2) सोरआ में दान वंश का मानोअह नामक मनुष्य रहता था। उसकी पत्नी बाँझ थी। उसके कभी सन्तान नहीं हुई थी।
3) प्रभु का दूत उसे दिखाई दिया और उस से यह बोला, ’’आप बाँझ हैं। आपके कभी सन्तान नहीं हुई। किन्तु अब आप गर्भवती होंगी और पुत्र प्रसव करेंगी।
4) आप सावधान रहें आप न तो अंगूरी या मदिरा पियें और न कोई अपवित्र वस्तु खायें;
5) क्योंकि आप गर्भवती होंगी और पुत्र प्रसव करेंगी। बालक के सिर पर उस्तरा नहीं चलाया जायेगा, क्योंकि वह अपनी माता के गर्भ से ईश्वर को समर्पित होगा। फ़िलिस्तियों के हाथों से इस्राएल का उद्धार उसी से प्रारम्भ होगा।’’
6) वह स्त्री अपने पति को यह बात बताते गयी। उसने कहा, ’’ईश्वर की ओर से एक पुरुष मेरे पास आया। उसका रूप स्वर्गदूत की तरह अत्यन्त प्रभावशाली था। मुझे उस से यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि आप कहाँ से आ रहे हैं और उसने मुझे अपना नाम नहीं बताया।
7) उसने मुझ से यह कहा, ’आप गर्भवती होंगी और पुत्र प्रसव करेंगी। आप अब से न तो अंगूरी या मदिरा पियें और न कोई अपवित्र वस्तु खायें। बालक अपनी माता के गर्भ से अपनी मृत्यु के दिन तक ईश्वर को समर्पित होगा।‘‘
24) उस स्त्री ने पुत्र प्रसव किया और उसका नाम समसोन रखा। बालक बढ़ता गया और उसे प्रभु का आशीर्वाद मिलता रहा;
25) और प्रभु का आत्मा उसे प्रेरित करने लगा।
5) यहूदिया के राजा हेरोद के समय अबियस के दल का जकरियस नामक एक याजक था। उसकी पत्नी हारून वंश की थी और उसका नाम एलीज़बेथ था।
6) वे दोनों ईश्वर की दृष्टि में धार्मिक थे-वे प्रभु की सब आज्ञाओं और नियमों का निर्दोष अनुसरण करते थे।
7) उनके कोई सन्तान नहीं थी, क्योंकि एलीज़बेथ बाँझ थी और दोनों बूढ़े हो चले थे।
8) जकरियस नियुक्ति के क्रम से अपने दल के साथ याजक का कार्य कर रहा था।
9) किसी दिन याजकों की प्रथा के अनुसार उसके नाम
10) चिट्टी निकली कि वह प्रभु के मन्दिर में प्रवेश कर धूप जलाये।
11) धूप जलाने के समय सारी जनता बाहर प्रार्थना कर रही थी। उस समय प्रभु का दूत उसे धूप की वेदी की दायीं और दिखाई दिया।
12) जकरियस स्वर्गदूत को देख कर घबरा गया और भयभीत हो उठा;
13) परन्तु स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’जकरियस! डरिए नहीं। आपकी प्रार्थना सुनी गयी है-आपकी पत्नी एलीज़बेथ के एक पुत्र उत्पन्न होगा, आप उसका नाम योहन रखेंगे।
14) आप आनन्दित और उल्लसित हो उठेंगे और उसके जन्म पर बहुत-से लोग आनन्द मनायेंगे।
15) वह प्रभु की दृष्टि में महान् होगा, अंगूरी और मदिरा नहीं पियेगा, वह अपनी माता के गर्भ में ही पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जायेगा
16) और इस्राएल के बहुत-से लोगों का मन उनके प्रभु-ईश्वर की ओर अभिमुख करेगा।
17) वह पिता और पुत्र का मेल कराने, स्वेच्छाचारियों को धर्मियों की सद्बुद्धि प्रदान करने और प्रभु के लिए एक सुयोग्य प्रजा तैयार करने के लिए एलियस के मनोभाव और सामर्थ्य से सम्पन्न प्रभु का अग्रदूत बनेगा।’’
18) जक़रियस ने स्वर्गदूत से कहा, ’’इस पर मैं कैसे विश्वास करूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ और मेरी पत्नी बूढ़ी हो चली है।’’
19) स्वर्गदूत ने उसे उत्तर दिया, ’’मैं गब्रिएल हूँ-ईश्वर के सामने उपस्थित रहता हूँ। मैं आप से बातें करने और आप को यह शुभ समाचार सुनाने भेजा गया हूँ।
20) देखिए, जिस दिन तक ये बातें पूरी नहीं होंगी, उस दिन तक आप मौन रहेंगे और बोल नहीं सकेंगे; क्योंकि आपने मेरी बातों पर, जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास नहीं किया।’’
21) जनता जकरियस की बाट जोह रही थी और आश्चर्य कर रही थी कि वह मन्दिर में इतनी देर क्यों लगा रहा है।
22) बाहर निकलने पर जब वह उन से बोल नहीं सका, तो वे समझ गये कि उसे मन्दिर में कोई दिव्य दर्शन हुआ है। वह उन से इशारा करता जाता था, और गूंगा ही रह गया।
23) अपनी सेवा के दिन पूरे हो जाने पर वह अपने घर चला गया।
24) कुछ समय बाद उसकी पत्नी एलीज़बेथ गर्भवती हो गयी। उसने पाँच महीने तक अपने को यह कहते हुए छिपाये रखा,
25) ’’यह प्रभु का वरदान है। उसने समाज में मेरा कलंक दूर करने की कृपा की है।’’
आज हम योहन की कहानी सुनते हैंः जकर्याह और एलिजाबेथ की कहानी। इस पाठ में मरियम के लिए स्वर्गदूत की घोषणा की गूँज है कि वह एक बच्चे को जन्म देगी। इस पाठ में, ईश्वर का एक दूत जकर्याह को दिखाई देता है जब वह ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था। जकर्याह स्वर्गदूत के संदेश से बहुत परेशान हुआ। स्वाभाविक रूप से, जकर्याह को संदेह था और उसने स्वर्गदूत के संदेश पर संदेह किया। स्वर्गदूत ने जकर्याह के अविश्वास और संदेह की सराहना नहीं की। यदि हमें किसी देवदूत से संदेश मिले तो हमारी क्या प्रतिक्रिया होगी? सबसे अधिक संभावना है, हम भी बड़े अविश्वास के साथ जवाब देंगे और शायद आश्चर्य करेंगे कि क्या हम पागल हैे! फिर भी हमारे जीवन में कभी-कभी, ईश्वर वास्तव में अजीब और शानदार तरीकों से कार्य करता है। शायद जब हम अविश्वास कर रहे हों, तो हमें इस सुसमाचार अंश को दोबारा पढ़ना चाहिए। कौन जानता है? आज ईश्वर हमारे जीवन में अजीब और अद्भुत तरीके से कार्य करने की इच्छा कर सकते हैं।
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)Today we hear the story of John the Baptist’s conception: the story of Zechariah and Elizabeth. In this reading there are echoes of the angel’s announcement to Mary that she would bear a child. In this reading from Luke, an angel of God appears to Zechariah as he was praying in the sanctuary of God. Zechariah is very troubled by the angel’s message. Naturally, Zechariah was sceptical and he doubted the angel’s message. The angel did not appreciate Zechariah’s disbelief and scepticism. If we received a message from an angel, how would we react? Most likely, we also would respond with great disbelief and perhaps wonder if we were crazy! Yet at times in our lives, God indeed does act in strange and fantastic ways. Perhaps when we are disbelieving, we should re-read this Gospel passage. Who knows? Today God may desire to act in strange and wondrous ways in our lives.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
आज की दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे कोई न कोई चिंता या दुख न हो भले ही वह परेशानी दूसरों को दिखाई न दे। जखरीयस और एलिजाबेथ हमारे लिए धीरज का सबसे बड़ा उदाहरण हैं। वह निःसंतान दंपतियों के लिए प्रेरणा हैं। जीवन में भले ही कितना भी कष्ट हो लेकिन हमें प्रभु में भरोसा रखना है। हो सकता है कुछ समय के लिए हमें ईश्वर की योजना समझ में नहीं आए लेकिन वह जो भी करता है सोच-समझ कर करता है।
आज हम दो अलग-अलग लोगों के पास एक स्वर्गदूत के सन्देश लेकर आने की घटना को देखते हैं। स्वर्गदूत ने एक अद्भुत बालक के जन्म का सन्देश सुनाया। जखरीयस जरूर एक सम्माननीय व्यक्ति रहा होगा, उसकी पत्नी एलिजाबेथ ने भी पवित्र जीवन जिया होगा। उनके पास सब कुछ था, इज्जत, दौलत, शोहरत लेकिन कोई सन्तान नहीं थी। यही चिंता उन्हें दिन-रात सताती थी। सन्तान न होना परिवार के समाप्त हो जाने के समान था। आज भी अनेकों ऐसे दम्पति हैं जो सन्तान के लिए तरसते हैं। जखरीयस और एलिजाबेथ ने प्रभु पर अपना भरोसा बनाए रखा और अंततः प्रभु ने उनकी प्रार्थना सुन ली।
✍ -फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today we reflect about the message and the visit of the angel of God to two different people in different times but with a similar message of the birth of an extraordinary child. Zechariah was an honourable priest and his wife Elizabeth was also a holy woman. Probably they had everything, good name in the society, and respect among their fellow citizens. Their only worry was that they were growing old and still did not have any child. What is the use of having all the wealth and luxuries if there is no offspring! For Zechariah it was the end of his family. Many couples undergo the same agony even today. But Elizabeth and Zechariah kept their faith and trust in the Lord, and their prayers were heard.
No one is without worries and tensions in the world of today. Externally we may seem happy and enjoying life but the problems are only to those who face them. Zechariah and Elizabeth became the epitome of patience for us. They are an example for all those couple who undergo the agony of not having a child. Even when there is nothing that could give us hope, we must always trust the Lord. God has his own plans and we may not understand them for a while but everything will happen in its own time. We need to have patience and trust the Lord.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
स्वर्गदूत ने ज़करियस से कहा, "मैं गब्रिएल हूँ- ईश्वर के सामने उपस्थित रहता हूँ। मैं आप से बातें करने और आप को यह शुभ समाचार सुनाने भेजा गया हूँ। देखिए, जिस दिन तक ये बातें पूरी नहीं होंगी, उस दिन तक आप मौन रहेंगे और बोल नहीं सकेंगे; क्योंकि आपने मेरी बातों पर, जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास नहीं किया।" (लूकस 1: 19-20) जो विश्वास नहीं करता, उसे बोलने का, प्रचार करने का कोई अधिकार नहीं है। जो विश्वास करता है उसे घोषणा करने से रोका नहीं जा सकता है। प्रेरित-चरित 5:27-29 में हम पढ़ते हैं कि सर्वोच्च यहूदी परिषद ने प्रेरितों को येसु के नाम पर न बोलने की चेतावनी दी थी। इसके बावजूद भी प्रेरितों ने सुसमाचार का प्रचार किया। मत्ती 9:27-31 में हम पाते हैं कि जब येसु ने चंगे किये गये दो दृष्टिहीनों से कहा कि वे दूसरों को उनके चमत्कार के बारे में न बोलें, तो वे चले गये और पूरे इलाके में येसु का नाम फैला दिया। यदि हममें से कई लोगों के लिए मसीह को दूसरों के बीच घोषित करना कठिन है, तो ऐसा इसलिए है कि हमारा विश्वास बहुत उथला और कमज़ोर है। अगर हमारा विश्वास मज़बूत है, तो किसी प्रोत्साहन या ज़बरदस्ती की ज़रूरत नहीं है, हम हर जगह उनका नाम घोषित करेंगे।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया
Angel Gabriel tells Zachariah, “I am Gabriel. I stand in the presence of God, and I have been sent to speak to you and to bring you this good news. But now, because you did not believe my words, which will be fulfilled in their time, you will become mute, unable to speak, until the day these things occur.” (Lk 1:19-20) The one who does not believe has no right to speak, to proclaim. The one who believes cannot be prevented from proclaiming. In Acts 5:27-29 we read that the Supreme Jewish Council warned the apostles not to speak in the name of Jesus. In spite of that, the apostles went about preaching the Gospel. In Mat 9:27-31 we find that even when Jesus told the two blind men who were healed not to speak about their healing to others, they “went away and spread the news about him throughout that district”. If it is difficult for many of us to proclaim Christ among others, it is because our faith is very shallow. If our faith is strong then there is no need for any incentive or coercion, we shall proclaim his name everywhere.
✍ -Fr. Francis Scaria
आज के सुसमाचार में संत योहन बपतिस्ता के चमत्कारी गर्भाधान का वर्णन है। जब स्वर्गदूत गेब्रियल ने ज़करियस के सामने घोषणा की कि उनकी पत्नी एलिजबेथ गर्भ धारण करेगी और एक बेटे को जन्म देगी, तो उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि यह असंभव है। स्वर्गदूत ने उसे बताया कि चूंकि उसे विश्वास नहीं हो रहा था, वह चुप रहेगा, और उसे तब तक बोलने की क्षमता नहीं होगी जब तक कि बच्चा पैदा नहीं हो जाता। जकरियस से नौ महीने के मौन की अपेक्षा की गयी क्योंकि उनका बेटा योहन, एलिजाबेथ के गर्भ के सन्नाटे में ईश्वर द्वारा गढ़ा जा रहा था। भजनकार इस प्रक्रिया को संदर्भित करता है। "जब मैं अदृश्य में बन रहा था, जब मैं गर्भ के अन्धकार में गढ़ा जा रहा था, तो तूने मेरी हड्डियों को बढ़ते देखा। तूने मेरे सब कर्मों को देखा।“ (स्तोत्र 139: 15-16)। जब प्रभु ईश्वर उनके बच्चे के निर्माण का यह गुप्त कार्य कर रहे थे, तो ज़करियस को मौन रह कर इस प्रक्रिया में साथ देना था ताकि वे अपने स्वयं के परिवार में तथा मानव इतिहास में प्रभु के अद्भुत कार्य के रहस्य को स्वीकार करने के योग्य बन सके। सुसमाचार–लेखक यह भी लिखता है कि एलिजबेथ पांच महीने तक एकांत में रही। उन पाँच महीनों के दौरान वह प्रभु के आश्चर्य को याद कर रही थी। सुसमाचार-लेखक के अनुसार, वह कहती रही, "यह प्रभु का वरदान है। उसने समाज में मेरा कलंक दूर करने की कृपा की है" (लूकस 1:25)। क्या यह देखना अद्भुत नहीं है कि उनके बीच प्रभु के कार्य के रहस्य स्वीकार करने के लिए पूरा परिवार कैसे इंतजार करता रहा। हमारे जीवन में भी प्रभु ईश्वर महान चमत्कारिक कार्य करते हैं। हमें भी चाहिए कि भाग-दौड़ की इस दुनिया में मौन साध कर उन रहस्यों को ग्रहण करें।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
In the Gospel we have the description of the miraculous conception of John the Baptist. When Angel Gabriel announced to Zachariah that his wife Elizabeth would conceive and bear a son for him, he could not believe it. It seemed like something impossible. The angel told him that since he did not believe it he would remain silent as he would have no power of speech until the child is born. Nine months of silence are prescribed for Zachariah as his son John was getting formed by God in the silence of the womb of Elizabeth. The Psalmist refers to this process. “My frame was not hidden from you, when I was being made in secret, intricately woven in the depths of the earth” (Ps 139:15). When God was doing this secret work of forming the child, Zachariah was to accompany the process in silence to be able to accept the mystery of God’s marvelous work in human history, in his own family. The Evangelist also records that Elizabeth remained in seclusion for five months. During those five months he was relishing the wonder of the Lord. According to the Evangelist, she kept saying, “This is what the Lord has done for me when he looked favorably on me and took away the disgrace I have endured among my people” (Lk 1:25). Isn’t this wonderful to see how the whole family waited on the mystery of the Lord’s work among them. In our own lives, the Lord is doing great things; we need to keep silence and experience such great mysteries.
✍ -Fr. Francis Scaria