चारों ओर के सब शत्रुओं से छुड़ा दिया,
2) तो राजा ने नबीनातान से कहा, ‘‘देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, किन्तु ईश्वर की मंजूषा तम्बू में रखी रहती है।’’
3) नातान ने राजा को यह उत्तर दिया, ‘‘आप जो करना चाहते हैं, कीजिए। प्रभु आपका साथ देगा।’’
4) उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
5) ‘‘मेरे सेवक दाऊद के पास जाकर कहो - प्रभु यह कहता है: क्या तुम मेरे लिए मन्दिर बनवाना चाहते हो?
8) तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इस्राएल का शासक बनाया।
9) मैंने तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हारा साथ दिया और तुम्हारे सामने तुम्हारे सब शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया है। मैं तुम्हें संसार के सब से महान् पुरुषों-जैसी ख्याति प्रदान करूँगा।
10) मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिए भूमि का प्रबन्ध करूँगा और उसे बसाऊँगा। वह वहाँ सुरक्षित रहेगी। कुकर्मी उस पर अत्याचार नहीं कर पायेंगे। ऐसा पहले हुआ करता था,
11) जब मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का शासन करने के लिए न्यायकर्ताओं को नियुक्त किया था। मैं उसे उसके सब शत्रुओं से छुड़ाऊँगा। प्रभु तुम्हारा वंश सुरक्षित रखेगा।
12) जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।
14) मैं उसका पिता होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा।
15) किन्तु मैं उस पर से अपनी कृपा नहीं हटाऊँगा, जैसा कि मैंने साऊल के साथ किया, जिसे मैंने तुम्हारे लिए ठुकराया।
16) इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।’’
67) उसका पिता पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया और उसने यह कहते हुए भविष्यवाणी कीः
68) धन्य है प्रभु, इस्राएल का ईश्वर! उसने अपनी प्रजा की सुध ली है और उसका उद्धार किया है।
69) उसने अपने दास दाऊद के वंश में हमारे लिए एक शक्तिशाली मुक्तिदाता उत्पन्न किया है।
70) वह अपने पवित्र नबियों के मुख से प्राचीन काल से यह कहता आया है
71) कि वह शत्रुओं और सब बैरियों के हाथ से हमें छुड़ायेगा
72) और अपने पवित्र विधान को स्मरण कर हमारे पूर्वजों पर दया करेगा।
73) उसने शपथ खा कर हमारे पिता इब्राहीम से कहा था
74) कि वह हम को शत्रुओं के हाथ से मुक्त करेगा,
75) जिससे हम निर्भयता, पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर उसके सम्मुख उसकी सेवा कर सकें।
76) बालक! तू सर्वोच्च ईश्वर का नबी कहलायेगा, क्योंकि प्रभु का मार्ग तैयार करने
77) और उसकी प्रजा को उस मुक्ति का ज्ञान कराने के लिए, जो पापों की क्षमा द्वारा उसे मिलने वाली है, तू प्रभु का अग्रदूत बनेगा।
78) हमारे ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया से हमें स्वर्ग से प्रकाश प्राप्त हुआ है,
79) जिससे वह अन्धकार और मृत्यु की छाया में बैठने वालों को ज्योति प्रदान करे और हमारे चरणों को शान्ति-पथ पर अग्रसर करे।’’
जब कोई प्रभु के आत्मा से आविष्ट हो जाता है तो वह आश्चर्यजनक भविष्यवाणियाँ करने लगता है। आत्मा की प्रेरणा से प्रभु महान रहस्यों को प्रकट करता है। आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि जखरीयस आत्मा की प्रेरणा से भर जाता है और योहन एवं उसके भविष्य के कार्य के बारे में भविष्यवाणी करने लगता है। वह कोई नबी नहीं था लेकिन ईश्वर उसी के द्वारा अपनी योजना एवं रहस्य को प्रकट करते हैं। वह बालक योहन का परिचय एक नबी के रूप में देता है। योहन प्रभु के अग्रदूत के रूप में प्रभु का मार्ग तैयार करेगा, वह राष्ट्रों, को ज्योति की ओर अग्रसित करेगा। वह ज्योति का साक्ष्य देगा और लोगों को ईश्वर की ओर अभिमुख करेगा।
जखरीयस एक साधारण याजक था, लेकिन ईश्वर ने उसके के लिए योहन की वास्तविक पहचान को प्रकट किया और उसके द्वारा उस पहचान को दुनिया के सामने भी प्रकट किया। जखरीयस ने प्रभु के अग्रदूत का साक्ष्य दिया और बाद में यही अग्रदूत उस मेमने का साक्ष्य देने वाला थे जो संसार के पाप हर लेता है। वह एक नबी है जो दुनिया के सामने ईश पुत्र का परिचय कराएगा। एक नबी को घृणा, अत्याचार यहाँ तक कि अपनी जान की जोखिम के लिए भी तैयार रहना है। भले ही जखरीयस ने इन बातों की भविष्यवाणी नहीं की लेकिन योहन को प्रभु का अग्रदूत होने की भारी कीमत चुकानी थी। प्रभु हमें आशीष दे कि हम भी इस दुनिया के लिए प्रभु के अग्रदूत बनें।
✍ -फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
When people are filled with the Spirit of the Lord, they start speaking the words of the Spirit. God reveals great mysteries through experience of the spirit. Today we see Zechariah is filled with the spirit and begins to prophesy about John and his future ministry. He was not a prophet but God chooses to reveal the great plan and mystery through Zechariah. He declares John to be a prophet. John would go before the Lord to prepare the way; he will show light to the nations. He will be a witness to the light and guide people toward God.
Zechariah was an ordinary priest, but God revealed the true identity of John to him and through him to the world. Zechariah bore witness to the forerunner of the Saviour of the world. Similarly same John, upon whom the hand of the Lord was there, would point out the Lamb who takes away the sins of the world. He is a prophet who is chosen to introduce the Son of God to the world. A prophet must be ready to face rejections, persecutions and even a threat to life. Even though these things are not prophesied by Zechariah, but that was going to be the cost of being a precursor to the Lord. May God make us also the messengers of the arrival of the Lord to the world.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
आज के सुसमाचार में हम ज़करियस का गीत सुनते है जिसे लातीनी भाषा में "बेनेडिक्तुस" कहा जाता है। सन्त योहन बपतिस्ता के जन्म के अवसर पर प्रभु ईश्वर की स्तुति करते हुए उनके पिता ज़करियस ने यह गीत गाया था। इस्राएली जनता की अविश्वस्तता के बावजूत भी जो दृढ़ प्रेम और वफ़ादारी ईश्वर ने उनके प्रति प्रकट की उसी की प्रशंसा इस गीत के माध्यम से ज़करियस करता है। प्रभु ईश्वर की सभी प्रतिज्ञाएं विश्वासयोग्य हैं। 2 तिमथी 2:13 में संत पौलुस कहते हैं, "यदि हम मुकर जाते हैं, तो भी वह सत्य प्रतिज्ञ बने रहेंगे; क्योंकि वह अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते"। इब्रानियों 10:23 कहता है, “हम अपने भरोसे का साक्ष्य देने में अटल एवं दृढ़ बने रहें, क्योंकि जिसने हमें वचन दिया है, वह सत्यप्रतिज्ञ है”। इस स्तुति-गीत में मनाया जाने वाला दूसरा पहलू प्रभु येसु मसीह में ईश्वर की मुक्तिकार्य है। प्रभु येसु दुनिया के उद्धारकर्ता हैं और उनकी मुक्ति की ताकत प्रभु के शरीरधारण में प्रकट होती है। योहन बपतिस्ता इस महान मुक्ति-योजना का हिस्सा है जिसका अनुभव उनका पिता ज़करियस भी करता है। इस प्रकार ज़करियस का स्तुति-गीत हमें ईश्वर की सत्यप्रतिज्ञता तथा उनके मुक्तिकार्य को याद करने के लिए आमंत्रित करता है।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
In today’s Gospel we have the “Benedictus”, the Canticle of Zachariah, the father of John the Baptist in praise of God. Zachariah praised God for his steadfast love and faithfulness to Israel although Israel was often unfaithful. God was faithful in all his promises. In 2Tim 2:13 St. Paul says, “if we are faithless, he remains faithful - for he cannot deny himself”. Heb 10:23 says, “Let us hold fast to the confession of our hope without wavering, for he who has promised is faithful”. The second aspect that is celebrated in this canticle is the saving activity of God in Jesus Christ. Jesus is the Saviour of the world and his saving power is manifested in the event of incarnation. John the Baptist is part of the enactment of this great saving event which is also witnessed by his father, Zachariah. Thus the canticle of Zachariah invites us to celebrate the faithfulness of God and his saving activity in history.
✍ -Fr. Francis Scaria
संत लूकस के सुसमाचार के पहले दो अध्यायों में तीन स्तुतिगीत हैं। पहले अध्याय में मरियम का भजन (Magnificat) और ज़करियस का भजन (Benedictus) हैं और दूसरे अध्याय में सिमयोन का भजन (Nunc dimittis) हैं। ये तीनों गीत क्रिसमस की खुशी को व्यक्त करते हैं। मरिया-गान उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की स्तुति है जो अपने पुत्र के देहधारण के माध्यम से इस दुनिया में अपना सबसे बड़ा आश्चर्य का कार्य करते हैं। ज़करियस का भजन मुख्य रूप से मसीह के आगमन और संत योहन बपतिस्ता, अग्रदूत की भूमिका के बारे में भविष्यवाणी का गीत है। लंबे समय की प्रतीक्षा के बाद मसीह के आगमन के व्यक्तिगत अनुभव का आनंद सिमयोन का भजन व्यक्त करता है। क्रिसमस की अवधि में प्रत्येक ख्रीस्तीय विश्वासी को इन गीतों को सार्थक रीति से गाने के लिए सक्षम बनना चाहिए। इसके लिए क्रिसमस के अनुभव को निजीकरण की आवश्यकता होगी। ज़करियस नौ महीनों से अधिक समय से मौन साध रहे थे। वे नौ महीनों से बात ही नहीं कर पा रहे थे। लूकस 1:64 में, सुसमाचार-लेखक ने नोट किया, "उसी क्षण ज़करियस के मुख और जीभ के बन्धन खुल गये और वह ईश्वर की स्तुति करते हुए बोलने लगा।"। जब ज़करियस को बोलने की क्षमता प्राप्त हुयी तब उनकी सब से पहली प्रतिक्रिया सर्वशक्तिमान की प्रशंसा की थी। अपनी चुप्पी में वे ईश्वर के देहधारण के रहस्य और उस कहानी में खुद की भूमिका पर मनन-ध्यान कर रहे थे, जो उनके सामने धीरे-धीरे प्रकट हो रहे थे। वे उस आंतरिक आनंद को अपने दिल के अन्दर समाहित करने में सक्षम नहीं थे जो सर्वशक्तिमान की प्रशंसा में फूट निकला था। अब मेरे अपने व्यक्तिगत मनन-चिंतन के लिए कई सवाल उठते हैं। क्या मैं प्रभु की प्रतीक्षा कर रहा हूँ? क्या मेरा इंतज़ार सिमयोन के इंतजार की तरह तीव्र है? क्या मैंने अपने उद्धारक के आने के अनुभव को निजीकृत करने की कोशिश की है? क्रिसमस की पूर्व संध्या पर इन सवालों को संबोधित करना मेरे लिए अच्छा है, ताकि क्रिसमस का जश्न मेरे लिए एक व्यक्तिगत अनुभव हो। वास्तव में, कलीसिया प्रतिदिन की प्रभात-प्रार्थना में ज़करियस के भजन को शामिल कर उसे हर रोज सार्थक रूप से गाने के लिए हमें आमंत्रित करती है।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
There are three canticles in the first two chapters of the Gospel of St. Luke. They are the Canticle of Mary (Magnificat) and, Canticle of Zachariah (Benedictus) in chapter one, and the Canticle of Simeon (Nunc dimittis) in chapter two. All these three songs express the joy of Christmas. The canticle of Mary is praise of God who carries out his greatest wonder through the Incarnation of the Son of God. The Canticle of Zachariah is primarily a song of prophecy about immediate arrival of the Messiah and the role of St. John the Baptist, the precursor. The Canticle of Simeon expresses the joy of the personal experience of the arrival of the Messiah after a long period of waiting. In the season of Christmas every Christian should be able to sing these songs with great meaning. This would require personalisation of the experience of Christmas. Zachariah was silent for over nine months. He was not able to talk for nine months. In Lk 1:64, the evangelist notes, “his mouth was opened and his tongue freed, and he began to speak, praising God”. When Zachariah regained the power of speech, the first movements of his tongue were praises of the Almighty. In his silence he was contemplating the mystery of the Incarnation and his own role in that story that unravelled petal by petal before him. He was not able to contain the inner joy that broke out in praises of the Almighty. Many questions arise for my own personal reflections. Have I been waiting for the Lord? Has my waiting been intense like that of Zachariah? Have I tried to personalise the experience of the coming of my redeemer? It is good for me to address these questions on the eve of Christmas, so that the celebration of Christmas will be a personal experience for me. In fact, the Church invites us to meaningfully sing the Benedictus every day by making it part of the morning prayer of every day in the Divine Office.
✍ -Fr. Francis Scaria