दिसंबर 21, 2024, शनिवार

आगमन का तीसरा सप्ताह

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📒 पहला पाठ: सुलेमान का सर्वश्रेष्ठ गीत 2:8-14

8) मैं अपने प्रियतम की आवाज सुन रही हूँ- देखो! वह पर्वतों पर उछलते-कूदते, पहाड़ियों को लाँघते हुए आ रहा है।

9) मेरा प्रियतम चिकारे के सदृश है अथवा तरूण मृग के सदृश। देखो! वह हमारी दीवार के ओट में खड़ा है, वह खिड़की से ताक रहा है, वह जाली में से झाँक रहा है।

10) मेरा प्रियतम बोल रहा है। वह मुझ से यह कहता है,

11) ‘‘प्रिये! सुन्दरी! उठो, मेरे साथ चलो। देखो! शीतकाल बीत गया है, वर्षा-ऋतु समाप्त हो गयी है।

12) पृथ्वी पर फूल खिनने लगे हैं। गीत गाने का समय आ गया है और हमारे देश में कपोत की कूजन सुनाई दे रही है।

13) अंजीर के पेड़ में नये फल लग गये हैं और दाखलताओं के फूल महक रहे है। प्रिये! सुन्दरी! उठो, मेरे साथ चलो।

14) चट्टानों की दरारों में, पर्वतों की गुफाओें में छिपने वाली, मेरी कपोती! मुझे अपना मुख दिखाओे, अपनी आवाज़ सुनने दो, क्योंकि तुम्हारा कण्ठ मधुर है और तुम्हारा मुख सुन्दर है।‘‘

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 1:39-45

39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।

40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।

41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।

42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, ’’आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!

43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?

44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।

45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!’’

📚 मनन-चिंतन

यह सुसमाचार तब शुरू होता है जब मरियम जल्दबाजी में पहाड़ी देश से यूदा शहर की यात्रा करने के लिए निकली। जब वे वहां पहुंची, तो जकर्याह के घर में अपनी चचेरी बहन एलिजाबेथ का अभिवादन किया। जब एलिज़ाबेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, तो शिशु “उसके गर्भ में उछल पडा।“ खुशी से भर गया कि हमारा प्रभु येसु एक छोटे, नाजुक, बच्चे के रूप में पृथ्वी पर आया? वह गरीबों के घर पैदा हुआ था, राजपरिवार में नहीं। वह “हम में से एक“ बनना चाहता था। वह हमारे बीच चलना चाहता था. आज येसु हमारे पास आएंगे। सबसे अधिक संभावना है, वह तब आएगा जब हमें उससे कम से कम उम्मीद होगी। वह दोस्त बनकर आ सकता है या किसी अजनबी की मदद के लिए हमारे पास आ सकता है। शायद येसु शांति से आएंगे। इस पूरे दिन जागते रहें. आप कई बार येसु से मिल सकते हैं और अन्य लोग आपके माध्यम से येसु से मिल सकते हैं।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


This Gospel begins as Mary set off to travel in haste to the hill country to the town of Judah. When she arrived there, Mary went to the house of Zechariah and greeted her cousin, Elizabeth. When Elizabeth heard Mary’s greeting, the infant Elizabeth was carrying “leaped in her womb." In that instant, Elizabeth was filled with the Holy Spirit. Do we take Jesus’ coming into the world for granted? Or are we amazed, astounded, and filled with joy that our Lord Jesus came to earth as a small, fragile, baby boy? He was born to peasants, not royalty. He wanted to become “one of us." He wanted to walk among us. Today Jesus will come to us. Most likely, he will come when we least expect him. He may come disguised as a friend or he may come to us in the helping hand of a stranger. Perhaps Jesus simply will come in quiet and peace. Be awake throughout this day. You may encounter Jesus several times and others may meet Jesus through you.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज के पाठ हमें ईश मिलन के आनन्द की एक झलक दिखलाते हैं। एलिजाबेथ को पहले से अपार आनन्द और खुशी से भर दिया था जब ईश्वर ने उसे बुढ़ापे में भी सन्तान सुख का वरदान दिया। उसके लिए तो यह हारी हुई बाजी जीतने के समान था। और ऊपर से उसे प्रभु की माँ के आने की खुशी भी मिली। उस मनोरम दृश्य की कल्पना कीजिए जहाँ दो गर्भवती माताएं गले मिल रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर उनके गर्भ में अजन्मे बालक भी खुशी से उछल रहे हैं।

इससे बड़ा कोई आनन्द नहीं है, जहाँ ईश्वर स्वयं किसी से मिलने आते हैं। अनेक संतों ने अपने जीवन में इसी सिद्धांत का पालन किया कि, चाहे आप सारी दुनिया ले लो लेकिन ईश्वर हमें दे दो, इतना ही काफी है। एलिजाबेथ और माता मरियम की भेंट उस फिल्म के ट्रेलर की तरह है जो अभी शुरू होने वाली है। इंसानों के बीच ईश्वर जन्म लेने वाले थे, वह हमारे बीच अपना निवासस्थान बनाने वाले थे। इतनी खुशी! प्रभु येसु भी रोज पवित्र यूखरिस्त के रूप मे हमारे अंदर आते हैं। हमें खुद से यही सवाल करना है कि क्या जो खुशी माता मरियम के आने से एलिजाबेथ और बालक योहन को हुई थी ऐसी खुशी कभी मैंने महसूस की है?

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

The readings today give us a glimpse of joy when God comes to meet us. Elizabeth was already unable to handle the great joy that God gave her by blessing her with a child in her old age. For her it was like winning the inning that was already lost. Added to this great joy came the joy of coming of the Mother of the Lord to her. Imagine the beautiful scene where two pregnant mothers are embracing each other and at the same time two unborn babies are rejoicing at meeting each other even before being born!

No joy can be greater than the joy of having God come to meet you. Many saints followed the principle of giving up the whole world, just to have God with them. Meeting of Mary and Elizabeth was like a trailer of the movie that was yet to begin. God was going to be born amidst humans, and was going to make his dwelling amidst us. What a joy! Jesus comes to us daily through the Holy Eucharist. I need to ask myself, do I experience the same joy that Elizabeth and baby John experienced at the coming of Mother Mary with Baby Jesus in her womb?

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 3

ईश्वपुत्र की माँ के रूप में चुने जाने के बारे में बताया जाने के बाद, मरियम एलिजाबेथ के पास जाती हैं। वे किसलिए गयी होंगी? एलिजाबेथ पहले से ही उनके समान ईश्वर-अनुभव रखती है। ईश्वर ने उसे उसके बुढ़ापे में मसीह के अग्रदूत योहन बपतिस्ता की माँ बनने की कृपा दी और वह गर्भवति हो गयी थी। कुँवारी मरियम को बताया गया था कि वे भी एक पुरुष के सहयोग के बिना ईशपुत्र को गर्भ में धारण करेंगी। मरियम एलिजाबेथ के साथ ईश्वर-अनुभव की अपनी खुशी को बाँटना चाहती हैं और एलिजाबेथ भी अपने ईश्वर-अनुभव की खुशी मरियम के साथ बाँटती है। मरियम के एलिज़बेथ के पास जाने का दूसरा कारण उनकी सेवा करने का हो सकता है। उन्हें पता चलता है कि बुढ़ापे में एलिजाबेथ गर्भवती हो गई है और उसे दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में सहायता की आवश्यकता है। यही कारण है कि मरियम उसकी सेवा करने के लिए लगभग तीन महीने तक एलिजाबेथ के साथ रही। तीसरा कारण एक दूसरे के विश्वास को मजबूत करना हो सकता है। इन दोनों व्यक्तियों को कई रहस्यों का अनुभव मिलता है जिनके कई ऐसे पहलू भी हैं जो उन्हें ज्ञात नहीं हैं। ये दो महिलाएं जिन्होंने ईश्वर से महान अनुग्रह पाया और एक-दूसरे की सराहना की अब एक साथ मिल कर ईश्वर की महिमा करना चाहती हैं। जब हम साथ मिलते हैं तो क्या हम ईश्वर की महिमा करते हैं?

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

After being told about her being chosen as the mother of the Son of God, Mary rushes to Elizabeth. What could have been her motivation? Elizabeth already has had a God-experience similar to hers. Her womb was opened by God and she conceived John the Baptist, the forerunner of the Messiah in her old age. Mary was told that she too would conceive and bear a son, of course, in her case without the intervention of a man. Mary wants to share her joy of God-experience with Elizabeth and wants to share in the joy of the God-experience of Elizabeth. The second motivation for Mary must have been one of service. She realises that Elizabeth in her old age had become pregnant and needed assistance in the day to day activities. That is why Mary stayed with Elizabeth for about three months to serve her. A third reason could be to strengthen each other’s faith. There are many mysteries revealed to both of them. Yet there are many aspects of these mysteries not known to them. Two women who found favour with God, who appreciated and encouraged each other, came together to glorify God. When we come together do we glorify God?

-Fr. Francis Scaria