दिसंबर 20, 2024, शुक्रवार

आगमन का तीसरा सप्ताह

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📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 7:10-14

10) प्रभु ने फिर आहाज़ से यह कहा,

11) “चाहे अधोलोक की गहराई से हो, चाहे आकाश की ऊँचाई से, अपने प्रभु-ईश्वर से अपने लिए एक चिन्ह माँगो“।

12) आहाज़ ने उत्तर दिया, “जी नहीं! मैं प्रभु की परीक्षा नहीं लूँगा।“

13) इस पर उसने कहा, “दाऊद के वंश! मेरी बात सुनो। क्या मनुष्यों को तंग करना तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है, जो तुम ईश्वर के धैर्य की भी परीक्षा लेना चाहते हो?

14) प्रभु स्वयं तुम्हें एक चिन्ह देगा और वह यह है - एक कुँवारी गर्भवती है। वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।

📒 सुसमाचार : सन्त लूकस 1:26-38

26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,

27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।

29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।

30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।

31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।

32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,

33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’

34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’

35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;

37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’

38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।

📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार हमारे लिए बहुत परिचित है। यह मरियम की घोषणा की कहानी है जब स्वर्गदूत उसके सामने प्रकट हुए और उसे बताया कि वह गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी। लूकस का कहना है कि स्वर्गदूत की खबर से मरियम बेहद परेशान थी। इस सबका क्या मतलब था? यह कैसे हुआ? वह यूसुफ को क्या बताएगी? क्या वह उस पर विश्वास करेगा या उसे अस्वीकार करेगा? अपने आप को मरियम के स्थान पर रखेंः आप कैसे प्रतिक्रिया देंगे? कभी-कभी, येसु हमारे सामने कठिन या दर्दनाक परिस्थितियाँ प्रस्तुत करते हैं जो हमारे अंदर भावनाओं का तूफ़ान पैदा कर देती हैं। हम कैसे प्रतिक्रिया दें? हमें स्वयं को उस ईश्वर पर आधारित रखने की आवश्यकता है जिसे हम जानते हैं और जिस पर हम भरोसा करते हैं! यदि हम ऐसा करते हैं, तो हम वास्तव में यह विश्वास करने में सक्षम हो सकते हैं कि हमारे पास वह अनुग्रह, शक्ति और विश्वास है जिसकी हमें आवश्यकता है। इससे हमें शांति मिलेगी! ईश्वर हमें शांति देंगे! आज हम मरियम से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कह सकते हैं! वह भी हमारे साथ चलेगी!

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


This Gospel from Luke is one that is a very familiar to us. It is the story of Mary’s Annunciation when the angel appeared to her and revealed to her that she would conceive and bear a Son. Luke says that Mary was extremely troubled at the angel’s news. What did all this mean? How was it to come about? What would she tell Joseph? This was too fantastic for him to believe! Would he believe her or reject her? Put yourself in Mary’s place: how would you react? At times, Jesus presents us with difficult or painful situations that stir up a storm of emotion in us. How do we respond? We need to keep ourselves grounded in the God we know and trust! If we do this, then we truly may be able to believe that we have the grace, strength and trust that we need. This will bring us peace! God will bring us peace! Today may we ask Mary to pray for us! She has “walked in these shoes.” She will walk with us also!

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

हम कल्पना कर सकते हैं कि स्वर्गदूत के सन्देश से माता मरियम बड़ी परेशानी में पड़ गईं होंगी। एक स्वर्गदूत से आमने-सामने बात करना उनके लिए अकल्पनीय सौभाग्य था। उन्हें यह विचार परेशान कर रहा था कि वह कैसे बिना विवाह किये ही माँ बनेंगी, उनके मन में समाज को लेकर, सगे-संबंधियों को लेकर बहुत भय और डर होगा। यह सब वह उन लोगों को कैसे समझाएगी? क्या कोई उसकी बातों पर यकीन करेगा? कोई उसके मन को समझेगा? ये सभी बातें जरूर उन्हें परेशान कर रही होंगी। लेकिन शायद उन्हें पता नहीं था कि ईश्वर योजना में हाँ कहने के बाद उन्हें जो आनन्द मिलेगा, उसके सामने ये सारी परेशानियाँ कुछ भी नहीं होंगी।

ईश्वर, माता मरियम के द्वारा मुक्ति के इतिहास एक नई शुरुआत करने जा रहे थे। लेकिन माता मरियम के लिए यह आनंदमय दुःख की शुरुआत थी। ईश्वर की योजना उन्होंने हाँ बोलकर न केवल ईश्वर की माँ बनना स्वीकार किया बल्कि समस्त मानवजाति की माँ बन गईं और आने वाली सब पीढ़ियों के लिए धन्य हो गईं। हमारे जीवन में बहुत से कष्ट और परेशानियाँ होंगी, लेकिन अगर हम अपने जीवन में ईश्वर की इच्छा पूरी करेंगे तो जरूर अंत में हमें ईश्वर में आनन्द मनाने का मौका जरूर मिलेगा। आज माता मरियम की स्वीकृति के लिए सारा जग कृतज्ञ है।

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Mother Mary must have been really troubled at the words of the angel. She was too insignificant to be talking to an angel face to face, the thought that she will become mother of a child even without the marriage. There must have been terrible fear of the society, there must have been fear of family, how would she explain this incident to all these people? And will they believe her? Will anybody understand her? This must have certainly troubled her deeply. But she did not know at that time that her joy after saying yes to God, will surpass all her troubles and anxieties.

There was a new chapter in the history of humanity that was going to begin with her. Less she knew that her troubles would continue till the end. Her saying yes to the Lord made her not only the Mother of the Saviour of the world, but of the world itself for generations to generations. We may have lot of troubles in our life, we may not understand what could be result or outcome of these troubles, but if we say yes to God’s plan, we can be sure that our joys will surpass all our troubles at the end. Today the world is grateful to the “yes” of Mother Mary.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 3

जब स्वर्गदूत गब्रिएल ने ज़करियस के सामने योहन बपतिस्ता के जन्म की घोषणा की, तब उन्होंने एक सवाल पूछा, “इस पर मैं कैसे विश्वास करूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ और मेरी पत्नी बूढ़ी हो चली है।” (लूकस 1:18)। योहन के जन्म तक स्वर्गदूत ने उसे चुप करा दिया। स्वर्गदूत का व्यवहार हमें कठोर लग सकता है। दूसरी ओर, छठे महीने में, वही स्वर्गदूत गेब्रिएल कुँवारी मरियम के पास गये और उन्होंने उनके सामने येसु के जन्म की घोषणा की। मरियम का भी एक सवाल था, "यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।" स्वर्गदूत ने धैर्यपूर्वक स्पष्ट किया कि पवित्र आत्मा की शक्ति से ही यह संभव होगा। कोई यह सवाल कर सकता है कि स्वर्गदूत की प्रतिक्रिया में यह अंतर क्यों है। यदि हम यह देखते हैं कि स्वर्गदूत की घोषणा के समय मरियम के साथ क्या होता है, तो हम यह पायेंगे कि मरियम हैरान और भयभीत हो गयी थीं और अपनी विनम्रता के साथ उन्होंने उस रहस्य को समझने के लिए मदद मांगी जो उनके सामने प्रकट किया जा रहा था। दूसरी ओर, ज़करियस नम्रता के साथ स्पष्टीकरण नहीं मांग रहे थे, लेकिन अविश्वास में सबूत माँग रहे थे। उनका सवाल था - "इस पर मैं कैसे विश्वास करूँ?" वे सुसमाचार के कुछ फरीसियों और सदूकियों की तरह जवाब देते हैं जो येसु से एक चिह्न की मांग करते हैं। इसलिए उन्हें शुद्धीकरण के समय से गुजरना पड़ा क्योंकि योहन ईश्वर की पवित्र योजना के अनुसार जन्म लेने वाले थे।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

When Angel Gabriel announced the birth of John to his Father Zachariah, he asked a question, “How will I know that this is so? For I am an old man, and my wife is getting on in years” (Lk 1:18). The Angel silenced him until John was born. The angel seems to be harsh with him. On the other hand, in the sixth month, the same Angel Gabriel appeared to Mary and announced about the birth of Jesus. Mary too had a question, “How can this be, since I am a virgin?” The angel patiently clarified that this would be possible with the intervention of the Holy Spirit. Someone may question as to why this difference in the response of the angel. If we look at what happens to Mary at the time of the annunciation, we can see that Mary was perplexed and confused and in her humility she asked for help to understand what was being unfolded before her. On the other hand, Zachariah was not seeking a clarification in humility, but was asking for a proof in disbelief. His question was – “How will I know that this is so?” He seems to respond like some Pharisees and Scribes who demanded a sign from Jesus. He therefore had to go through a time of purification before John would be born according to the sacred plan of God.

-Fr. Francis Scaria