1) बेथलेहेम एफ्राता! तू यूदा के वंशों में छोटा है। जो इस्राएल का शासन करेगा, वह मेरे लिए तुझ में उत्पन्न होग। उसकी उत्पत्ति सुदूर अतीत में, अत्यन्त प्राचीन काल में हुई है।
2) इसलिए प्रभु उन्हें तब तक त्याग देगा, जब तक उसकी माता प्रसव न करे। तब उसके बचे हुए भाई इस्राएल के लोगों से मिल जायेंगे।
3) वह उठ खडा हो जायेगा, वह प्रभु के सामर्थ्य से तथा अपने ईश्वर के नाम प्रताप से अपना झुण्ड चरायेगा। वे सुरक्षा में जीवन बितायेंगे, क्योंकि वह देश के सीमान्तों तक अपना शासन फैलायेगा
4) और शांति बनाये रखेगा।
5) इसलिए मसीह ने संसार में आ कर यह कहा: तूने न तो यज्ञ चाहा और न चढ़ावा, बल्कि तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है।
6) तू न तो होम से प्रसन्न हुआ और न प्रायश्चित्त के बलिदान से;
7) इसलिए मैंने कहा - ईश्वर! मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ, जैसा कि धर्मग्रन्थ में मेरे विषय में लिखा हुआ है।
8) मसीह ने पहले कहा, ’’तूने यज्ञ, चढ़ावा, होम या या प्रायचित्त का बलिदान नहीं चाहा। तू उन से प्रसन्न नहीं हुआ’’, यद्यपि ये सब संहिता के अनुसार ही चढ़ाये जाते हैं।
9) तब उन्होंने कहा, ’’देख, मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ’’। इस प्रकार वह पहली व्यवस्था को रद्द करते और दूसरी का प्रवर्तन करते हैं।
10) ईसा मसीह के शरीर के एक ही बार बलि चढ़ाये जाने के कारण हम ईश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्र किये गये हैं।
39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।
40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।
41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।
42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, ’’आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!
43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?
44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।
45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!’’
जब बच्चों के लिए मिस्सा बलिदान हो रहा था, तब एक फटे पुराने कपडे पहने व्यक्ति ने गिरजा घर में प्रवेश किया। वह बैठ गया और जल्दी उसे नींद लगी। मिस्सा के बाद बच्चों ने माता मरियम का गीत गाये -
Mother of Christ, star of the sea,
Pray for the wanderer, pray for me.
गीत सुन कर वह आदमी जाग उठा और फूट फूट कर रोने लगा। बच्चो ने उसके पास आ कर संवेदना प्रकट की। उस आदमी ने बच्चों से कहा – “आप के उम्र में मैं भी एक अच्छा काथलिक बच्चा था, बराबर चर्च जाता था, प्रार्थना करता था। जल्दी मैं कुछ दोस्तों के प्रभाव में आकर हर प्रकार की बुराई के वश में आ गया। चर्च जाना और प्रार्थना करना तब से मैं ने छोड दिया। वह पदच्युत व्यक्ति (wanderer) मैं हूँ जिस के लिए आप बच्चों ने इस गीत में अभी प्रार्थना की। मैं वापस आ गया प्रभु येसु! माता मरियम मेरे लिए प्रार्थना करना; बच्चों, आप भी मेरे लिये प्रार्थना करना।”
बच्चों द्वारा गाये उस मरियम भक्ति-प्रार्थना गीत ने उस डावाडोल आदमी को विश्वास मंन पुनः आने की कृपा दी। इस प्रकार का अनुभव कुछ लोगों का नहीं बल्कि करोडों लोगों का है। अतः कलीसिया यह सिखाती आयी है– “मरियम के द्वारा येसु की ओर” (To Jesus through Mary)। प्रभु येसु को पहचानने एवं मुक्तिदाता के रूप में ग्रहण करने के लिए मरियम मध्यस्थता एक विशेष भूमिका निभाती है।
ईशपुत्र येसु को अपने गर्भ में धारण करती हुई मॉ मरियम अपनी परिजन एलीजबेथ से मिलने जाती है। इस मिलन में एलीज़बेथ और उसकी कोख में पले रहे योहन को अनोखा दैविक अनुभव प्राप्त होता जिसका वर्णन एलीज़बेथ के शब्दों में है – “ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पडा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पडा।”
ख्रीस्तीय होने का मतलब येसु को धारण करना होता है (रोमियों 13:14)। जो येसु को अपने जीवन में धारण करते हैं, वे आनन्द और शॉति का स्रोत येसु के माध्यम बनकर अन्य लोगों के लिए मुक्ति और खुशी प्रदान कर सकेंगे।
मरियम येसु को अपने गर्भ में धारण करने के बाद अपनी परिजन एलीज़बेथ से मिलने जाती है और उनकी सेवा शुश्रूषा करती है। मरियम को येसु की माता होने के अलावा येसु की प्रथम ’प्रेरित’ भी कहा जा सकता है जो येसु को धारण करती हुई एलीजबेथ से मिलती है और मसीह के आगमन के शुभ संदेश दोनों बहने आपस मे बॉटती हैं। मरियम में जो मूलभूत गुण है वह सभी ख्रीस्तीयों में होना चाहिये ताकि हरेक ख्रीस्तीय प्रेरित बनकर येसु के मुक्ति कार्य को लोगों तक पहुँचा सकें। ये मूलभूत गुण हैं -
☞मरियम को ईश्वर में दृढ विश्वास था। स्वर्गदूत गब्रिएल से प्राप्त संदेश में मरियम ने विश्वास किया एवं ईशमाता बनने के लिए अपनी बिना शर्त सहमति दी जिसके दूरगामी परिणामों को वह नहीं समझ पाती थी।
☞मरियम ईश्वर की योजनाओं के प्रति समर्पित थी – “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका वचन मुझमें पूरा हो जायें। (लूकस 1:38)
☞मरियम सेवाभाव और संवेदना से भरी थी। वह अपने परिजन एलीज़बेथ से मिलने जाती और सेवा करती है। काना के विवाह भोज में अंगूरी समाप्त होने पर मरियम उस परिवार की व्याकुलता के प्रति संवेदनशील होती है और जानती है कि इस समस्या का समाधान केवल अपने पु़त्र येसु से ही हो सकता है। अतः मरियम इस समस्या को येसु के समक्ष रखती है। यहॉ येसु अपना पहला चमत्कार करते है। (योहन 2:3-10)
☞मरियम का जीवन आनन्द एवं कृतज्ञता का है। मरियम का स्तुतिगान ईश्वर के प्रति अपना आनन्द एवं कृतज्ञता का मधुर गीत है। जिसमें आनन्द नहीं, वह दुसरों को आनन्द नहीं दे सकता; जो कृतज्ञ नहीं, वे आनन्दित रह नहीं सकता क्योंकि उनके सोच नकारात्मक होता है। जिसमें आनन्द नहीं, वे येसु के शुभ संदेश नहीं दे सकता।
माता मरियम के इन गुणों को हम अपने जीवन में अपनायें ताकि हम प्रभु येसु मसीह के साक्षी बन सकें। इस आगमन काल के अंतिम इतवार को हम माता मरियम जैसे अपने हृदय को आनन्द और कृतज्ञता से भरें ताकि ईशपुत्र येसु मसीह को हम अपने हृदय में स्वागत करें, धारण करें। हमारे विचार सकारात्मक बने और हम पाप मुक्ति पाकर येसु के बन जायें।
✍फादर डोमिनिक थॉमस – जबलपूर धर्मप्रान्त