5) प्रभु यह कहता है: “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं दाऊद के लिए एक न्यायी वंशज उत्पन्न करूँगा। वह राजा बन कर बुद्धिमानी से शासन करेगा और अपने देश में न्याय और धार्मिकता स्थापित करेगा।
6) उसके राज्यकाल में यूदा का उद्धार होगा और इस्राएल सुरक्षित रहेगा और उसका यह नाम रखा जायेगा- प्रभु ही हमारी धार्मिकता है।“
7) यह प्रभु का कहना है, “वह समय आ रहा है, जब लोग फिर यह नहीं कहेंगे, ’प्रभु के अस्तित्व की शपथ! वह इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल लाया है।’
8) वे यह कहेंगे, ’प्रभु के अस्तित्व की शपथ! वह इस्राएल के वंशजों को उत्तरी देश से और उन सब देशों से वापस बुला कर लाया है, जहाँ उसने उन्हें बिखेर दिया था।’ वे फिर अपनी ही भूमि में बस जायेंगे।“
(18) ईसा मसीह का जन्म इस प्रकार हुआ। उनकी माता मरियम की मँगनी यूसुफ से हुई थी, परंतु ऐसा हुआ कि उनके एक साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गयी।
(19) उसका पति यूसुफ चुपके से उसका परित्याग करने की सोच रहा था, क्योंकि वह धर्मी था और मरियम को बदनाम नहीं करना चाहता था।
(20) वह इस पर विचार कर ही रहा था कि उसे स्वप्न में प्रभु का दूत यह कहते दिखाई दिया, ’’यूसुफ! दाऊद की संतान! अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ लाने में नहीं डरे,क्योंकि उनके जो गर्भ है, वह पवित्र आत्मा से है।
(21) वे पुत्र प्रसव करेंगी और आप उसका नाम ईसा रखेंगें, क्योंकि वे अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा।’’
(22) यह सब इसलिए हुआ कि नबी के मुख से प्रभु ने जो कहा था, वह पूरा हो जाये -
(23) देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और पुत्र प्रसव करेगी, और उसका नाम एम्मानुएल रखा जायेगा, जिसका अर्थ हैः ईश्वर हमारे साथ है।
(24) यूसुफ नींद से उठ कर प्रभु के दूत की आज्ञानुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आया।
आज हम यह कहानी सुनते हैं कि येसु का जन्म कैसे हुआ। यह एक ऐसी कहानी है जिसे हमने अनगिनत बार सुना है। क्या आपने कभी स्वयं को मरियम के स्थान पर रखा है? क्या आपने कभी सोचा है कि जब यह सब हुआ तो मरियम के मन में क्या विचार आए होंगे? ज़रा कल्पना कीजिए कि उसके भीतर विचारों और भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा होगा! उसे अपने माता-पिता से क्या कहना था? और उसे यूसुफ से क्या कहना था? उसे जो कहानी बतानी थी वह बिल्कुल अविश्वसनीय थी! जब यूसुफ ने मरियम की कहानी सुनी तो शुरू में उसकी क्या प्रतिक्रिया थी? इंसान होने के नाते, जोसेफ इन सभी अजीब घटनाओं और कहानियों से अभिभूत और भ्रमित हो गया होगा। फिर भी शानदार और अविश्वसनीय परिस्थितियों के बावजूद, यूसुफ में विश्वास था। उन्हें ईश्वर और मरियम पर गहरी आस्था और भरोसा था। यूसुफ सचमुच “ईश्वर का सेवक“ था। जिस तरह इस अजीब, कठिन और भ्रमित करने वाले समय में ईश्वर जोसेफ और मरियम के साथ थे, उसी तरह ईश्वर भी हमारे साथ चलते हैं। और ईश्वर हम पर कृपा करते हैं और हमें वह शक्ति, विश्वास प्रदान करते हैं जिसकी हमें आवश्यकता है। प्रश्न यह है कि क्या हम ईश्वर को एक मौका देने को तैयार हैं? क्या हम ईश्वर के प्रति सजग हैं?
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)Today we hear the story of how the birth of Jesus came about. This is a story we have heard countless times. Do you ever put yourself in Mary’s place? Do you ever imagine what thoughts went through Mary’s mind when all this happened? Just imagine the riot of thoughts and emotions that must have flooded through her! What was she to tell her parents? And what was she to tell Joseph? The tale she had to tell was absolutely unbelievable! How did Joseph initially react when he heard Mary’s fantastic story? Being human, Joseph must have been overwhelmed and confused by all these strange happenings and tales. Yet despite the fantastic and unbelievable circumstances, Joseph had faith. He had deep faith and trust in God and in Mary. Joseph truly was a “man of God.” Just as God was with Joseph and Mary in this strange, difficult and confusing time, God also walks with us. And God graces us and gifts us with the strength, faith and trust that we need. The question is: are we willing to give God a chance? Will we stay open to God?
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
सन 2015 में फिलीपींस की अपनी यात्रा के दौरान पोप फ्रांसिस ने सोते हुए संत यूसुफ के बारे में बात की थी। संत पापा ने कहा कि उनके डेस्क पर सोते हुए संत यूसुफ की एक मूर्ति है। उन्होंने कहा कि सोते समय संत यूसुफ कलीसिया की देखभाल करते हैं। पोप ने बताया कि जब भी उन्हें कोई समस्या या कठिनाई होती है, तो वे उसे कागज के एक टुकड़े पर लिखते हैं और उसे सोते हुए संत यूसुफ की मूर्ति के नीचे रख देते हैं ताकि वे उसके बारे में सपने देख सकें। यानि पोप उन समस्याओं के समाधान के लिए संत यूसुफ की मदद माँगते हैं।
संत मत्ती के सुसमाचार में येसु की शैशवावस्था, येसु के पालक पिता जोसेफ के दृष्टिकोण से प्रस्तुत की गई है, जबकि संत लूकस के सुसमाचार में यह माता मरियम के दृष्टिकोण से प्रस्तुत की गयी है। यूसुफ एक साधारण बढ़ई था। वे अपने परिवार की चिंताओं को लेकर सोने जाते थे। सुसमाचार में आज हम देखते हैं कि कैसे प्रभु का दूत सपने में संत यूसुफ के सामने आया था ताकि वह उन्हें उनकी समस्या को दूर करने का साहस दे सके। संत यूसुफ गहरे विश्वास और महान विनम्रता के व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी समस्याओं के लिए ईश्वर से स्पष्टीकरण और समाधान प्राप्त किया। जब वे नींद से उठे तो उन्होंने अपने सपने में प्राप्त आत्मज्ञान पर कार्रवाई की। स्तोत्रकार कहता है, “तुम प्रभु पर अपना भार छोड़ दो, वह तुम को संभालेगा। वह धर्मी को विचलित नहीं होने देगा।” (स्तोत्र 55:23)।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Pope Francis during his visit to Philippines in 2015 spoke about the Sleeping Saint Joseph. Pope revealed that he had a statue of the Sleeping Saint Joseph on his desk. The Pope said that while sleeping St. Joseph looks after the Church. He also confided that whenever he had a problem or difficulty, he would write it on a piece of paper and place it under the statue of the Sleeping Saint Joseph “so that he can dream about it”. In other words, this is how the Pope would ask St. Joseph to intervene in times of difficulties and problems.
The infancy narrative of the Gospel of Mathew is presented from the perspective of Joseph, the foster father of Jesus, in contrast to the infancy narrative of the Gospel of Luke written from the perspective of Mary, the mother of Jesus. Joseph was an ordinary carpenter. He went to sleep with the worries of his family. In the Gospel today we see how the angel of the Lord appeared to St. Joseph to give him courage to overcome the problems, he had been facing. St. Joseph was a man of deep faith and great humility. He got clarification and solution from God for his problems. When he got up from sleep he acted on the enlightenment he received in his dream. The Psalmist says, “Cast your burden on the Lord, and he will sustain you; he will never permit the righteous to be moved” (Ps 55:22).
✍ -Fr. Francis Scaria